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तेलंगाना में कांग्रेस की उम्मीद

राहुल गांधी को जब राजस्थान में कड़ा मुकाबला दिखा था तब भी वे तेलंगाना में सरकार बनने को लेकर पूरी आश्वस्त थे। उन्होंने कहा था कि कांग्रेस मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में सरकार बना रही है। हालांकि पिछले दो चुनावों में कांग्रेस ने वहां अच्छा प्रदर्शन नहीं किया था। आंध्र प्रदेश से अलग नया राज्य बनवाने के बावजूद 2014 के चुनाव में कांग्रेस को राज्य की 119 में सिर्फ 21 सीटें मिली थीं। 2018 के चुनाव में कांग्रेस की सीटें घट कर 19 रह गईं। चुनाव से पहले ऐसा लग रहा था कि तेलंगाना में मुकाबला एकतरफा है और एक बार फिर चंद्रशेखर राव की पार्टी भारत राष्ट्र समिति ही चुनाव जीतेगी। लेकिन मई में कर्नाटक में कांग्रेस को मिली बड़ी जीत के बाद सब कुछ बदल गया। कर्नाटक में मुस्लिम मतदाताओं ने कांग्रेस को एकमुश्त वोट किया। इसके बाद ही तेलंगाना का माहौल बदला।

कर्नाटक के चुनाव से पहले भाजपा राज्य में बहुत सक्रिय थी लेकिन कर्नाटक के बाद अचानक वह शिथिल पड़ गई, जिससे यह प्रचार हुआ कि कांग्रेस को रोकने के लिए भाजपा ने चंद्रशेखर राव की पार्टी को रणनीतिक समर्थन दे दिया है। इससे भी मुस्लिम मतदाताओं का रूझान कांग्रेस की ओर बना। राज्य के रेड्डी मतदाता पारंपरिक रूप से कांग्रेस के साथ हैं। ऊपर से आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस शर्मिला ने अपनी पार्टी के उम्मीदवार नहीं उतारे और कांग्रेस को समर्थन दे दिया। भाजपा अब भी लड़ रही है लेकिन वह बहुत पीछे छूट गई है। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी भी 119 में से सिर्फ नौ सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इस वजह से मुकाबला बीआरएस बनाम कांग्रेस है।

कर्नाटक की जीत से उत्साहित कांग्रेस नेताओं ने तेलंगाना में पूरी ताकत लगाई है। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने खूब मेहनत की है। कांग्रेस ने मल्लिकार्जुन खड़गे की बनाई कांग्रेस कार्य समिति की पहली बैठक हैदराबाद में की और उसके बाद एक बड़ी रैली की। उसके बाद से कांग्रेस के बड़े नेता लगातार वहां डटे हुए हैं। बताया जा रहा है कि कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के आर्किटेक्ट रहे डीके शिवकुमार को वहां चुनाव लड़ाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। के चंद्रशेखर राव की सरकार के खिलाफ 10 साल की एंटी इन्कम्बैंसी भी एक फैक्टर है। सो, हालात की अनुकूलता, नेताओं की मेहनत, सामाजिक समीकरण और संसाधनों की वजह से कांग्रेस कड़ी टक्कर दे रही है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के मुकाबले तेलंगाना का मामला अलग है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार दांव पर है तो मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस पिछली बार जीती थी। लेकिन तेलंगाना में कांग्रेस को सिर्फ 19 सीटें मिली थीं और उसमें से भी ज्यादातर विधायक बाद में पाला बदल कर बीआरएस के साथ चले गए थे। इसलिए वहां कांग्रेस का कुछ भी दांव पर नहीं है। इसलिए वहां उसका ताकतवर होना या जीत 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले की बड़ी बात होगी।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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