दुनिया की शक्ल बदल रही है। भौतिक और राजनैतिक दोनों रूप में। सोचे, क्या है जोहानिसबर्ग की ब्रिक्स बैठक की वैश्विक गूंज? पहली बात, चीन-रूस के जलवे का मंच। दूसरी बात, दुनिया फिर दो खेमों में बंटी। इस दफा अमेरिका के मुकाबले में चीन है। पिछली सदी में रूस का सोवियत खेमा था। तीसरी बात, अमेरिका व चीन के कंपीटिशन को जानते हुए देशों में निर्गुट का आईडिया लौट आया। चौथी बात, अमेरिका बनाम सोवियत संघ के शीत युद्ध काल में स्तालिन, खुश्चौफ या ब्रेजनेव जैसे नेताओं में कभी कोई अंतरराष्ट्रीय अपराधी-भगौड़ा करार नहीं हुआ? वैश्विक बैठकों में उनकी उपस्थिति रही। जबकि पुतिन आज भगौड़े है और उनमें जोहानिसबर्ग जाने की भी हिम्मत नहीं।
तभी बदली दुनिया में रूस अब चीन के पिछलग्गू है। चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग नई विश्व व्यवस्था बनाने के मिशन में है और पुतिन उनके फोलोवर।
सवाल है राष्ट्रपति शी जिन पिंग को नई विश्व व्यवस्था कैसी बनानी है? जैसे एक माफिया
गॉ़डफादर बनाता है। उन्हे मनमानी की, दादागिरी की तथा अमेरिकाी चौकीदारी को ठेंगा दिखाना है। इसकी जरूरत और थ्योरी में शी जिन पिंग अपने नए जुमले गढ़ते हुए है। ब्रिक्स बैठक में उन्होने पश्चिमी सभ्यता को टारगेट बना इक्कीसवीं सदी के राष्ट्रवादी ऊफानों की मौजूदा हकीकत में सभ्यतागत टकराव के मिक्सचर की थीसिस पेश की। कहां- मानव इतिहास किसी एक खास सभ्यता या प्रणाली के साथ समाप्त नहीं होगा। इसलिए ब्रिक्स देशों को समावेशिता और सभ्यताओं के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व तथा सद्भाव की वकालत करनी है। हमें आधुनिकीकरण के उन सभी रास्तों का सम्मान करना चाहिए जिन्हें प्रत्येक देश खुद चुनता है। ताकि वैचारिक प्रतिद्वंद्विता, व्यवस्थागत टकराव व सभ्यताओं के टकराव से बचे रहे।
यही एक शातिर माफियाई थीसिस है। इसका बेसिक अर्थ है कि मनुष्य छोड़े निज आजादी, मानवाधिकारों, मानव गरिमा के यूनिवर्सल मूल्यों को। पृथ्वी के मनुष्यों के मूलभूत मानव अधिकारों, मनुष्य गरिमा, लोकतंत्र और संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में देशों की सार्वभौमता आदि के जो यूनिवर्सल मूल्य, सिद्धांत तय हुए पड़े है उन्हे छोड़ा जाए। रूस, चीन, सऊदी अरब, इस्लामी देशों, लातिनी देशों, भारत, निरंकुश-तानाशाह देशों के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के मानदंड न अपनाए जाए। अमेरिका, पश्चिमी सभ्यता इसके हवाले जो चौकीदारी व दादागिरी बनाए हुए है वह खत्म हो नई विश्व व्यवस्था बने। इसलिए क्योंकि हर देश (शासक) ने अपना जो रास्ता (जैसे अफगानिस्तान, उत्तर कोरिया, चीन, रूस, ईरान या सैनिक-धार्मिक तानाशाही के तमाम अफ्रीकी, इस्लामी देश) अपनाया है उन सभी का सम्मान करना चाहिए जिन्हें प्रत्येक देश खुद चुनता है।
