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भ्रष्टाचार के मुद्दे से भरोसा उठा

आजाद भारत में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सत्ता बदलती रही है। सबको याद होगा कि कैसे बोफोर्स घोटाले की चर्चा से राजीव गांधी की चार सौ से ज्यादा लोकसभा सीट वाली कांग्रेस हारी थी और 2जी, कोयला आदि के घोटालों की चर्चा से मनमोहन सिंह की सरकार सत्ता से बाहर हुई थी। 1996 में भी पीवी नरसिंह राव की सरकार के जाने के पीछे एक कारण सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप भी थे। अरविंद केजरीवाल का एक परिघटना के रूप में उभरना भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लोगों की नाराजगी का सबसे बड़ा सबूत है। लेकिन दुर्भाग्य से अरविंद केजरीवाल की वजह से ही भ्रष्टाचार के मुद्दे से लोगों का भरोसा उठा है। केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार भी कम जिम्मेदार नहीं है लेकिन मोदी के मुकाबले केजरीवाल ने ईमानदार राजनीति का ज्यादा प्रचार किया था और जब लोगों ने देखा कि उनके जीवन में इससे कोई बदलाव नहीं आया और केजरीवाल भी वैसी ही राजनीति करते रहे, जिसे बदलने का दावा करके वे आए थे तो लोगों का भारी मोहभंग हुआ। ऐसा नहीं है कि यह मोहभंग हमेशा के लिए है। हो सकता है कि कुछ समय के बाद फिर कोई मसीहा निकले और भ्रष्टाचार के मसले पर लोगों को जागरूक करे लेकिन फिलहाल इसकी संभावना नहीं दिख रही है।

सवाल है केजरीवाल ने ऐसा क्या किया, जिससे लोगों का भ्रष्टाचार के मुद्दे से भरोसा उठ गया? इस सवाल के जवाब में कई काम गिनाए जा सकते हैं। पहला, केजरीवाल ने दिल्ली में सरकार बनने के बाद ऐलान किया था कि भ्रष्टाचार खत्म करेंगे। उन्होंने अपनी तरफ से तो कोई पहल नहीं की उलटे आम लोगों से कहा कि अगर कोई सरकारी कर्मचारी रिश्वत मांगता है तो उसकी वीडियो बना लें और उसे सरकार को भेजें। इसके लिए व्हाट्सऐप के नंबर भी जारी किए गए। सोचें, यह कितनी अव्यावहारिक बात है? क्या यह संभव है कि कोई मोबाइल चला कर वीडियो बनाए और कर्मचारी उससे रिश्वत मांगे? ऐसा तो तभी हो सकता था, जब आम नागरिक स्टिंग जर्नलिस्ट बन जाए! इसके बावजूद सवाल है कि केजरीवाल सरकार की इस बेहद अव्यावहारिक और बचकानी योजना का क्या हुआ? इसमें कितने लोगों ने वीडियो या ऑडियो रिकॉर्ड करके सरकारी कर्मचारियों की शिकायत की और उसमें कितने लोगों पर कार्रवाई हुई? इसका कोई आंकड़ा सरकार जारी नहीं  करती है। अब वह योजना चल रही है या बंद हो गई इसके बारे में भी किसी को जानकारी नहीं है।

दूसरा, केजरीवाल की पहली सरकार से उनके विधायकों और मंत्रियों को भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगे थे। सबसे पहला शिकार जितेंद्र तोमर हुए थे, जिनकी फर्जी कानून की डिग्री पकड़ी गई थी। सोचें, आज केजरीवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री देखने के लिए इस अदालत से उस अदालत तक भाग रहे हैं, लेकिन उन्होंने खुद ही एक फर्जी कानून की डिग्री वाले नेता को कानून मंत्री बनाया था। हैरानी की बात है कि वे अब भी आम आदमी पार्टी के विधायक हैं। यानी उनको बाद में भी टिकट दी गई।

तीसरा, अरविंद केजरीवाल को पहली बार 2018 में राज्यसभा सदस्य बनाने का मौका मिला तो उन्होंने दिल्ली की तीन सीटों में से दो सीटों पर दो बिल्कुल अनजान कारोबारियों को टिकट दे दी। संजय सिंह पार्टी के नेता थे तो उनको राज्यसभा भेजा गया। लेकिन किसी को केजरीवाल ने यह बताना जरूरी नहीं समझा कि एनडी गुप्ता और सुशील गुप्ता को किस योग्यता के आधार पर राज्यसभा में भेजा गया? इससे अपने आप यह मैसेज बना कि जिस तरह से दूसरी पार्टियां किसी फायदे के लिए कारोबारियों को राज्यसभा भेजती हैं वैसे ही केजरीवाल ने भी किया है। दूसरी बार उनको 2022 में पंजाब से सात राज्यसभा सांसद बनाने का मौका मिला तो उन्होंने पार्टी के नेता राघव चड्ढा के अलावा बाकी छह सीटों पर इधर उधर के कारोबारी, खिलाड़ी आदी भर दिए। लोग इतने मूर्ख नहीं हैं कि उनको नहीं पता है कि हजारों करोड़ रुपए का कारोबार करने वालों को आपने किस वजह से राज्यसभा में भेजा है।

