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2024: अविश्वास स्थापना वर्ष!

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यों 2024 की कई पहचान है। बतौर ‘वर्ष पुरूष’ गौतम अडानी हैं। अयोध्या का राम मंदिर है। नरेंद्र मोदी का प्रकट दैवीय अवतार है। मोदी का तीसरी बार प्रधानमंत्री बनना है। विपक्ष का आईसीयू से बाहर निकलना है। मगर राष्ट्र राज्य की दीर्घकालीन सेहत के नाते 2024 का अर्थ ‘शंकालु भारत’ है! सन् 2024 ने 140 करोड़ लोगों के जेहन में यह अविश्वास स्थापित किया है कि ‘कुछ न कुछ तो गड़बड़ है’! यह जुमला गुरूवार को कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में सुनाई दिया। यह जुमला उस भावना, उस अविश्वास का प्रतीक है जो हरियाणा, महाराष्ट्र और उपचुनाव नतीजों के बाद सर्वत्र झलका है। कहने को फर्क कर सकते हैं कि भाजपा वाले ऐसा नहीं मानते हैं। मगर बाकी तो मानते हैं। और विश्वासी और अविश्वासी में यदि भारत की आबादी चालीस बनाम साठ प्रतिशत में बंटी हुई है तो चुनाव पर अविश्वास अंततः भारत को उसी दिशा की और ले जाने वाला है, जिससे इन दिनों कई अफ्रीकी देश गुजर रहे हैं।

पहले ईवीएम पर शक था। मगर 2024 में पूरी चुनाव प्रक्रिया, चुनाव आयोग और राजनीति पर अविश्वास बना है। संगठित धांधली, संगठित बेईमानी, वोटों की खरीद से मतपेटियों के नतीजों पर विश्वास उस अनुपात में खत्म हुआ है कि लोग अब आपस में बात कर बूथवार हिसाब लगाने लगे हैं कि हमारे बूथ में जब भाजपा वोट नहीं है तो भाजपा यहां कैसे जीती! असामान्य बात है जो महाराष्ट्र के गांवों में सोचा गया कि हम अपने यहां खुद वोट डाल चेक करते हैं कि चुनाव आयोग का नतीजा सही है या नहीं! और बहुत असामान्य और दिल दिमाग को दहलाने वाली बात है जो देश के सर्वाधिक सौम्य और भले नेता नवीन पटनायक की पार्टी ने छह महीने आंकड़े इकठ्ठा कर धांधली की शिकायत की।

निश्चित ही चुनाव आयोग उसे वैसे ही खारिज करेगा, जैसे कांग्रेस और बाकी पार्टियों की शिकायतें बेशर्मी से खारिज कर रहा है। तभी ईवीएम से अधिक अब चुनाव आयोग का रवैया लोगों में अविश्वास को गहरा पैठा रहा है। नवीन पटनायक की पार्टी ने आंकड़ों को इकठ्ठा कर मिलान किया है। कहा है कि जितने वोट पड़े हैं उससे ज्यादा गिने गए हैं। कहा कि लोकसभा और विधानसभा के वोट एक साथ हुए मगर कई जगह विधानसभा में कम मतदान दिखाया गया, जबकि आम तौर पर हमेशा लोकसभा से ज्यादा विधानसभा के लिए मतदान होता है। बीजद ने बताया कि आदिवासी आरक्षित फुलबनी सीट के 57 नंबर बूथ पर डाले गए और गिने गए वोट में 682 वोट का अंतर है। इसी तरह तलसरा सीट के बूथ नंबर 165 पर 660 और 219 नंबर बूथ पर 784 वोट का अंतर है। पार्टी ने कहा है कि मतदान समाप्त होने के बाद रात 11.45 बजे चुनाव आयोग ने जो आंकड़ा जारी किया था उससे बहुत ज्यादा वोट का आंकड़ा दो दिन बाद जारी किया। उसने पूछा है कि क्या रात पौने 12 बजे के बाद भी लोग वोट डाल रहे थे, जो मतदान प्रतिशत इतना ज्यादा बढ़ गया? आदि, आदि।

