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मोदी पर संघ का ‘घमंडी’ ठप्पा!

मोहन भागवत के बाद इंद्रेश कुमार ने भी मन की बात बोल दी! राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की केंद्रीय कार्यकारिणी मंडल के सदस्य इंद्रेश कुमार ने भाजपा के हवाले ही सही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अहंकारी बताते हुए कहा है कि रामजी ने उनकी पूर्ण बहुमत की सत्ता नहीं होने दी। सीधा अर्थ है कि नरेंद्र मोदी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला, यह अच्छी बात और इससे नरेंद्र मोदी पर अंकुश लगेगा। वे सुधरेंगे। 

संभव ही नहीं। और मेरी इस बात को नोट रखें कि आने वाले दिनों में नरेंद्र मोदी भाजपा से आरएसएस को वैसे ही आउट कर देंगे, जैसे गुजरात में मुख्यमंत्री रहते हुए प्रदेश भाजपा में संघ के प्रचारकों की जीरो हैसियत बनाई थी। प्रचारकों में तब नरेंद्र मोदी से बात करने तक की हिम्मत नहीं होती थी। संजय जोशी जैसे किसी प्रचारक ने यदि हिम्मत दिखाने की कोशिश की तो उसे टीवी चैनल के प्रायोजित भंडाफोड़ प्रोग्राम से न केवल चरित्रहीन करार दिया, बल्कि संगठन से भी आउट करा दिया। और ध्यान रहे उन दिनों मोहन भागवत भी गुजरात में पदाधिकारी थे। तब भी मोहन भागवत और मनमोहन वैद्य आदि नरेंद्र मोदी को वैसे ही जानते हुए थे जैसे अब हैं। बावजूद इससे यह भी त्रासदी है कि 2013 में मोहन भागवत ने खुद ही हालातों और मौके की संभावना में अपने सहयोगी सुरेश सोनी आदि दो-चार लोगों की लॉंबिंग (नरेंद्र मोदी ने भी खुद नागपुर जा कर) से आडवाणी ग्रुप की अनिच्छा के बावजूद नरेंद्र मोदी के नाम पर ठप्पा लगाया था। 

बहरहाल, अब नरेंद्र मोदी का भाजपा पर कब्जा है। भाजपा का वे लगभग कांग्रेसीकरण कर चुके हैं। आने वाले महीनों में (संभवतया बजट सत्र में ही जाति जनगणना के फैसले से) वे भाजपा को मंडलीकृत पार्टी भी बना देंगे। उन्हें रोकने के लिए या मार्गदर्शन करने के लिए उन तक पहुंच रखने वाला एक भी प्रचारक नहीं है। एक सुरेश सोनी के अपवाद को छोड़ कर संघ का कोई पदाधिकारी नरेंद्र मोदी को संघ की बात नहीं बता सकता। सुरेश सोनी के बहुत करीबी सौदान सिंह हैं। वे संघ के निष्ठावान हैं और अभी वे भाजपा उपाध्यक्ष हैं। वे और संघ भी शायद चाहते हों कि जेपी नड्डा की जगह कोई प्रचारक ही अध्यक्ष बने। ताकि संघ का पार्टी में दबदबा बना रहे। लेकिन नरेंद्र मोदी उसी को बनाएंगे जो उनका आज्ञाकारी और संघ को दूर रखने वाला हो। फिर सौदान सिंह की अमित शाह और बीएल संतोष से भी ठीक नहीं बताते हैं तो सुरेश सोनी भी नरेंद्र मोदी से अपने मन की शायद ही करवा पाएं। 

जैसा मैंने नतीजों के बाद लिखा था कि नरेंद्र मोदी और आरएसएस में कोई सीधा संवाद नहीं है। इतनी दूरी बन गई है कि नतीजों के बाद संघ की और से संघ में नंबर दो दत्तात्रेय, अरूण कुमार, सुरेश सोनी, बीएल संतोष ने जेपी नड्डा से बात की तो कहते हैं नरेंद्र मोदी ने नड्डा और अमित शाह को ही हैंडल करने की कह संघ के सुझावों की वैसी ही अनदेखी की जैसे उम्मीदवारों को चुनने या चुनाव के समय किया था। उलटे संघ के इरादे को जान जेपी नड्डा और शिवराज सिंह चौहान को मंत्री पद की शपथ दिला दी ताकि अगले अध्यक्ष की अपने से भूमिका बन जाए। मतलब अध्यक्ष को ले कर संघ बिसात बिछाए उससे पहले मोदी ने अपना रोडमैप बना लिया। जानकारों के अनुसार संघ में अध्यक्ष पद के लिए शिवराज सिंह चौहान को उपयुक्त माना जा रहा था। शिवराज अध्यक्ष बनते तो वे मोदी और संघ दोनों तरफ भाई साहब, भाई साहब का खेला कर लेते। और संघ की प्रदेशों में तो चल जाती। 

पर नरेंद्र मोदी के आगे संघ का क्या अर्थ? गुजरात में भी बेचारे थे और अब भी हैं। मुझे लगता है नरेंद्र मोदी किसी ओबीसी को अध्यक्ष (जैसे केशव प्रसाद मौर्य) पद पर बैठाएंगे। और यदि अमित शाह, बीएल संतोष की चली तो सुनील बंसल या देवेंद्र फड़नवीस की संभावना है। पर चुनावों की क्योंकि आगे बहुत चुनौती है इसलिए यह भी संभव है कि उनकी चिंता में नरेंद्र मोदी वापिस अमित शाह को ही संगठन सुपुर्द कर दें। क्या मोदी के इन नामों पर आरएसएस का ठप्पा लगेगा? मुश्किल है। जिसने नरेंद्र मोदी को अहंकारी, घमंडी करार दिया है उसकी पसंद के व्यक्ति को भाजपा सुपुर्द हो, यह संभव नहीं है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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