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महाकुंभ का मुख्य विमर्श क्या रहा?

Mahakumbh 2025Image Source: ANI

Mahakumbh 2025: 13 जनवरी को महाकुंभ की शुरुआत किस विमर्श के साथ हुई? एक तो सरकारी विमर्श था, जिसमें पहले घंटे से बताया जाने लगा कितने लाख या कितने करोड़ लोगों ने डुबकी लगा ली।

13 जनवरी की सुबह छह बजे सभी चैनल दिखा रहे थे कि एक करोड़ लोग डुबकी लगा चुके है। उसके बाद अभी तक ऐसा लग रहा है, जैसे सब कुछ तय करके रखा गया है कि कब, कितने लोगों के डुबकी लगाने की खबर दिखानी है।

यह तो सरकारी विमर्श है। इसी विमर्श के हवाले देश के चैनल और अखबार मौनी अमावस्या के हादसे के बाद घंटों तक खबर दबाए रहे।

बाद में भी मरने वालों की वास्तविक संख्या नहीं बताई गई। हालांकि हादसे के 18 घंटे बाद सरकार ने बताया कि 30 लोगों की मौत हुई है।(Mahakumbh 2025)

परंतु हादसे के दो दिन बाद खबर आई कि मेला प्रबंधन की ओर से लगाए गए ‘खोया पाया’ के पंडाल में 15 सौ लोग अपने परिजनों की तलाश में भटक रहे थे।

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बहरहाल, इस सरकारी विमर्श में भी आस्था कहीं नहीं थी, धर्म और पुण्यता का भाव कोई नहीं था। भीड़ के आंकड़े थे। परंतु इस विमर्श से अलग जो स्वाभाविक विमर्श बना वह सोशल मीडिया ने बनाया।

उसे फिर मुख्यधारा की मीडिया ने आगे चलाया। उसमें सबसे शुरुआती विमर्श सोशल मीडिया में रील बनाने वाली हर्षा रिछारिया का था। कई दिनों तक खबर चली कि महाकुंभ की सबसे सुंदर साध्वी हर्षा रिछारिया है।

हर चैनल उस पर लहालोट हो रहा था। सबको इंटरव्यू चाहिए था। सब दिखा भी रहे थे। फिर पता चला कि वह कोई साध्वी नहीं है, बल्कि रील बनाने वाली लड़की है।(Mahakumbh 2025)

लेकिन तब तक एक बड़े अखाड़े के महामंडलेश्वर उसे अपने रथ पर बैठा कर शाही स्नान करा चुके थे। बाद में उनकी इस बात के लिए आलोचना भी हुई।

दूसरा विमर्श मोनालिसा भोसले का(Mahakumbh 2025)

इसके बाद दूसरा विमर्श मोनालिसा भोसले का बना। इंदौर से आकर मेले में माला बेचने वाली बंजारा समुदाय की इस लड़की का किसी ने वीडियो बनाया और उसे सोशल मीडिया में शेयर किया।

उसमें कहा गया कि गरीब परिवार की इतनी खूबसूरत आंखों वाली लड़की माला बेच रही है। फिर सब कुछ उसके ऊपर केंद्रित हो गया।

सारे सोशल मीडिया इन्फलूएंसर्स ने उसका इंटरव्यू किया और उसकी कहानी दिखाई। मुख्यधारा के चैनलों में भी खूब खबरें चलीं।(Mahakumbh 2025)

बाद में लड़की ने खुद ही अपना सोशल मीडिया अकाउंट बना लिया और उसके चंद मिनटों में उसके वीडियो को लाखों लाख लाइक्स और व्यूज मिलने लगे।

IIT वाले बाबा अभय सिंह

इसी बीच कई दिन तक आईआईटी वाले बाबा अभय सिंह छाए रहे। उनके बारे में शुरू में खूब कहानियां चलीं कि आईआईटी से पढ़ने के बाद वे बाबा बन गए हैं और यह हिंदू धर्म की ताकत है।

फिर जल्दी ही उनके नशा करने और नशे में चूर होकर डांस वगैरह करने या अनाप शनाप बोलने के वीडियो चलने लगे।

थोड़े दिन के बाद उन पर से भी ध्यान हटा और ध्यान चला गया चिमटे से लोगों को मारने वाले बाबा के ऊपर। बाबा किसी को इंटरव्यू देते थे और किसी को चिमटे से मारते थे। यह विमर्श भी कई दिन तक चलता रहा।

फिर हिंदी फिल्मों से कई बरस पहले विदा हो चुकी ममता कुलकर्णी का पदार्पण महाकुंभ में हुआ और खबर आई कि वे महामंडलेश्वर बन रही हैं।(Mahakumbh 2025)

सो, उनके महाकुंभ में डुबकी लगाने और महामंडलेश्वर बनने की कहानी कई दिन चली। इस बीच पहले दिन से यह कहानी चलती रही कि कौन वीआईपी आया, उसके लिए कैसे रास्ते खाली कराए गए, वह कहां ठहरा, कैसे डुबकी लगाई, आदि आदि।

सोचें, कथित तौर पर 144 साल बाद जो महासंयोग बना है उसमें आस्था, पूजा ध्यान की जगह हर्षा रिछारिया, मोनालिसा भोसले, अभय सिंह, ममता कुलकर्णी का विमर्श चलता रहा और फिर सबसे बड़े दिन भगदड़।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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