चौथा, केजरीवाल ने अपनी राजनीति के शुरुआती दिनों में देश के भ्रष्ट नेताओं की एक सूची बनाई थी। शरद पवार से लेकर लालू प्रसाद और मुलायम सिंह यादव तक के उसमें नाम थे। एक बार तो प्रेस कांफ्रेंस करके उन्होंने 28 नेताओं की एक सूची जारी की थी। बाद में सबने देखा कि कैसे वे इन्हीं नेताओं के साथ मंच साझा करने लगे या अपने राजनीतिक फायदे के लिए इनके दरवाजे पर चक्कर काटने लगे। उन्होंने कई दिवंगत अरुण जेटली से लेकर नितिन गडकरी तक पर अनेक आरोप लगाए और बाद में माफी मांगी। इन सबसे भी वैकल्पिक  राजनीति से लोगों का भ्रम टूटा।

पांचवां, केजरीवाल और उनकी पार्टी के नेताओं ने संकल्प जताया था कि उनकी सरकार बनेगी तो वे बड़ा बंगला नहीं लेंगे, सरकारी गाड़ी नहीं लेंगे और सुरक्षा नहीं लेंगे यानी वीआईपी कल्चर नहीं अपनाएंगे। लेकिन पिछले करीब नौ साल में इसकी पोल खुल गई है। केजरीवाल ने कई बंगले मिला कर अपने लिए एक बंगला बनवाया, जिसकी रेनोवेशन पर 50 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए गए। मीडिया की खबरों के मुताबिक उनके छह लोगों के परिवार के लिए 28 लोगों का स्टाफ काम करता है और वे कई गाड़ियों के काफिले से चलते हैं। उनके लिए भी रूट लगता है और ट्रैफिक रोका जाता है। उनकी पार्टी के कई राघव चड्ढा जैसे युवा नेता भी जेड सुरक्षा घेरे में घूमते हैं और पंडारा रोड के टाइप सात के बंगले के लिए ऐसे कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं कि अगर वह बंगला नहीं मिला तो जीवन व्यर्थ जाएगा। केजरीवाल के सारे नेता बड़े  बंगलों में रहते हैं और बड़ी गाड़ियों के काफिले लेकर चलते हैं।

छठा, दिल्ली में फरवरी 2015 से केजरीवाल की पूर्ण बहुमत की सरकार है और पिछले एक साल से दिल्ली नगर निगम पर भी उनका कब्जा है। इसके बावजूद दिल्ली सरकार या एमसीडी का रिश्वत के मामले में क्या रिकार्ड है इसे नागरिक जानते है। सड़कों पर कूड़ा पड़ा है। नालियां जाम हैं और सबने देखा कि कैसे बाढ़ और बारिश का पानी दिल्ली की गलियों और लोगों के घरों तक पहुंचा। अभी पूरी दिल्ली गैस चैम्बर बनी है। हवा जहरीली हो गई है। केजरीवाल ने पंजाब में सरकार बनने पर पराली जलाने से रोकने और दिल्ली के लोगों को राहत देने का वादा किया था। लेकिन न तो पराली जलना बंद हुआ और न दिल्ली में प्रदूषण कम करने का कोई उपाय हुआ।

सातवां, एक के बाद घोटाले खुले हैं। केजरीवाल हर मामले के लिए केंद्र सरकार की एजेंसियों को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते हैं। पंजाब में कई विधायक और मंत्री राज्य की एजेंसियों द्वारा रिश्वत के आरोप में पकड़े गए हैं। हवाला के आरोप में दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन महीनों जेल में रहे तो शराब नीति घोटाले के आरोप में उप मुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदया आठ महीने से ज्यादा समय से जेल में हैं। उसी आरोप में राज्यसभा सांसद संजय सिंह भी जेल में हैं। इस तरह की सूची बहुत लम्बी हो जाएगी। लेकिन इन सबका कुल जमा निचोड़ यह है कि जनता का मोहभंग हुआ। उसको लगा कि सब एक जैसे हैं और यही कारण है कि आज ईमानदारी की राजनीति का कहीं कोई मतलब नहीं रह गया है। चुनाव में नेता भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं और जीतने के बाद उसे भूल जा रहे हैं। कर्नाटक में 40 फीसदी कमीशन का आरोप भाजपा सरकार पर कांग्रेस ने लगाया था लेकिन सरकार में आने के बाद उसने किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। तभी अब पार्टियां जातीय समीकरण या जाति गणना, आरक्षण और मुफ्त की रेवड़ियों पर चुनाव लड़ रहे हैं।

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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