यदि राहुल गांधी राजनीति से रिटायर हो जाएं, विदेश जा कर बस जाएं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गौतम अडानी चैन की वह सांस लेंगे, जिसकी हम-आप कल्पना नहीं कर सकते हैं। इसलिए मोदीजी के भारत को आज चाहिए राहुल व सोनिया गांधी की कुरबानी। इसलिए क्योंकि राहुल को मोदी, अडानी न खरीद सकते हैं और न बोलने से रोक सकते हैं। जबकि सोनिया गांधी इसलिए समस्या हैं क्योंकि वह पुत्रमोह में हैं और इसके चलते वे उनसे कांग्रेस की कमान नहीं लेती हैं तो जिद्दी राहुल को बोलने से रोक भी नहीं सकतीं!
यही वह सत्व-तत्व है, जिस पर यह राजनीति है, प्रायोजित मीडिया से हल्ला है कि ‘इंडिया’ ब्लॉक की लीडरशीप के लायक कांग्रेस नहीं है। इसलिए ममता बनर्जी ‘इंडिया’ ब्लॉक की नेता बने। नैरेटिव बनाया जा रहा है कि कांग्रेस को लेकर परस्पेशन डाउन है तो विपक्ष के एलायंस को बचना है तो किसी दूसरी पार्टी का नेता ‘इंडिया’ ब्लॉक की लीडरशीप संभाले। जाहिर है राहुल गांधी को डिस्क्रेडिट करो, उसे हाशिए में रखो ताकि विपक्षी एलायंस जिंदा रह सके!
इस तरह की राजनीति को मैं जनता पार्टी याकि मोरारजी देसाई, चरण सिंह, मधु लिमये, राजानारायण के समय से देखता आ रहा हूं। धीरूभाई अंबानी के दिनों में वीपी सिंह, देवीलाल, शरद यादव के राज में थी। अंबानी के समय ‘चांदी की जूतियों’ का जुमला था। लेकिन तब और अब का फर्क यह है कि इन दिनों सेठ ही सरकार है और ‘नोटों से भरे कंटेनरों’ से चुनाव जैसे जुमले हैं। इतिहास की कथाओं, दंतकथाओं का यह सत्य है, जो दिल्ली में मुगल दरबार और अंग्रेजों से नेहरू के समय तक भारत के धनपति या जगत सेठ नजराना पेश कर सकते थे लेकिन वे शासन चलाने की औकात नहीं रखते थे। अंग्रेजों ने लूटा लेकिन देशी सेठों के भ्रष्टाचार पर मोहर नहीं लगाई। टाटा-बिड़ला, अपनी उद्यमशीलता में बने थे और इनकी कंपनियां अंग्रेज कंपनियों से कंपीट करते हुए थीं। बिड़ला में हिम्मत थी जो गांधी को अपने घर में ठहराते थे। उन्हें चंदा देते थे!
क्या आज किसी भारतीय सेठ की हिम्मत है जो सरकार के नंबर एक विरोधी राहुल गांधी को बुलाए, ठहराए। वह पहले नरेंद्र मोदी से मिल कर अनुमति लेगा। तब शादी में आमंत्रित करने की हिम्मत कर सकेगा।
जाहिर है राहुल गांधी की वह निडरता व फकीरी है जो अपने हाल में राजनीति करते हुए है। भले पार्टी भूखे मरे या कड़की में रहे! ईमानदारी से सोचें, पिछले दस वर्षों की राजनीति तथा मोदी-अडानी के वर्चस्व में विपक्षी नेताओं के व्यवहार का लब्बोलुआब निकालें तो क्या निकलेगा? क्या यह नहीं कि सरकार का विरोध तो राहुल गांधी से ही है। यदि मोदी ने सत्ता का पहाड़ अपनी ऊंगली पर उठाया हुआ है तो राहुल गांधी की ऊंगली पर विपक्ष का पहाड़ है। राहुल गांधी ही वह बला हैं, जिससे राफेल से अडानी तक का मसला घर-घर पहुंचा है। और यह इसी सप्ताह भाजपा के फ्रांसीसी मीडिया समूह ‘मीडिया पार्ट’ के हवाले आरोप से मालूम हुआ कि यह वेबसाइट राफेल के पीछे अभी भी पड़ी हुई है। भाजपा ने इसके हवाले जो आरोप लगाए उन पर ‘मीडिया पार्ट’ ने उलटे यह बयान दिया है कि भाजपा झूठ बोल रही है। उसके दावे गलत हैं तथा अब यह एक स्थापित तथ्य है कि मोदी सरकार 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद संबंधी भ्रष्टाचार के मामले को हर कीमत पर दफन करने की कोशिश कर रही है। फ्रांसीसी न्यायिक जांच में बाधक रही है। मतलब यह कि फ्रांस में मामला खत्म नहीं, बल्कि घसीटते हुए अभी भी जिंदा है।
ये सारे बवाल खत्म हो जाएं बशर्ते राहुल गांधी राजनीति छोड़ दें। राहुल की आवाज मौन हो जाए।
मुझे नहीं लगता ममता बनर्जी या शरद पवार या एक्सवाईजेड दूसरा कोई नेता ‘इंडिया’ ब्लॉक का चेयरमेन बना तो राहुल गांधी का बोलना बंद होगा। मगर हां, यह संभव है कि ममता बनर्जी की अध्यक्षता में अखिलेश, लालू यादव, शरद पवार सब मिल कर कोलकाता या मुंबई में अपने मंच पर गौतम अडानी का अभिनंदन समारोह करें। विपक्ष नरेंद्र मोदी से अपील करे कि भारत की वैश्विक ख्याति में योगदान के लिए गौतम अडानी को उन्हें भारत रत्न देना चाहिए।