सो पुतिन यदि सीमा पार के देश से अपने को असुरक्षित समझे,या उन इलाकों को अपने पुराने अखंड सोवियत संध, सभ्यता-संस्कृति-भाषा का हिस्सा मान वहा टैंक भेजे तो यह उसका हक, उसका रास्ता। ऐसे ही चीन यदि ख्यालों, पुराने नक्शों के हवाले तिब्बत, लद्दाख, अरूणाचल को अपना मान कर भारत पर हमला करें तो यह उसका हक। रूस और चीन मनुष्यों का अपने यहां नरसंहार करें तो वह भी उसके आधुनिकीकरण का रास्ता जिसे लोकतांत्रिक पश्चिमी देशों व संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक व्यवस्था का सम्मान करना होगा क्योंकि ऐसा चीन और रूस का शी जिन पिंग व पुतिन के मार्फत देश का खुद चुना रास्ता है। दूसरों को कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए क्योंकि बकौल शी जिन पिंग हमे हर उस देश की व्यवस्था, उसकी सोच, आधुनिकीकरण के उसके रास्ते का सम्मान करना है जो उन्होने अपने लिए चुना हुआ है (We should respect all modernisation paths that each country chooses on its own…)।
जाहिर है किसी भी देश, नस्ल के बाड़े में धार्मिक, इस्लामी या कबीलाई व्यवस्था, तानाशाही से लोगों की गुलामी के प्रबंध है तो उसका बाकि देश आदर करें क्योंकि ऐसा होना देश विशेष की सभ्यतागत तासीर है। मतलब धरती की मानव चेतना यह चिंता नहीं करे कि किस-किस देश में मनुष्यों पर अत्याचार हो रहे है, कौन टैंक दौडा कर लोगों को कुचल रहा है या कौन वायरस फैला कर मानवता के लिए खतरा बन रहा है?
विषयांतर हो गया है। बेसिक बात यह माफिया आईडिया है कि धरती पर नेता यदि अपने-अपने इलाकों में ताकत के बल पर मनमानी वाला तानाशाह राज बनाएं तो उसका सम्मान हो, उन्हे छूट रहे। वे चाहे जो करें। उन्हे न कोई रोके और न टोके। न ही उनके तौर-तरीकों पर पंचायत हो या प्रतिरोध हो। पुतिन और रूस के चुने मार्ग, तौर-तरीकों का दुनिया सम्मान करें। पुतिन देश के भीतर अपने विरोधी लोगों को जहर दे कर मारे या विमान में बम रखवा बागी येवगेनी प्रिगोज़िन की हत्या कराएं या यूक्रेन पर टैंक दौडाए तो यह सब इसलिए ठिक क्योंकि रूसी सभ्यता का यही तरीका है और यह रास्ता खुद रूस ने चुना है!
सोचे, शी जिन पिंग व पुतिन दुनिया को किधर ले जाना चाहते है? धरती का गर्वनेश माफियाई तंत्र में बंट जाए। दोनों का लक्ष्य राष्ट्र, राष्ट्रवाद, सभ्यता और संस्कृति की आड में ऐसी नई वैश्विक व्यवस्था बनाना है जिससे पृथ्वी के हर हिस्से के अधिनायकवादी, विस्तारवादी अपने -अपने प्रभाव क्षेत्र बाांट माफियाई नेटवर्किंग से मनमानी करे। माफिया व्यवस्था का अपना परस्पर लेन-देन हो। अपने बैंक हो। करेंसी हो।
निसंदेह चीन क्योंकि अमेरिका से आर्शीवाद ले महाबली भस्मासुर बना है तो स्वभाविक जो शी जिन पिंग अमेरिका को ही पहले भस्म करना चाहते है। इसलिए दुनिया के तमाम अमेरिका व पश्चिम विरोधी चीन के साथ ब्रिक्स की सवारी चाह रहे है। इन सबकों चीन ने यो भी व्यापार से, कर्ज दे कर, सिल्करो़ड प्रोजेक्ट आदि से बांध रखा है। चीन का लक्ष्य है दुनिया के 30-50 देशों की गुलाम, कंगली-भूखी आबादी और उसके कुल संख्यात्मक बल से वह अपनी सभ्यता की वैश्विक तूताड़ी बजाए। दुनिया पश्चिमी बनाम चीनी सभ्यता की धुरी में बंट जाए।