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वहां अमल यहां झांसा!

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भारत दस वर्षों से नाकाबिल-लालफीताशाह-भ्रष्ट नौकरशाही से ‘मेक इन इंडिया’ का फर्जीवाड़ा बनाए हुए है। चीन पर निर्भरता कम करने, स्वदेशीकरण का राग अपनाए हुए है। डिजिटल क्रांति, चिप निर्माण, एआई महाशक्ति की बातें करते हुए है। ऐसी अमेरिका में, डोनाल्ड ट्रंप, बाइडेन, के राज की भी प्राथमिकता है। दोनों की कोशिशों में अमेरिका का क्या निचोड़ है?  अमेरिका चीन को चिप निर्माण में पछाड़ता हुआ है। अमेरिका ने चीन को नई तकनीक, नवोन्मेष ट्रांसफर नहीं होने के सख्त कानून बनाए। चिप, ग्रीन एनर्जी तकनीक सबमें अब चीन पर उसकी निर्भरता खत्म है। बाइडेन के शासन में भी फैसले हुए और ट्रंप के राज में भी। चीन खतरा है इस बात को अमेरिका और पश्चिमी देशों ने जब बूझा तो वह हर कोशिश हुई, जिससे चीन की जरूरत ही नहीं रहे। तभी ट्रंप का बनवाया प्राइवेट स्टारगेट प्रोजेक्ट बेमिसाल है तो यह ऐलान मामूली नहीं है कि ग्रेट अमेरिका का लक्ष्य मंगल ग्रह है!

ट्रंप ने ओपन आईए, ऑरेकल और सॉफ्ट बैंक के साझे के स्टारगेट प्रोजेक्ट की घोषणा की है। पांच सौ अरब डॉलर की यह परियोजना अमेरिका के औद्योगीकरण को सुरक्षित रखेगी और अमेरिका के साथ साथ उसकी सहयोगियों की भी सुरक्षा सुनिश्चित करेगी। ट्रंप ने अमेरिका को क्रिप्टो करंसी का वर्ल्ड कैपिटल बनाने का ऐलान किया है। उन्होंने सऊदी अरब को तेल के दाम घटाने और अमेरिका में निवेश बढ़ाने को कहा है। अगर खाड़ी के देश राजी नहीं होते हैं तो खुद ट्रंप अमेरिका में तेल का उत्पादन इतना बढ़ा देंगे कि दुनिया में दाम कम हो जाएंगे।

शोर है कि अमेरिका अवैध प्रवासियों को बाहर निकालने को प्राथमिकता बनाए हुए हैं और आते ही इसका आदेश दिया है। लेकिन क्या यही काम बाइडेन नहीं कर रहे थे? बाइडेन के प्रशासन ने अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे सैकड़ों भारतीयों को जहाज में लाद कर भारत भेजा था। सिर्फ पिछले साल यानी 2024 में बाइडेन प्रशासन ने दो लाख 70 हजार अवैध प्रवासियों की पहचान कर उनको वापस उनके देश भेजा था। एक रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप के पिछले कार्यकाल के मुकाबले ज्यादा अवैध प्रवासियों को बाइडेन प्रशासन ने निकाला। इस बार ट्रंप उससे ज्यादा निकाल कर बाइडेन का रिकॉर्ड तोड़ेंगे। जाहिर है कि राष्ट्रपति बाइडेन हों या ट्रंप उनके लिए अवैध प्रवासियों की समस्या समान रूप से गंभीर रही है।

लेकिन ठीक विपरीत भारत में देखें। भारत में अवैध प्रवासी सिर्फ वोट की राजनीति का हिस्सा हैं। भाजपा को अवैध घुसपैठियों का मुद्दा उठा कर केवल वोट लेना है। घुसपैठियों को निकालना नहीं है। जबकि कांग्रेस और दूसरी पार्टियों को घुसपैठिए दिखाई ही नहीं देते हैं।

ट्रंप ने नागरिकता को लेकर जो फैसला किया है वह भी अमेरिका फर्स्ट की नीति के तहत है। उनका प्रशासन यह नहीं कह रहा है कि जन्म के आधार पर नागरिकता देना बंद कर देंगे। उसमें सिर्फ इतना सुधार किया जा रहा है कि अगर माता पिता दोनों अवैध रूप से अमेरिका में रह रहे हैं तो उनके बच्चों को अमेरिकी नागरिकता नहीं देंगे। इसी तरह शार्ट टर्म वीजा पर रह रहे लोगों के बच्चों को भी अमेरिकी नागरिकता नहीं मिलेगी। अमेरिका में जन्म से नागरिकता के दो नियम हैं। पहला, उसकी धरती पर जन्म लेना उसका नागरिक होगा और दूसरा अमेरिकी माता पिता के बच्चे चाहे दुनिया में कहीं भी जन्म लें उनको अमेरिकी नागरिकता मिलती है। अब वे पहले नियम में बदलाव करना चाहते हैं।

ट्रंप के कुछ फैसले निश्चित रूप से विवादित हैं। कैपिटल हिंसा में शामिल लोगों की माफी भी उनमें से एक है। लेकिन उन्होंने जो आर्थिक फैसले किए हैं। चाहे वह कस्टम शुल्क से जुड़ा फैसला हो या ‘ड्रिल बेबी ड्रिल’ के जरिए अमेरिका की धरती के नीचे दबे प्राकृतिक ईंधन को निकालने का फैसला हो या क्रिप्टोकरंसी का मामला हो या स्टारगेट प्रोजेक्ट हो ये सारे फैसले अमेरिका के हित में साबित होंगे। अभिव्यक्ति की आजादी को एब्सोल्यूट करना उनका बड़ा फैसला है। अमेरिका के संविधान का पहला प्रावधान अभिव्यक्ति की आजादी है। भारत के संविधान में भी इसे बहुत महत्व दिया गया था लेकिन देश की चुनी हुई सरकार ने संविधान का जो पहला संशोधन किया उसी में अभिव्यक्ति की आजादी को शर्तों के अधीन कर दिया। बहरहाल, डब्लुएचओ और पेरिस समझौते से बाहर निकलने का ट्रंप का फैसला विवादों में है। इसका क्या असर होता है उसका आकलन समय करेगा। लेकिन यह तो दिख ही रहा है कि जलवायु और स्वास्थ्य दोनों पर दुनिया के बेईमान कारोबारियों, कई देशों के दागी, आरोपी नेताओं और संदिग्ध गैर सरकारी संगठनों का कब्जा है। तभी यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिका के बाहर निकलने के बाद मेडिकल क्षेत्र में क्या होता है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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