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चुनाव और मोदी का खाली लिफाफा!

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले विधानसभा सेमीफाइनल में अचानक लिफाफा खुला। गुर्जर समुदाय के आस्था केंद्र देवडूंगरी स्थित देवनारायण मंदिर के पुजारी हेमराज पोसवाल ने बात-बात में लिफाफा खोल दिया। बात राजस्थान के भीलवाड़ा में आसींद कस्बे के पास मालासेरी देवडूंगरी मंदिर की है। इस मंदिर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 जनवरी 2023 को गए थे। उन्होंने पुजारी के सामने मंदिर की दान पेटी में एक सफेद रंग का लिफाफा डाला था। आठ महीने बाद 25 सितंबर को मंदिर ट्रस्ट से जुड़े ट्रस्टियों, पुजारी ने दान पत्र खोला। उसमें नरेंद्र मोदी का डाला सफेद लिफाफा खोला तो भीतर से 20 रुपए का नोट और एक रुपए का सिक्का निकला। मौके पर मौजूद मीडियाकर्मियों से पुजारी ने कहा- आपके सामने इसमें से तीन लिफाफे निकले हैं। एक में 121 और एक में 21 सौ तथा सफेद लिफाफे में 21 रुपए मिले हैं।

जान लें प्रधानमंत्री की इस मंदिर की यात्रा का प्रदेश के गुर्जरों में बडा असर हुआ था। उनका मंदिर में जाना 1111 अवतरण महोत्सव के मौके पर था। मोदी की सभा भी हुई थी। उन्होंने भाषण में गुर्जरों के आराध्य देवनारायण के प्रति अपनी श्रद्धा और आस्था प्रकट की। तभी गुर्जर समुदाय में चर्चा थी कि प्रधानमंत्री ने मंदिर में चढ़ावा किया है तो लिफाफे में बड़ी राशि या मंदिर के विकास को लेकर बड़े सहयोग का कोई प्लान होगा। इसी आशा और विश्वास में गुर्जरों में दान पात्र खोले जाने का बेसब्री से इंतजार था। पर प्रधानमंत्री के लिफाफे से निकला क्या?

और यह अब विधानसभा चुनाव की चखचख है, नैरेटिव है। प्रियंका गांधी ने राजस्थान की चुनाव सभाओं में कहा है कि मोदी के लिफाफे से उम्मीद कुछ थी लेकिन उसमें से निकले सिर्फ 21 रुपए। मोदीजी का लिफाफा हमेशा खाली ही रहता है। मोदीजी की घोषणाओं का बंद लिफाफा खाली है। मोदीजी ने फलां-फलां वादे किए लेकिन हुआ क्या? ईआरसीपी का वादा किया 10 साल निकल गए। इनकी सिर्फ खाली घोषणाएं हैं…खाली लिफाफे हैं। जबकि कांग्रेस जो कह रही है उसे जमीन पर उतार रही है। मेरी बातों पर मत जाओ। इंटरनेट पर जाओ और देखो। अशोक गहलोत भी नहीं चुक रहे हैं। वे भी कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में कहा था कि सभी के खातों में 15-15 लाख रुपए आएंगे। दो करोड़ लोगों को रोजगार देंगे। पर हुआ क्या? जबकि हमने जो राजस्थान में वादा किया, सभी को निभाया है।

प्रियंका गांधी और गहलोत का हल्ला ऐसा फैला और चुभा कि भाजपा के नेता तुरंत जयपुर और दिल्ली में चुनाव आयोग से शिकायत करते मिले कि प्रियंका गांधी को रोको। वह पीएम मोदी के खिलाफ दुर्भावना से झूठ फैला रही हैं। उनका बयान आचार संहिता के नियमों के खिलाफ है। उनका कथन धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाला है।

और संयोग जो इस सप्ताह भाजपा हाईकमान याकि नरेंद्र मोदी-अमित शाह छतीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना चारों राज्यों से अपने हाथ खींचते हुए दिखे हैं। हां, पंद्रह दिन पहले भाजपा सभी राज्यों में अकेले नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ते हुए थी। शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे व रमन सिंह के टिकट भी कटते हुए थे। सब कुछ दिल्ली में तय होता हुआ था। नए चेहरों को चुनाव में उतारने की तैयारियां थीं। लेकिन इस सप्ताह मानों मोदी-शाह-नड्डा उन उम्मीदवारों की घोषणा करते हुए हैं, जिन्हें पहले थके, चुके और बूढ़ा माना जा रहा था।

इसका एक तात्कालिक असर यह है कि तेलंगाना, छतीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान चारों राज्यों में भाजपा बिना प्रादेशिक कमान के लावारिस अवस्था में है। कहने को शिवराज सिंह चौहान रोजाना दौरे कर रहे हैं लेकिन वह इसलिए है क्योंकि बतौर मुख्यमंत्री उनके तामझाम हैं। पार्टी लेवल पर न उनका चेहरा प्रोजेक्ट है और न संगठन से ये दौरे संचालित हैं। रमन सिंह और वसुंधरा राजे अपने निज दायरे में सक्रिय हैं। न प्रदेश अध्यक्षों व संगठन मंत्रियों का अर्थ है और न केंद्र की भेजी टीम मुख्य चेहरे नरेंद्र मोदी के लिफाफे को पब्लिक में भारी साबित करने की कोशिशों में है।

तो क्या माना जाए कि पांचों विधानसभा में भाजपा की हवा बिगड़ी हुई है? नहीं, मैं ऐसा नहीं मानता। लेकिन इतना तय है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह के लिए ये विधानसभा चुनाव बहुत मुश्किल हो गए हैं। पार्टी पांच में से दो राज्य भी जीत जाए तो बड़ी बात होगी। बहुत संभव है कि इन चुनावों में मतदाता ही मोदी के खाली लिफाफे को खारिज करे।

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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