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हे राम! यह बुलैट ट्रेन!

दस साल पहले भी बुलैट ट्रेन थी, पांच साल पहले भी थी और अगले पांच साल भी रहेगी। कह सकते है जिस दिन नरेंद्र मोदी बुलैट ट्रेन को हरी झंडी बताएंगे उस दिन वे यह भी घोषणा कर देंगे कि भारत विकसित देश हो गया। नई संसद के आगे राष्ट्रपति द्रोपद्री मुर्मू ने भारत के भविष्य का जो कथित महत्वकांक्षी और साहसी संकल्प बताया है तोइसके प्रतिमान में बुलैट ट्रेन का नेटवर्क बनाने और भारत-मध्य पूर्व योरोप के आर्थिक कॉरिडोर के इंफ्रास्ट्रक्चर का जिक्र भी है। बाकि मुख्य बिंदुओं में नागरिकता संसोधन बिल, जम्मू-कश्मीर, बजट, विश्व रंगमंच में भारत की भूमिका, सत्तर साल से अधिक उम्र के लोगों का मुफ्त इलाज, आपातकाल को याद करने, सकारात्मक राजनीति, पेपर लीक पर राष्ट्रपति द्वारा बोला गया।

यों हम 140 करोड़ लोगों के लिए भाषण और जुमले टाइमपास की एक अनिवार्य जरूरत है। लेकिन जब चुनावी नैरेटिव ताजा है और उसमें विकसित भारत, मंदिर, रोजगार, संविधान, मुसलमान की बातों पर लोगों तथा खासकर नौजवानों का मूड चौंकाने वाला था तो नई सरकार के पहले भाषण में क्या उन मुद्दों की बात नहीं होनी चाहिए थी जो रियल जिंदगी के रियल इश्यू है। पेपर लीक रियल इश्यू है लेकिन बुलैट ट्रेन क्या सचमुच प्राथमिकता वाला मसला है। जब वंदे भारत ट्रेन आम यात्री की जरूरत में फेल है, महंगी है और लोग सामान्य ट्रेनों में भेड-बकरी की तरह लावारिश मगर महंगा सफर करते हुए है तो बुलैट ट्रेन क्या बरबादी और मूर्खता की सौगात नहीं होगी?

भारत सरकार और उसकी महाबली संस्थाएं स्कूली बच्चों के लिए जब एक दाखिला परीक्षा ईमानदारी से नहीं करा सकती है बुलैट ट्रेन बना कर क्या कर लेंगे? आज की नंबर एक हकीकत है कि देश में लोग मुनाफाखोर कॉरपोरेट कंपनियों की एकाधिकारी महंगाई से (एयरलाइंस कंपनियां, फोन कंपनियों, सीमेंट-स्टील कंपनियों, ईंधन कंपनियों, निर्माण कंपनियों, खाद्य पदार्थों की एफएमसीजी कंपनियों से ले कर वंदे भारत ट्रेन, परिवहन सभी  सुरसा की तरह बढ़ते दामों से लूटे जा रहे है वही गर्मी, बारिस, सर्दी में लोगों की बेसिक देखरेख में भी प्रशासन असमर्थ-नाकारा साबित है तो प्राथमिकता क्या होनी चाहिए?

लोगों की हैसियत और जरूरत में जब वंदे भारत ट्रेन फेल है, जब एयरपोर्ट और एयरलाइंस पैसेंजरों की जेब काटते हुए उनके सफर को (कल ही मैं रांची से दिल्ली का एकतरफा इकॉनोमी सफर 19 हजार रू की टिकट पर करके आया हूं और उसकी सर्विस में जलपान जहां खिच़डी या बेस्वाद छोले भठूरे का तो डेढ़ घंटे की देरी भी।) भेड़-बकरी का कैटल क्लास सफर बना  दिया है तो जनता से टैक्स-पैसा-भाड़ा लूटकर दो-चार बुलैट ट्रेन बना भी ले तो वह क्या विकास होगा? उससे विकसित बनना हो जाएगा?

इन पंक्तियों को लिखते समय खबर है कि मानसून की पहली बारिस में ही पिछले दस सालों में सीमेंट-पत्थर-क्रंकीट के बढ़ते जंगल याकि राजधानी नई दिल्ली की सड़के पानी से भरी हुई है। एयरपोर्ट की छत टूट गई। लोग घायल और मौत। वही प्रधानमंत्री निवास की सड़क भी पानी से डुबी हुई। क्यों? इसलिए क्योंकि मोदी राज सेपूरी दिल्ली में शासन चौपट है। न प्रदेश सरकार जवाबदेह है। न उपराज्यपाल जवाबदेह और न एमसीडी या एनडीएमसी जवाबदेह। कर्मचारी क्यों मानसून से पहले नालों की सफाई की चिंता करेगा जब उसे नागरिकों को दस तरह से लूटने की अबाध छूट मिली हुई है।

जब नरेंद्र मोदी ने अपने इलाके में सजावट में ही प्रशासन की ताकत को झोंका हुआ है और दिखावा, शोशेबाजी चाहिए तो भीषण गर्मी से नई दिल्ली इलाके में, एम्स के आसपास लावारिश मौतों की चिंता भी कोई करने वाला नहीं है तो नालों की सफाई की चिंता भी नहीं है। इसलिए नोट रखे कि इस देश को पिछले दस वर्षों में मोदी राज ने अफसरों, खरबपतियों के खाने की जैसी अबाध छूट दी है वह नादिर शाह और जगत सेठ जैसा ही रिकार्ड है। साथ ही राजधानी नई दिल्ली में इमारतों का ढेर बना करउसेइतना बदसूरत और अराजक बना दिया है कि  कि भविष्य में न ट्रैफिक संभलेंगा और न प्रदूषण। नई दिल्ली हमेशा के लिए दुनिया की नंबर एक केहोस भरी तथा प्रदूषित राजधानी हो गई है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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