जाहिर है ओडिशा की बीजद पार्टी में भी धांधली और गड़बडी का विश्वास बना है तथा कांग्रेस, समाजवादी, उद्धव आदि तमाम पार्टियों ने ईवीएम के अलावा चुनावी प्रक्रिया और चुनाव आयोग को भ्रष्टता का प्रतीक करार दिया है तो इसके बाद उस आबादी के लिए क्या बचता है जो मतपेटियों पर भरोसे से लोकतंत्र तथा देश की व्यवस्था के भरोसे में जीती आई है। हिंदू बनाम मुस्लिम में अविश्वास के बाद अब हिंदुओं में चुनाव को ले कर विश्वास, अविश्वास की दरारों से भविष्य में क्या बनेगा, इसकी कल्पना ही दहलाने वाली है।

पर अविश्वास चुनाव आयोग, चुनाव प्रक्रिया तथा राजनीति पर ही नहीं है। सन् 2024 में लोगों का भरोसा एक चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ के चेहरे से भी इतना बुरी तरह टूटा है कि मैं उसकी सघनता पर खुद हैरान हूं। लोगों की चंद्रचूड़ से न्यायपालिका की खुद्दारी, स्वतंत्रता और गरिमा की बहाली की सर्वाधिक उम्मीद थी, लेकिन वे इतने बड़े जन पैमाने में, देश भर की अदालतों के वकीलों और सुधीजनों में इस अविश्वास के साथ अब अभिव्यक्त होते हैं कि मुझे चंद्रचूड़ से ऐसी उम्मीद नहीं थी लेकिन ‘कारवां’ की स्टोरी पढ़ी तो हैरान हूं कि मैं कितना गलत था!

और ऐसे कई चेहरे हैं, जिनसे सन् 2024 मे अविश्वास बना। अविश्वास के इस फिनोमीना को यदि बाकी जगह तलाशें तो परस्पर रिश्तों में और बुरी दशा है। कोई माने या न माने इस बात को, लेकिन सत्य है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मई 2024 के चुनाव से पहले बनारस के घाट पर अपने को दैवीय अवतार घोषित किया तो वह इस भाव से था बाकी सबका अर्थ क्या है? सब मेरे से हैं! मोहन भागवत क्या हैं, अमित शाह क्या हैं, पार्टी क्या है, सरकार क्या है, राहुल गांधी और विपक्ष क्या हैं! लेकिन मतदान के दिन जब दिन में तारे दिखलाई दिए तो तुरंत अमित शाह को बुलाकर पूछा यह कैसे हुआ! बाद में मोहन भागवत चूके नहीं। कह दिया अपने आपको भगवान मानने से कोई भगवान नहीं हो जाता। और अब मोहन भागवत से हिंदू साधु-संत कह रहे हैं आपको किसने बनाया हिंदुओं का ठेकेदार हम तो खोदेंगे और खुदवाएंगे मस्जिदें! हिंदुओं के जज ने बता दिया है कि देश बहुसंख्यकों (हिंदुओं) की इच्छा से चलेगा!

यह ‘इच्छा’ वह मनमानी है, जिससे व्यवस्था जर्जर तथा अनुतरदायी है और लोग सर्वत्र ‘कुछ न कुछ तो गड़बड़ है!’ फील कर रहे हैं। अविश्वास दिलों-दिमाग में स्थापित है। व्यवस्था के प्रति अविश्वास है। कानून अदालत के प्रति अविश्वास है। राजनीति के प्रति अविश्वास है। पार्टियों में परस्पर और भीतर परस्पर नेताओं में अविश्वास है। क्या मोदी और संघ में आपसी विश्वास है? क्या शाह, योगी, फड़नवीस सब शंकित नहीं हैं?

आर्थिकी पर अविश्वास है। उद्योगपति, अमीर भविष्य के अविश्वास में भागते हुए हैं। समाज, खासकर हिंदुओं में जातियों का परस्पर अविश्वास पीक पर है। सोचें, 2024 में मोदी-शाह की ओबीसी, दलित, आदिवासी राजनीति ने हिंदू समाज में परस्पर जितना अविश्वास पैठाया है वैसा पहले कब हुआ? खतरा गंभीर है कि अंबेडकरवादी, दलित, आदिवासी कही अविश्वास की वैसी ही गांठें न बांध लें, जैसे मुसलमानों में बनी है।

चेहरों, संस्थाओं तथा वर्ग और वर्ण का हर समूह तथा व्यवस्था का हर पहलू अब या तो अविश्वासों का जन्मदाता है या अविश्वास का मारा है। तभी 2024 में भारत की घटनाओं की हर सुर्खी अपने आगे-पीछे भरोसे के सवाल लिए हुए है!

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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