Delhi most polluted city, फिर वहीं राग पुराना है! आंखों में जलन, गले में खराश, दिल में धुआं और दिमाग में बेचैनी कि करें तो क्या करें! पर इस साल के फर्क में यह एक सवाल जरूर है कि दिल्ली ठीक या लाहौर? साथ ही यह आदत भी बनते हुए है कि हर सुबह चेक करें आज कितना प्रदूषण? घूमने निकलें या नहीं? आज एक्यूआई कितना?
मजेदार बात दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर कौन सा? दिल्ली या लाहौर? इस वैश्विक वास्तविकता ने फिर बताया है कि बीहड़ भारत का हो या पाकिस्तान का, फर्क कहां है?
गजब बात है जो प्रकृति भी जोर शोर से बता रही है कि बीहड़ का नाम पूरा दक्षिण एशिया है। भारतीय उपमहाद्वीप है। 78 साल की अलग-अलग राह के बावजूद दिल्ली हो या लाहौर, मुंबई हो या कराची, जींद हो या मुल्तान, इस बीहड़ में सभी तरफ की जिंदगी में मनुष्य वह भेड़-बकरी है, जिसके नसीब में हवा और पानी भी साफ नहीं है! न नरेंद्र मोदी और उनके सत्ता हुक्मरानों को पता है कि प्रदूषण कैसे खत्म हो सकता है और न इस्लामाबाद के शहबाज शरीफ और उनके हुक्मरानों के पास प्रदूषण का कोई इलाज है। दक्षिण एशिया का बीहड़ भले अलग-अलग सीमाओं में बंटा हुआ है लेकिन इंसानों का अनुभव, व्यवहार, भूत-वर्तमान-भविष्य और नियति तो बीहड़ में रामभरोसे जीने की है!
दिल्ली और लाहौर: प्रदूषण, असमानता और दक्षिण एशिया की साझा नियति
सोचें, आकाश में सेटेलाइट से खींची जा रही तस्वीरों पर। लाहौर और दिल्ली का आकाश एक सी जहरीली हवा, धुएं की सघन परत लिए हुए है। और यह किस सत्य का प्रमाण है? एक बीहड़, एक नस्ल, एक सा विकास, एक सा समाज और एक सी जहालत! दिल्ली उतनी ही अमीर है, जितना लाहौर है। कारों का वहां भी अंबार है। पूर्व और पश्चिमी पंजाब की खेतिहर संपन्नता, जहां एक जैसी है वहीं गरीबी बनाम अमीरी की असमानता में भी दोनों बीहड़ एक से हैं।
झुग्गी-झोपड़ियों, रेवड़ियों की जिंदगी का विकास समान है। भ्रष्टाचार समान है। धर्म की राजनीति समान है। उपभोक्तावाद वहां भी है और उपभोक्तावाद यहां भी है। जिसकी लाठी उसकी भैंस, कोतवाल शासन लाहौर में है तो दिल्ली में भी है। भ्रष्ट, जाहिल कुलीन वर्ग दिल्ली में है तो लाहौर, इस्लामाबाद में भी है। दोनों एटमी महाशक्ति हैं, दोनों सशस्त्र पैदल सेना की संख्या में रिकॉर्ड बनाए हुए हैं। लेकिन दोनों के बाजार, जिंदगी के भोग-उपभोग व आर्थिकी का मालिक चीन है।
और दोनों बेखबर हैं कि दोनों के लिए प्रकृति का निर्णय समान है। अर्थात 21वीं सदी में दोनों पर, दक्षिण एशिया के पूरे बीहड़, उसकी भीड़ पर, उसकी जहालत पर जलवायु परिवर्तन अपना कहर बरपाएगा। पृथ्वी में यदि कहीं सर्वाधिक प्रदूषण, बाढ़, सूखा, तूफान का कहर बरपना है तो वह दक्षिण एशिया है।Delhi most polluted city.
