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ट्रंप से क्या सीखना चाहिए?

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डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति की शपथ लेने के तीन हफ्ते बाद रेसिप्रोकल टैरिफ यानी जैसे को तैसा शुल्क की व्यवस्था लागू करने की घोषणा करते हुए कहा कि तीन हफ्ते शानदार रहे। उन्होंने इन तीन हफ्तों में अमेरिका उत्पादों पर ज्याद आयात शुल्क लगाने वाले देशों के उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाया। अवैध प्रवासियों को जहाज में भर कर उनके देशों में भेजना शुरू किया।

सरकारी नौकरियों में छंटनी और उसे सक्षम बनाने का काम शुरू किया। भूगोल बदलने का काम अलग शुरू किया। सीएनएन के पत्रकारों की एंट्री राष्ट्रपति भवन में इसलिए बंद हो गई है क्योंकि सीएनएन ने मेक्सिको की खाड़ी को अमेरिका की खाड़ी लिखना शुरू नहीं किया है, जबकि ट्रंप उसके आधिकारिक कागजातों पर दस्तखत कर चुके हैं। उन्होंने अमेरिका को डब्लुएचओ से और पेरिस समझौते से अलग कर लिया है और गाजा से सभी 23 लाख फिलस्तीनियों को निकाल कर वहां एक रिसोर्ट सिटी बनाने का अजीबोगरीब सुझाव दिया है।

सवाल है कि इसमें से भारत क्या सीख सकता है और क्या अपने यहां लागू कर सकता है? सबसे पहले तो अवैध घुसपैठियों की जो चर्चा दशकों से भारत में हो रही है उन्हें निकालने और नए घुसपैठियों को भारत में घुसने से रोकने के उपाय किए जाने चाहिए। यह राजनीतिक रूप से भारतीय जनता पार्टी के अनुकूल है तो आर्थिक और सामाजिक रूप से भी भारत के लिए सही है। खबर है कि सरकार अवैध घुसपैठियों को रोकने के लिए नया कानून लाने वाली है। लेकिन इससे ज्यादा अच्छा सबक नौकरशाही को योग्य और सक्षम बनाने के मामले में लिया जा सकता है। ध्यान रहे भारत में लालफीताशाही दूसरे किसी भी लोकतांत्रिक देश के मुकाबले ज्यादा है और ज्यादातर फैसले नौकरशाही की वजह से अटकतें हैं।

ट्रंप ने राष्ट्रपति का चुनाव जीतते ही डीओजीआई यानी डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशियंसी का गठन किया। इलॉन मस्क इसके प्रमुख है। इस विभाग का काम सरकारी कर्मचारियों की छंटनी करने, अमेरिका के सरकारी विभागों को ज्यादा सक्षम बनाने का है। इससे कामकाज में सरलता आएगी और वेतन भत्तों पर होने वाले खर्च में कटौती होगी। सरकार नए और विशेषज्ञ लोगों की सेवा लेकर काम करेगी। भारत में लैटरल एंट्री के जरिए विशेषज्ञों की भरती का अभियान चला था लेकिन जैसे सभी प्रयोग भारत में फेल हुए वैसे ही यह भी फेल हो गया।

इसका पहला बैच पांच  साल की सेवा देकर रिटायर भी हो गया लेकिन उससे भारतीय नौकरशाही में क्या कोई गुणात्मक परिवर्तन आया? यह प्रयोग भी भाई भतीजावाद और उच्च पदों पर बैठे लोगों के करीबी लोगों की भर्ती कराने से विफल हुआ। हकीकत यह है कि भारत में अमेरिका के मुकाबले नौकरशाही बहुत अक्षम है और काम अटकाने वाली है। साथ ही वेतन, भत्तों, पेंशन यानी इस्टैबलिशमेंट पर सरकारों का सबसे ज्यादा खर्च है। तकनीक के इस्तेमाल और विशेषज्ञों की सेवा के सहारे इसका आकार छोटा करके खर्च भी घटाया जा सकता है और नौकरशाही की गुणवत्ता को भी बेहतर किया जा सकता है।

ट्रंप ने स्टील और एल्यूमिनियम के आयात पर अतिरिक्त शुल्क लगाया है और यह दुनिया भर के देशों पर लागू होगा। इससे अमेरिका में इन धातुओं से बने उत्पाद और इन पर आधारित उद्योगों में समस्या होगी और महंगाई बढ़ेगी लेकिन अगर उन्होंने इसे ठीक तरीके से हैंडल किया तो इन धातुओं पर आधारित उद्योगों का अमेरिका में विकास हो सकता है। पिछली बार ट्रंप ऐसा नहीं कर पाए थे क्योंकि उनके आयात शुल्क बढ़ाने से कंपनियों ने चीन को तो छोड़ा लेकिन वे अमेरिका लौटने की बजाय वियतनाम, फिलिपींस आदि देशों में चली गईं।

भारत का मेक इन इंडिया अभियान अभी तक सफल नही हो सका है। ट्रंप से सबक लेकर भारत भी चीन के उत्पादों पर पाबंदी लगा कर या अतिरिक्त शुल्क लगा कर उन्हें रोक सकता है और वहां से आयात होने वाली वस्तुओं के कल कारखाने भारत में लगवा सकता है। इससे रोजगार बढ़ेगा और आर्थिक मामलों में आत्मनिर्भरता आएगी। अगर इस काम को भारत ने ठीक तरीके से किया तो अमेरिका द्वारा दुनिया भर के देशों पर आयात शुल्क बढ़ाने का लाभ भी भारत को हो सकता है।

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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