Year 2025: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस के प्रमुख दोनों सितंबर में 75वें वर्ष में प्रवेश करेंगे। संघ के सौ साल विजयादशमी के दिन पूरे होंगे।
संयोग है जो इस वर्ष दो अक्टूबर को विजयादशमी भी है। संघ के शताब्दी वर्ष का समापन है तो उस दिन के समारोह के बाद मोहन भागवत, अपनी 75वीं वर्षगांठ पर रिटायर होने की घोषणा भी कर सकते है!
नरेंद्र मोदी और मोहन भागवत दोनों 75 वर्ष के हवाले सेवानिवृत्त होने का ऐलान या इरादा जतलाएं, तो आश्चर्य नहीं होगा।
उधर 2025 में सोनिया गांधी 79 वर्ष की होगी वही मल्लिकार्जुन खड़गे 83 वर्ष के। स्वाभाविक है भारत के पक्ष और विपक्ष, भाजपा तथा कांग्रेस में वह संभव है जो उम्र का तकाजा है।
इस वर्ष संघ, भाजपा और कांग्रेस में जाने अनजाने वह राजनीति होनी है, जिससे अगली पीढ़ी की बिसात बिछे।
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पच्चीस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कर्ता धर्ताओं में अजीत डोवाल 80 वर्ष और प्रमुख सचिव पीके मिश्रा 77 वर्ष के होने हैं वही राजनाथ सिंह 74, नितिन गडकरी 68 और अमित शाह 61 वर्ष के होंगे।
उधर मोहन भागवत के नंबर दो दत्तात्रेय होसबोले 71वें वर्ष में प्रवेश करेंगे। उनके बाद के छह सह सरकार्यवाह संगठनात्मक जिम्मेवारियों से अपेक्षाकृत पृष्ठभूमि में ओझल हैं।
लेकिन प्रचारक प्रधानमंत्री 75 वर्ष की उम्र में इस वर्ष संघ को लेकर वैसे ही सोचते हुए हैं, जैसे कभी अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी ने सोचा था।
अर्थात भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का यह बयान कि भाजपा अब बड़ी हो गई है उसे आरएसएस की जरूरत नहीं है!
कुंभ के बाद भाजपा अध्यक्ष नियुक्त
उस नाते सन् 2025 में संघ के सौ वर्षों के इतिहास में मोहन भागवत की कमान का वह मोड़ है, जिसमें संघ के हाथों से फिसल कर भाजपा पूरी तरह सरकार याकि प्रधानमंत्री, याकि सत्ता के अधीन हो।
भाजपा और संघ की राजनीति का तात्कालिक बड़ा मसला पार्टी अध्यक्ष का है। अपने को लगता है संभवतया मार्च में कुंभ के बाद मोदी-शाह अपने माफिक भाजपा अध्यक्ष नियुक्त कर लेंगे।
संघ के पास अपना कोई नाम नहीं है। वह अधिक से अधिक शिवराज सिंह चौहान के लिए ‘हां’ कह सकती है। नाम की लिस्ट मोदी-शाह ही देंगे।
कुंभ 2025 में बड़ी राजनीति होगी। साधु-संतों में योगी आदित्यनाथ की महिमा का वैसे ही गान होगा जैसे 2013 में नरेंद्र मोदी का हुआ था। कह सकते हैं योगी ने बहुत कायदे से हिंदुओं का भभका अपने लिए बना लिया है।
अमित शाह ने अपनी खामोख्याली में योगी आदित्यनाथ की इस तरह की पोजिशनिंग का हिसाब नहीं लगाया होगा।
अर्थात एक तरफ योगी पर नरेंद्र मोदी हाथ वही संघ में भी उनको ले कर चाह और कुंभ के समग्र हिंदू समाज, साधु-संतों के सम्मेलन में योगी का दो टूक जयकारा!
कुंभ में साधु-संतों की आवाज होगी
वैसे इस पहेली का अपने पास जवाब नहीं है कि तुलसी पीठ के पीठाधीश्वर रामभद्राचार्य ने मोहन भागवत के खिलाफ मोर्चा क्यों बनाया?
