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अब मणिपुर मॉडल की चर्चा

मणिपुर की घटना को लेकर सोशल मीडिया में जिस तरह का एक पैरेलल नैरेटिव चल रहा है उससे कई सवाल खड़े होते हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या सचमुच भारत सरकार इतनी असहाय है कि एक छोटे से राज्य में चल रही जातीय हिंसा को ढाई महीने तक काबू में नहीं कर पाई? भाजपा के नेताओं ने दावा किया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने देश के छात्रों को बाहर निकालने के लिए रूस और यूक्रेन का युद्ध रूकवा दिया था। तो क्या वही प्रधानमंत्री मणिपुर में अपने लोगों की जान बचाने के लिए वहां चल रहा युद् नहीं रूकवा सकते है? फिर क्यों प्रधानमंत्री ने अभी तक राज्य के लोगों से शांति बहाली की अपील की नहीं की है या शांति बहाली की कोई ठोस पहल नहीं की है? राज्य में तीन मई से हिंसा चल रही है और पहली बार प्रधानमंत्री मोदी 20 जुलाई को इस पर बोले। मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाए जाने का वीडियो वायरल होने के बाद उन्होंने इस पर दुख जताया और कहा कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।

इस बीच सोशल मीडिया में इस जातीय संघर्ष को सांप्रदायिक रूप दिया जाने लगा है। सोशल मीडिया के साथ साथ मुख्यधारा की पारंपरिक मीडिया में भी महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाने वाले वीडियो के साथ साथ एक दूसरा वीडियो भी वायरल हो रहा है, जिसमें इधर उधर पड़े कुछ शव दिखाए जा रहे हैं और दावा किया जा रहा है कि जब मैती हिंदुओं को मारा गया तब किसी ने इस पर आवाज नहीं उठाई। व्हाट्सऐप ग्रुप में इस तरह के वीडियो शेयर किए जा रहे हैं और लंबे लंबे पोस्ट लिख कर दिखाया जा रहा है कि मणिपुर हिंसा मैती बनाम कुकी नहीं, बल्कि मैती हिंदू बनाम कुकी ईसाई है। ध्यान रहे कई रिपोर्ट ऐसी है, जिनमें बताया गया है कि साढ़े तीन सौ से ज्यादा चर्च पिछले ढाई महीने में तोड़े गए हैं या उन पर हमला हुआ है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि करीब 32 लाख की आबादी वाले मणिपुर में ढाई लाख से ज्यादा मुस्लिम हैं, लेकिन उनको निशाना नहीं बनाया जा रहा है।

इस बात के लिए लोगों को निशाना बनाया जा रहा है कि वे निर्वस्त्र करके घुमाई गई महिलाओं को सीधे महिला बताने की बजाय कुकी महिला क्यों बता रहे हैं? उनको सीधे महिला कहा जाए और उस पर चर्चा हो तो देश भर में महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के साथ हो। पश्चिम बंगाल, केरल और दूसरे राज्यों में भी महिलाओं के साथ हुई घटनाओं को इसके साथ जोड़ा जाए। असल में यह सावधानी इसलिए बरती जा रही है कि गुजरात से अलग मणिपुर में निशाने पर मुस्लिम नहीं हैं, बल्कि आदिवासी हैं। उनकी ईसाई पहचान बताने का अभियान चल रहा है इसके बावजूद मैसेज यह जा रहा है कि आदिवासी महिलाओं पर मैती हिंदू लोग अत्याचार कर रहे हैं। तभी कई जगह यह भी देखने को मिला कि मैती हिंदुओं को भी मैती आदिवासी लिख कर बताया जा रहा है कि यह आदिवासियों का मामला है। हालांकि अभी मैती समुदाय को आदिवासी में नहीं शामिल किया गया है।

इतना ही नहीं चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ भी निशाने पर हैं। उनको चुनौती दी जा रही है कि वे वाराणसी से चुनाव लड़ कर देख लें। उनसे पूछा जा रहा है कि मैती लोगों के मारे जाने पर उन्होंने स्वतः संज्ञान क्यों नहीं लिया था। यह दावा किया जा रहा है कि 2024 से पहले इस तरह की और घटनाएं होंगी। इसे भाजपा और मोदी विरोधी टूलकिट से जोड़ा जा रहा है। साथ ही यह भी हकीकत है कि मणिपुर की घटनाओं को रोकने का गंभीर प्रयास नहीं किया जा रहा है। अगर सरकार गंभीर होती तो अब तक राष्ट्रपति शासन लगाया जा चुका होता। राज्य की राज्यपाल अनुसुइया उइके महिला हैं और आदिवासी हैं। उन्होंने दो महिलाओं का वीडियो वायरल होने के बाद बहुत संवेदनशील और समझदारी वाला बयान दिया। वे शांति बहाल करवा सकती हैं लेकिन बहुसंख्यक हिंदू मैती समुदाय को ध्यान में रख कर ऐसा लग रहा है कि सरकार एन बीरेन सिंह को बनाए हुए है। इससे मणिपुर मॉडल की चर्चा शुरू हुई है। पूर्वोत्तर में हिंदू बनाम ईसाई का नैरेटिव बन रहा है, इसका कितना फायदा भाजपा को होगा यह देखने वाली बात होगी।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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