कुछ न कुछ गडबड है। यों राउज एवेन्यू कोर्ट की विशेष जज न्याय बिंदु ने जिस दंबगी और खुले में निर्णय लिख अरविंद केजरीवाल को नियमित जमानत दी है उससे उनका न्यायबिंदु नाम सार्थक समझ आता है। उस समय ईडी जैसी बिलबिलाई और हाईकोर्ट जाने के जो संकेत आए तो चाहे तो यह माने कि अदालती फैसला बदले समय का परिणाम है। कार्यपालिका हो या न्यायपालिका और मीडिया का व्यवहार धीरे-धीरे ही सही पर बदलेगा। या यह माने कि मोदी-शाह अब सीबीआई-ईडी की कोतवालशाही से तौबा करते हुए है? इस सिलसिले में एक कयास है कि चंद्रबाबू और नीतिश कुमार दोनों के अरविंद केजरीवाल से अच्छे संबंध रहे है तो मोदी को सहयोगियों के मूड का ध्यान रखना होगा!
कुछ भी हो अरविंद केजरीवाल का नियमित जमानत पर छूटना बड़ी बात है। हालाँकि हाईकोर्ट ने फ़ैसले पर अमल रोका है। पर जो हुआ है उसके कई राजनैतिक अर्थ निकलते है। हालाँकि मुझे यह मुमिकन ही नहीं लगता है मोदी-शाह अपनी राजनैतिक जरूरत में आप पार्टी और केजरीवाल के प्रति नरम बने हो। वैसे राजनैतिक तकाजे में, मोदी-शाह के लिए अब नंबर एक समस्या राहुल गांधी और कांग्रेस है। कांग्रेस के आगे अरविंद केजरीवाल और उनकी आप पार्टी कमजोर साबित हुई है। इसलिए केजरीवाल के कांग्रेस के खिलाफ उपयोग की एक रणनीति हो सकती है। दिल्ली में जल संकट और जनता में हाहाकार के चलते भी अरविंद केजरीवाल को बाहर निकलने दे कर उन्हे जिम्मेवार ठहराने का सियासी हल्ला बोल भी संभव है।
पर विपक्ष को तोड़ने में आप पार्टी के उपयोग की बात इसलिए बेतुकी है क्योंकि मनीष सिसोदिया, संजयसिंह सभी तो नरेंद्र मोदी के गौर आलोचक है। फिर अरविंद केजरीवाल इस बात को ज्यादा बारीकि से जानते है कि मोदी-शाह का जो भी पार्टी मोहरा बनी है या बनती है या तात्कालिक छोटे स्वार्थों में भाजपा की कठपुतली वाली राजनीति खेलती वह नेता और पार्टी बुरी तरह डुबते है। फिर भले तेलंगाना की टीआरएस पार्टी और उसके नेता चंद्रशेखर राव हो या अजित पवार या सुखबीर बादल, ओमप्रकाश राजभर, मायावती, जगनमोहन हो या नवीन पटनायक। सोचे, इस सत्य पर कि नरेंद्र मोदी ने दस वर्षों में अपनी गरज में संसद में बादल, मायावती, नवीन पटनायक और जगनमोहन की पार्टी के सांसदों का कैसा भरपूर उपयोग किया और बदले में सभी पार्टियां और नेता इस चुनाव में कितनी बुरी तरह तबाह हुए। नोट रखें आगे नीतिश कुमार, उनकी जनता दल यू का भी यही हश्र होना है तो चंद्रबाबू नायडु और एकनाथ शिंदे का भी होगा। इसलिए मोदी-शाह की बिसात में केजरीवाल और उनकी पार्टी मोहरा बने, वे जेल से बाहर हो कर इंडिया एलायंस में उत्पात करें, यह संभव नहीं लगता। मगर ऐसा मैंने चंद्रशेखर राव को लेकर भी सोचा था। पर वे भी लालच, बहकावे में भाजपा के जाल में फंसें ही थे और फिर उनका जो हुआ वह भी जगजाहिर है!