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भाजपा को कौन लड़ा रहा है?

लाख टके का सवाल है कि चार राज्यों में विधानसभा के चुनाव भाजपा को कौन लड़ा रहा है? दो राज्यों में चुनाव प्रक्रिया शुरू हो गई है। जम्मू कश्मीर में पहले चरण के मतदान के लिए नामांकन खत्म हो गया है और प्रचार शुरू है, जबकि दूसरे चरण के मतदान के लिए पर्चा भरने की प्रक्रिया चल रही है। हरियाणा में पांच सितंबर को अधिसूचना जारी होगी और उसी दिन से नामांकन शुरू होगा। इन दोनों राज्यों के चुनाव नतीजे चार अक्टूबर को आएंगे और उसके तुरंत बाद चुनाव आयोग महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव की घोषणा करेगा। सवाल है कि क्या इन चार राज्यों में भाजपा की प्रदेश कमेटियां चुनाव लड़ या लड़वा रही हैं या राज्यों के प्रभारी चुनाव लड़वा रहे हैं या चारों राज्यों में नियुक्त चुनाव प्रभारियों के पास चुनाव लड़ाने का जिम्मा है या इससे अलग कोई व्यक्ति या संगठन पार्टी को चुनाव लड़ा रहा है?

ऐसा लग रहा है कि लोकसभा चुनाव के बाद से भाजपा का अपनी चुनावी मशीनरी पर से भरोसा उठ गया है। उसने भाजपा के संगठन और साथ ही राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के नेटवर्क को ताक पर रख दिया है। राष्ट्रीय स्तर पर भी भाजपा एडहॉक तरीके से काम कर रही है, यह दिख रहा है। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का विस्तारित कार्यकाल भी खत्म गया है लेकिन पार्टी ने उनको फिर से एक सेवा विस्तार देने की औपचारिकता नहीं निभाई। वे ऐसे ही अध्यक्ष बने हुए हैं। यही हाल सभी प्रदेश कमेटियों का है। हर जगह प्रदेश कमेटियां सिर्फ हैं, उनको कोई काम नहीं करना है। जिन राज्यों में चुनाव हो रहे हैं वहां भी भाजपा ने उनको किनारे ही करके रखा है।

जम्मू कश्मीर में भाजपा का पूरा संगठन ही शिथिल कर दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पसंद से राम माधव को कश्मीर घाटी की राजनीति संभालने के लिए भेजा है। चार साल पहले पार्टी महासचिव पद से हटा कर उन्हे बियाबान में भटकने के लिए छोड़ दिया गया था। वे भाजपा और संघ दोनों से बाहर थे। हालांकि परदे के पीछे से वे प्रधानमंत्री के लिए विदेश मामलों में कुछ काम करते थे लेकिन राजनीतिक भूमिका नहीं बची थी। उन्होंने चूंकि कश्मीर घाटी की पार्टियों खास कर पीडीपी के साथ अच्छे संबंध बनाए हैं और सज्जाद लोन या अल्ताफ बुखारी जैसे नेताओं के साथ भी कामकाजी रिश्ते हैं तो उनको वहां की राजनीति संभालने के लिए भेजा गया है। जम्मू की राजनीति पहले जितेंद्र सिंह कर रहे थे लेकिन अब नेशनल कॉन्फ्रेंस में लंबे समय तक रहे उनके भाई देवेंद्र सिंह को भाजपा में शामिल कराया गया है। सोचें, वे उमर अब्दुल्ला के राजनीतिक सलाहकार थे। उनके जिम्मे जम्मू की राजनीति है। भाजपा के अपने पुराने चेहरे गायब हैं। पूर्व मुख्यमंत्री निर्मल सिंह और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कविंद्र गुप्ता दोनों की टिकट की घोषणा नहीं हुई है। भाजपा ने पहले जी किशन रेड्डी को वहां का प्रभारी बनाया था लेकिन अब रेड्डी को राम माधव के साथ काम करना है।

