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इतिहास देख रहा है!

वाक्य जोरदार है। शुक्रवार सुबह राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अमेरिकी संसद में लोकतंत्र पर खतरे की चिंता में चेताया, इतिहास देख रहा है! जाहिर है डोनाल्ड ट्रंप की संभावी वापसी की अमेरिका में चिंता है। ऐसी चिंता लोकतंत्र के कथित सुप्रीमो अमेरिका में है तो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में इतिहास का देखना अलग तरह से है। दोनों देश अब उस मशीनी लोकतंत्र के मारे हैं, जिसमें सत्ता सर्वोपरि है। और नेता व मतदाता सभी के दिमाग पर ताला लगा है। लोग भक्त हैं। अंधे भक्त हैं। डोनाल्‍ड ट्रंप के भक्त और नरेंद्र मोदी के भक्त।

पूरे देश के लिए स्टेट ऑफ यूनियन का भाषण देते हुए बाइडेन ने अच्छी-अच्छी, तर्कसंगत, अमेरिकी लोकतंत्र की मूल तासीर अनुसार बात कही। लेकिन उनके भाषण के बाद डोनाल्ड ट्रंप की भक्त, 42 वर्ष की सीनेटर केटी ब्रिट (गले में क्रास) ने सीमा पर शरणार्थियों की भीड़, उनसे देश को खतरे, बलात्कार आदि बुरे दिनों की कुटिल भाव-भंगिमा में ऐसी प्रतिक्रिया दी मानों बाइडेन राज में अमेरिका डूब गया है।

और उसका बचना, फिर से महान बन सकना केवल डोनाल्ड ट्रंप के वापिस राष्ट्रपति बनने से संभव है। ध्यान रहे रिपब्लिकन पार्टी में प्रौढ़-बुजुर्ग चेहरों की भरमार है। मगर उनमें सीनियर कोई नहीं बोला। वे मौन रहे और पार्टी को कब्जाए हुए डोनाल्ड ट्रंप ने जहर उगलने के लिए वैसी ही प्रवक्ता को बैठाया जैसे मोदीमय भाजपा अपने प्रवक्ता उतारती है।

समानता देखें। अमेरिका में शरण लेने के लिए सीमा पर जमा लोग डोनाल्ड ट्रंप के लिए तुरूप का कार्ड हैं। जो देश विदेशी अप्रवासियों से बना है उसमें ट्रंप ने घर-घर यह मैसेज बना दिया है कि बाहर से लोगों का आना अमेरिका की तबाही है। इधर, भारत में मोदी सरकार ने विदेशी नागरिकों को देश से खदेड़ने के लिए बने नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए की चुनाव से ठीक पहले अधिसूचना का हल्ला बनाया है।

अमेरिका को बचाने, ग्रेट कंट्री बनाने, भारत को बचाने, विकसित देश बनाने और विपक्ष सर्वाधिक करप्ट और पप्पू लोगों की जमात का नैरेटिव डोनाल्ड ट्रंप का जहां एकसूत्री प्रचार है वही नरेंद्र मोदी का भी है।

और इतिहास देख रहा है, नरेंद्र मोदी जीतते हुए हैं तो डोनाल्ड ट्रंप भी दुबारा राष्ट्रपति बनने की कगार पर हैं। दोनों की ताकत क्या? लोगों की भक्ति। दिमाग पर ताले लगे हुए होना। सब कुछ भक्ति जनित। दोनों देशों में भक्ति ने लोकतंत्र के मायने बदल दिए हैं। मैं खुद दक्षिणपंथी हूं लेकिन दुनिया के लोकतांत्रिक देशों में इन दिनों दक्षिणपंथी हवा की वजह दिमाग और तर्क नहीं है, बल्कि भय और भक्ति है।

मेरा मानना है कि हिसाब से वामपंथी लोग विचार की भावना में बहके होते हैं और कुतर्कों से मनुष्य स्वतंत्रता की महत्ता से खिलवाड़ करते हैं। एक वक्त था जब पूरी दुनिया वामपंथियों की भक्ति (स्टालिन, ख्रुश्चेव, माओ, चेग्वेरा, पोलपोट व देशी कॉमरेड डांगे, नबंदूरीपाद, ज्योति बसु, चारू मजूमदार आदि) से तौबा किए हुए थे।

अब उलटा है। अब डोनाल्ड ट्रंप, नरेंद्र मोदी, फ्रांस की मरीन ले पेन, डच नेता गीर्ट वाइल्डर्स, इटली की जियोर्जिया मेलोनी आदि दक्षिणपंथी नेता अपने-अपने राष्ट्रवाद में भय और भक्ति को ले आए हैं। यह भूल बैठे हैं कि उनका मूल लोकतंत्र, एडम स्मिथ जैसों के विचार से था।

भारत के संदर्भ में संघ-भाजपा के पूर्वज सावरकर, गोलवलकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे वे सनातनी थे, जिनका जीवन कर्मकांडों से दूर था। दिखावे की धार्मिकता से कोसों दूरी थी। और कभी भी किसी ने व्यवहार और जीवन में अपने को अवतार या भक्तों के परमपिता परमेश्वर बनने के नुस्खे नहीं अपनाए।

मैं कहां से शुरू हुआ और कहा जा पहुंचा। मगर इन बातों को इतिहास तो देखता हुआ होगा। इतिहास देख रहा है नरेंद्र मोदी कैसे चुनाव लड़ते है? लोकतंत्र के नाम पर क्या-क्या होता है? लोकतंत्र की संस्थाओं का कैसा बाजा बजा है? बुद्धि और मीडिया कैसे मुगल काल की चारण, भक्ति में है। हाल में मुझे हिंदुओं की गुलाम-भक्त मनोदशा की अपनी थीसिस में हैरान करने वाला चारण पुराण मिला। बात अकबर के समय की है।

दिल्ली के बादशाह की भक्ति में 1595 में कछवाहों के लिए लिखे गए एक लेख में, नरोत्तम (हिंदू-दरबारी चारण) ने मुगल सम्राट अकबर को ‘हिंदू शासन’ स्थापित करने का श्रेय दिया, जिसे तुर्कों और धार्मिक संस्कारों के विपरीत परिभाषित किया गया था। उन्होंने घोषणा की कि ‘दिल्ली के स्वामी अकबर की प्रशंसा चारों दिशाओं में होती है। उनका हिंदू शासन (हिंदू राजा) है। कौन कहता है कि यह तुर्क है’?

नरोत्तम ने आगे कहा कि अकबर गंगा में स्नान करता है, हिंदू देवताओं की पूजा करता है, वेदों और पुराणों का सम्मान करता है और खुद अर्जुन का अवतार है। इतना ही नहीं नरोत्तम ने अंत में यह भी कहा कि, ‘अकबर हिंदुओं से प्यार करता है, वह तुर्कों के खिलाफ हो गया है’।

सोच सकते हैं इतिहास ने भारत को देखते-देखते क्या-क्या देखा है! नरेंद्र मोदी के राज को कैसे देख रहा होगा? क्या वह बार-बार, लगातार दिल्ली दरबार और उसकी प्रजा को एक ही दशा में नहीं देखता?

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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