दिल्ली और लाहौर: भीड़, प्रदूषण और अव्यवस्थित विकास की साझा कहानी
यों जलवायु परिवर्तन पूरी मानवता का संकट है। मनुष्य जाति की करनियों का परिणाम है। लेकिन दिल्ली और लाहौर में ही साल के दो महीने प्रदूषण, चार महीने रिकॉर्ड गर्मी, तीन महीने बाढ़ या सूखे तथा वसंत और शरद मौसम के हांफने का अब जो सिलसिला है तो प्रकृति की लीला के बाद एकमात्र जिम्मेवार कारण बीहड़ में बेसुधी का है। लोगों को पता ही नहीं कि मनुष्य जीवन जीना क्या होता है? इनके लिए भीड़ ताकत नहीं बरबादी इसलिए क्योंकि वैयक्तिक बुद्धि में नस्ल अनाड़ी है। गंवार और मूर्खों की लीडरशीप के बाड़ों में बंधे होने से शापित है।
जरा बेसुध भीड़ के आकार पर गौर करें। दिल्ली की आबादी तीन करोड़, एनसीआर की 4.8 करोड, उत्तर भारत की आबादी 52.12 करोड़ है। उधर लाहौर की आबादी 1.40 करोड़, उसके प्रदेश पंजाब की 11.28 करोड़ आबादी है। और सेटेलाइट दोनों देशों के इन इलाकों की प्रदूषण तस्वीर का यह साझा बतलाते हुए है कि धुएं की गहरी परत चौतरफा है। इसलिए इस बात का अर्थ नहीं है कि पाकिस्तान अधिक प्रदूषित है या भारत? लाहौर अधिक या दिल्ली? मुल्तान में एक्यूआई 2000 पार हुआ या दिल्ली की जहांगीपुरी में रिकॉर्ड बना? असल बात है कि मुल्तान से बेगूसराय, कोलकाता से सिंधु नदी, गंगा-यमुना दोआब की जलवायु और भूगोल में मनुष्यों की भीड़ का बीहड़ इतना असंवेदनशील और गोबर पट्टी है कि दूर-दूर तक यह संभावना नहीं है जो इंसानी बुद्धि कभी ऐसी प्रबल हो जो इस बीहड़ को कभी साफ-सुथरा-समतल बनाने का इरादा भी सोच सकें!
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आज एक रिपोर्ट थी। दिल्ली के मध्यवर्ग को बेंगलुरू के मध्यवर्ग ने पछाड़ रखा है। दिल्ली के मुकाबले बेंगलुरू में लोग अधिक कारें खरीद रहे हैं। जबकि दोनों शहर बुरी तरह ट्रैफिक जाम की समस्या के मारे हैं। ट्रैफिक लाहौर का हो या दिल्ली और बेंगलुरू का, सभी तरफ वह बेकाबू है क्योंकि दोनों देशों में, पूरे दक्षिण एशिया के लोगों का मिजाज एक सा है। मतलब पैसा आएगा तो सबसे पहले उसे दिखाने की होड़ होगी। सार्वजनिक परिवहन की जगह निजी वाहन का सफर लोगों की शान है तो मजबूरी इसलिए है क्योंकि सरकारों ने आवश्यकता अनुसार सार्वजनिक परिवहन विकसित नहीं किया है।
दक्षिण एशिया की साझा नियति: प्रदूषण, असमानता और बेबसी का बीहड़ समाज
क्या दिल्ली और लाहौर में कोई कल्पना कर सकता है कि सांसद और आला अफसर सचिव लोकल ट्रेन से सफर करके संसद भवन या सचिवालय, नॉर्थ-साऊथ ब्लॉक के दफ्तर आएं-जाएं? संभव ही नहीं। जबकि लंदन की मेट्रो में सांसदों-अफसरों को कनेक्ट करने वाला वेस्टमिनिस्टर ब्रिज स्टेशन 1868 में बना था और तब से आज तक उसका उपयोग सांसद, सचिव (मंत्री, पहले प्रधानमंत्री भी) सभी करते हैं।Delhi most polluted city,