इसी तरह हरियाणा में भाजपा ने पिछले 10 साल से गैर जाट की राजनीति की है और इसी वजह से उसको सफलता भी मिली लेकिन चुनाव से ऐन पहले उसने कांग्रेस की किरण चौधरी को पार्टी में शामिल कराया और राज्यसभा भेज दिया। दीपेंद्र हुड्डा के लोकसभा सांसद बनने से खाली हुई राज्यसभा सीट पर किरण चौधरी उच्च सदन में गई हैं। अब किरण चौधरी और उनकी बेटी श्रुति चौधरी मुख्यमंत्री नायब सैनी के साथ प्रचार कर रहे हैं। सोचें, हरियाणा में भाजपा के तमाम पुराने नेता रामबिलास शर्मा, अनिल विज, ओमप्रकाश धनखड़, कैप्टेन अभिमन्यु आदि हाशिए में हैं और परिवारवाद के कथित विरोधी नरेंद्र मोदी की पार्टी में हरियाणा के तीनों लालों के परिवार के सदस्य राजनीति कर रहे हैं। देवीलाल के बेटे रणजीत चौटाला, बंशीलाल की बहू किरण चौधरी व पोती श्रुति चौधरी और भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई, बहू रेणुका बिश्नोई और पोते भव्य बिश्नोई भाजपा की राजनीति के चेहरे हैं।

झारखंड में भाजपा की राजनीति अब पूरी तरह से हिमंत बिस्व सरमा के हाथ में है। वहां बाबूलाल मरांडी प्रदेश अध्यक्ष हैं, लक्ष्मीकांत वाजपेयी प्रदेश के संगठन प्रभारी हैं और शिवराज सिंह चौहान चुनाव प्रभारी हैं लेकिन भाजपा को चुनाव लड़ा रहे हैं चुनाव के सह प्रभारी हिमंत बस्वा सरमा। पार्टी में किसको शामिल किया जाए, किसको नहीं शामिल किया जाए, किसको टिकट दी जाएगी, किसको कहां चुनाव लड़ाने की जिम्मेदारी दी जाएगी, यह सब वे तय कर रहे हैं। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री चम्पई सोरेन को भाजपा में शामिल कराया है। अब कोल्हान की 15 सीटों पर चम्पई भाजपा को चुनाव लड़ाएंगे, जबकि उस इलाके में अर्जुन मुंडा जैसा बड़ा नेता भाजपा के पास पहले से है। कुछ दिन पहले ही मधु कोड़ा और उनकी पत्नी गीता कोड़ा भी भाजपा में शामिल हुए। ये दोनों भी कोल्हान इलाके के ही नेता हैं। प्रदेश भाजपा के सारे नेता हिमंत बिस्व सरमा के मोहताज हैं। सोचें, वे महज आठ नौ साल पहले कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए थे। अभी वे असम के मुख्यमंत्री हैं और पार्टी में अघोषित रूप से नंबर तीन की हैसियत उनकी बन गई है।

महाराष्ट्र का चुनाव सबसे ज्यादा उलझा हुआ है। पांच साल सरकार चलाने के बाद देवेंद्र फड़नवीस प्रदेश की राजनीति में और भाजपा के अंदर भी सबसे मजबूत चेहरे के तौर पर उभरे थे। लेकिन पता नहीं किस राजनीति के तहत उनको पूरी तरह से खत्म कर दिया गया। उनकी  सरकार में मंत्री रहे एकनाथ शिंदे को शिव सेना से लाकर मुख्यमंत्री बनाया गया और उनको शिंदे की सरकार में उप मुख्यमंत्री बनने को मजबूर किया गया। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिन अजित पवार के ऊपर 70 हजार करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप लगाया था उनको भी एनडीए में शामिल किया गया और उप मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन लोकसभा चुनाव में अजित पवार की पोल खुल गई। पहले तो भाजपा को लग रहा था कि शिंदे शिव सैनिकों के वोट दिला देंगे और अजित पवार मराठा वोट ला देंगे लेकिन लोकसभा चुनाव में सबको साथ मिला कर एनडीए 48 में से सिर्फ 17 सीट जीत पाया, जहां पिछली बार 41 सीटें  मिली थीं। इसी अनुपात में अगर विधानसभा में नुकसान हुआ तो पूरा एनडीए एक सौ सीट तक नहीं पहुंच पाएगा। कुल मिला कर स्थिति यह है कि देवेंद्र फड़नवीस हाशिए में हैं और एकनाथ शिंदे व अजित पवार से कोई उम्मीद नहीं है। क्या अमित शाह और भूपेंद्र यादव मिल कर चुनाव लड़ाएंगे?

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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