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गृह युद्ध तथा ‘वॉर क्रिमिनल’

मैंने अमित शाह की पानीपत लड़ाई की थीसिस में कई बार लिखा है कि जमीन बंटवारे के अंग्रेजों के खाके से पहले खुद मोहम्मद अली जिन्ना ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उनके पाकिस्तान आइडिया का अर्थ है कि एक जिले में एक हिंदुस्तान और एक पाकिस्तान! उस बात को जरा आज के मणिपुर की सच्चाई में जांचें। मणिपुर गृह युद्ध में है! मतलब यह कि प्रदेश की आबादी, व्यवस्था, पुलिस, संस्थाएं और जनजीवन दो हिस्सों में साफ बंट कर एक दूसरे से नफरत करते हुए, लडते हुए हैं। तीन मई से यह ग्राउंड रियलिटी है कि हिंदू मैती व ईसाई कुकी एक-दूसरे के खून के प्यासे है। मैंने, अजित द्विवेदी ने याकि ‘नया इंडिया’ में मणिपुर को लेकर बहुत लिखा है। पिछले सप्ताह भी यह कॉलम मणिपुर पर था। मुख्य शीर्षक था– मणिपुरः भारत के भविष्य की झांकी।

हां, यदि नरेंद्र मोदी और अमित शाह अब भी नहीं चेते, मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को हटाया नहीं या उनकी जगह किसी दूसरे हिंदू मैती को मुख्यमंत्री बना कर लीपापोती की तो न केवल मणिपुर और भडकेगा , बल्कि उत्तर-पूर्व के प्रदेशों के पुराने घाव भी हरे हो जाएंगे। मणिपुर में बंटे हुए लोग एक दूसरे को वैसे ही मारेंगे, अलग-अलग रहेंगे, अपनी-अपनी फोर्स बना कर रहेंगे जैसे मई के पहले सप्ताह से मणिपुर में मैती और कुकी अलग-अलग रह रहे हैं।

तय मानें कि भारत सरकार, गृह मंत्री अमित शाह कितनी ही हालात सुधरती बतलाएं मणिपुर में लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे रहेंगे। उस नाते सुप्रीम कोर्ट को रियलिटी समझते हुए मणिपुर की सरकार को बरखास्त करने का आदेश दे कर एक ऐसा ईमानदार न्यायिक कमीशन बनाना चाहिए जो जांचे कि किन कारणों, किन लोगों से मणिपुर में मैती बनाम कुकी में गृहयुद्ध बना? न्यायिक आयोग पड़ताल करे, केंद्र सरकार को रोडमैप दे और एक-एक दोषी को चिन्हित करके सजा दिलाए। तभी वहां लोगों में न्याय होने, सुनवाई होने का भाव बनेगा।

मतलब छोटे-दिखावे के उपायों से कुछ नहीं होना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जान लेना चाहिए कि मणिपुर का गृहयुद्ध अब वैश्विक चिंता का मुद्दा है। अमित शाह और गृह मंत्रालय की नासमझी है जो मानते हैं कि इंटरनेट पर पाबंदी लगाने या मौन रह कर शेष दुनिया को अनजान बनाए रखा जा सकता है। इतनी भी समझ नहीं कि पुतिन के रूस या शी जिनफिंग के खुफिया देश से भी पश्चिमी मीडिया व सरकारें खबरें जाने हुए होती हैं। नेट या गूगल पर प्रतिबंध कितना ही लगा दें अब सेटेलाइट बताता है कि नीचे ग्राउंड में हो क्या रहा है। मणिपुर रियलिटी को झूठ से, खबर दबा कर भारत के लोगों से छुपाया जा सकता है लेकिन दुनिया से नहीं। तभी तो यूरोपीय संसद ने मणिपुर पर तब बहस करके प्रस्ताव पास किया था जब नरेंद्र मोदी फ्रांस की यात्रा पर थे। इसलिए ध्यान रहे मणिपुर के गृह युद्ध तथा महिलाओं के साथ बलात्कार और उन्हे भीड़ द्वारा प्रताडित करने से लेकर बेरहम हत्याओं के प्रमाण संयुक्त राष्ट्र का आगे एजेंडा बनेगा। वॉर क्राइम की याचिकाएं बनेंगी। जिस तादाद में चर्चों को फूंका गया है और आबादी का भागना तथा शरणार्थी बनना हुआ है वह सब भारत विरोधियों, हिंदू विरोधी लॉबी के लिए वैश्विक स्तर पर हिंदू राजनीति को बदनाम करने के अकाट्य प्रमाण हैं।

मेरा मानना है कि नरेंद्र मोदी, अजित डोवाल, जयशंकर सबको अब अंदाज है कि सितंबर में जब जी-20 की बैठक में विदेशी नेता दिल्ली आएंगे तब सभी मणिपुर की तस्वीरें दिल-दिमाग में लिए हुए होंगे। गुरूवार को मणिपुर में चूराचांदपुर में कुकी महिलाओं ने काले कपड़े पहन कर जो प्रदर्शन किया और वह वैश्विक चैनलों में जितना दिखा तो उसके साथ ये बैनर व बयान भी दुनिया में रजिस्टर्ड हो चुके हैं कि कुकी आदिवासी  मांग कर रहे हैं वॉर क्राइम की जांच के साथ युद्ध अपराधियों की सजा!

तभी यदि मोदी-अमित शाह में यदि तनिक भी राष्ट्रहित में समझदारी है तो वह सब कुछ सुप्रीम कोर्ट के सुपुर्द करें। केंद्र सरकार प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाए। फिर सेना को सीधे प्रशासन, पुलिस और लोगों के विभाजन को दुरूस्त कराने का जिम्मा मिले। अन्यथा मणिपुर का गृहयुद्ध बगल के नगालैंड से ले कर न जाने कहां-कहा पहुंचा हुआ होगा!

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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