ऐसे ही तथ्य हैं तीस-चालीस साल पहले से नई दिल्ली एरिया की तरह लंदन के केंद्रीय इलाके में कारों की आवाजाही पर पूरा प्रतिबंध या बहुत मंहगी पार्किंग रेट की व्यवस्था है। वे वहां क्यों इतनी दूरूदृष्टि वाले हैं और दिल्ली-लाहौर का कुलीन-अमीर वर्ग क्यों नहीं? इसलिए क्योंकि बीहड़ बनाम सभ्य समाज, विकसित बनाम अविकसित देश की वजह में बुद्धि, विवेक, संवेदना निर्णायक है। हम भीड़ हैं, भीड़ बेसुध है, वह भाग्य और नियति, कोऊ नृप हो हमें का हानी की भेड़ चाल में जीती हैं।
भारत और पाकिस्तान दोनों बतौर देश और समाज पहले दिन से भीड़ की भेड़चाल की नियति लिए हुए हैं। गांधी-नेहरू से नरेंद्र मोदी-अमित शाह का नेतृत्व, भीड़ का नेतृत्व है तो जिन्ना-लियाकत अली से इमरान-शहबाज का नेतृत्व भी उसी लीक पर है। फिर भले पाकिस्तान ने धर्म और भारत से दुश्मनी के मंत्र में अपनी भीड़ को हांका तो भारत में समाजवाद और अब इस्लाम का भय दिखलाते हुए हांका जा रहा है!
दक्षिण एशिया का बीहड़: विकास की धोखाधड़ी और जीवन की बुनियादी जरूरतों की अवहेलना
दक्षिण एशिया में व्यक्ति बाद में है, धर्म पहले है, इतिहास पहले है, असुरक्षा पहले है। इसलिए मनुष्य जीवन को सुखमय बनाने की भला प्राथमिकता कैसे हो सकती है? जैसे भारत के स्थायी, सालाना राग हैं वैसे पाकिस्तान के भी हैं। दक्षिण एशिया के बाकी देशों के भी हैं। अर्थात भारतीय मूल का सनातनी उपमहाद्वीप के वे डीएनए स्थायी है, जिनमें सभी मनुष्य सदियों से चले आ रहे कलियुग में जीते आए हैं।
तभी विचारें, हम 145 करोड़ भारतीयों सहित दक्षिण एशिया के दो अरब लोगों की आबादी आज किन जरूरतों की मारी है? साफ हवा, साफ पानी तथा शुद्ध खाने पीने के आटे, तेल, दाल, सब्जी की! इन तीन चीजों के बाद फिर अच्छी-सस्ती चिकित्सा और शिक्षा की आवश्यकता है। इन पांच जरूरतों में साल-दर-साल भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि नागरिकों को क्या दे रहे हैं? ज्यादा जहरीली सांस, दूषित पानी और दूषित (मिलावटी) खाना! चिकित्सा के नाम पर लूट और नकली दवाइयां वहीं शिक्षा के नाम पर अशिक्षा!
लेकिन इस रियलिटी का बोध नहीं है। वह दिखती चुभती नहीं है। क्यों? इसलिए क्योंकि जो अमीर है और उसके पुछल्ले का जो मध्यवर्ग है, उसकी कारों की खरीद, शान, ट्रैफिक, मकानों के निर्माण, पश्चिमी जिंदगी की नकल के हॉलीडे, सप्ताहांत छुट्टियों, रेस्तरां में भीड़ का भ्रमजाल भी एक हकीकत है। कैसे किसी को समझ आ सकता है कि हॉलीडे घूमना भी जहरीली हवा में है। खाना और पीना भी दूषित है। और विकास के जिस कथित शिखर पर है वह नीचे हजार-दो हजार रुपए की रेवड़ियों, मुफ्त के राशन, बेगारी की सौ-सवा सौ करोड़ लोगों भीड़ की जिंदगी का वह पिरामिड आधार है, जो धुएं और धुंध में फर्क भी नहीं कर सकती, यदि करें भी तो उसके पास करने के लिए क्या है! बीहड़ की विशेषता बेबसी और लाचारगी भी है!