मेरा मानना है उन्होंने जो बोला वह कुंभ में साधु-संतों का संघ के खिलाफ हुंकारा हो सकता है। योगी की वाह, वाह तथा मोहन भागवत और संघ की आलोचना मुमकिन है।
रामभद्राचार्य के बोले हुए वाक्य ही कुंभ में साधु-संतों की आवाज होगी। रामभद्राचार्य के कहे इन वाक्यों को ध्यान में रखें, ‘संघ केवल राजनीति की रोटी सेंकता है।
जब संघ नहीं था तब भी हिंदू धर्म था। मंदिर, मस्जिद मामले में हम किसी को छेड़ेंगे नहीं, कोई हमें छेड़ेगा तो छोड़ेंगे भी नहीं। हमको अपना अधिकार चाहिए बस, उनका अधिकार नहीं चाहिए’।
रामभद्राचार्य ने कहा, ‘मोहन भागवत एक संगठन के संचालक हैं। वो हिंदू धर्म के संचालक नहीं हैं। भागवत का बयान अदूरदर्शी है। उनका बयान तुष्टिकरण से प्रभावित है। वो अपनी राजनीति करते हैं’।
कुंभ 2025 हिंदू राजनीति में मील का पत्थर
उस नाते कुंभ 2025 हिंदू राजनीति में मील का पत्थर है। यदि रामभद्राचार्य की भावनाओं के अनुसार साधु-संतों का प्रस्ताव पास हुआ और योगी ही अकेले हिंदुओं को उनके अधिकार दिलवाने वाले युगपुरूष बतलाए गए तो मेरा मानना है कि नरेंद्र मोदी, सुरेश सोनी का खेमा 2027 के विधानसभा चुनाव तक योगी की कीर्ति स्थापना में आहूति देते हुए होंगा।
इसलिए 2025 में प्रधानमंत्री अपनी कैबिनेट में योगी को रक्षा मंत्री जैसी स्थिति दे कर उन्हें लखनऊ से दिल्ली शिफ्ट करें यह मुमकिन नहीं।
मैंने काफी पहले यह विश्लेषण किया था कि एक गुजराती अपने उत्तराधिकार में दूसरे गुजराती याकि अमित शाह को आगे करे यह व्यावहारिक नहीं (याद करें गांधी ने सरदार पटेल को नहीं बनाया था) है।
फिर मोदी तो गुजरात में अपने स्थायी वर्चस्व, अपनी ही धुरी बनवाए ऱखने के दस वर्षों से लगातार सिग्नल देते हुए हैं।
स्वाभाविक है जो अपने बाद की पताका, गौरवगाथा में वे योगी आदित्यनाथ को ही उपयोगी तथा प्रभावी मानें। उन्हें और उनके शुकराचार्य सुरेश सोनी, आनंदी बेन पटेल आदि सभी का यह बेसिक बोध होगा।
दिल्ली में भाजपा की, बिहार में जीत
संघ, भाजपा और हिंदू राजनीति जैसा कोई अहम मसला कांग्रेस और विपक्ष में नहीं है। दिल्ली और बिहार दो ही जगह चुनाव है। दिल्ली में भाजपा हार जाएगी और बिहार में जीत जाएगी।
यह संभव नहीं कि राहुल गांधी समय के तकाजे में प्रियंका गांधी वाड्रा को संगठन की जिम्मेवारी दें। हिमाचल, कर्नाटक, तेलंगाना में कांग्रेस की सरकारें हड़बड़ाएंगी।
विपक्ष के क्षत्रपों की उम्र में मोदी अपनी कीर्ति के मौके तलाशेंगे। जैसे नीतीश कुमार या नवीन पटनायक, ममता बनर्जी को भारत रत्न बांटकर प्रदेश में उनके जनाधार को वैसे ही अपना बनाना जैसे चरण सिंह, कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न बांटकर मोदी ने इन्हे अपनी विरासत से नत्थी किया है।
हालांकि अमित शाह के लिए सावरकर या संघ के किसी प्रमुख को भारत रत्न से नवाजना, योगी के आगे अपने हिंदुत्व को अधिक विश्वसनीय बनाने का मौका है। मगर क्या नरेंद्र मोदी राजी होंगे?