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योगी और हिमंता क्या कहानी बना पाएंगे?

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भाजपा में नए चेहरे उभर रहे हैं। वाजपेयी और आडवाणी के बाद मोदी और शाह की जोड़ी आई और अब योगी आदित्यनाथ और हिमंता बिस्व सरमा के आने की चर्चा है। क्या ये दोनों मुख्यमंत्री भविष्य की कोई कहानी लिख सकते हैं? लोगों ने उम्मीद पाली है। खास कर भाजपा के इको सिस्टम से जुड़े लोग और कट्टरपंथी हिंदू राजनीति पसंद करने वाली जनता का एक बड़ा वर्ग भी इनसे उम्मीद कर रहा है। लेकिन यह उम्मीद वैसी ही है, जैसी नरेंद्र मोदी से पाली गई थी। मोदी 2001 में जब गुजरात के मुख्यमंत्री बन कर गए थे और अगले साल राज्य में भयानक दंगे हुए तो पूरे देश में हिंदुओं ने उनसे उम्मीद पाली। वे गुजरात में बैठे बैठे हिंदू हृदय सम्राट हो गए, जैसे मुंबई में बैठ कर बाल ठाकरे हो गए थे।

जिस कहानी की उम्मीद देश के लोग मोदी से कर रहे थे अब उसी के पूरा होने के लिए हिमंता और योगी से उम्मीद कर रहे हैं। उनको लग रहा है कि मोदी और शाह ने जहां कहानी पहुंचा दी है उसके आगे कहानी को ले जाने का काम इन दो नेताओं को करना है। लेकिन इन दोनों की कहानी में क्या कोई नयापन है? कोई ऐसी चीज है, जो पहले के भाजपा के कट्टरपंथी चेहरों में नहीं था? क्या वाजपेयी के रहते आडवाणी और कल्याण सिंह या आडवाणी के रहते नरेंद्र मोदी ने जैसी राजनीति की वैसी ही राजनीति मोदी के रहते योगी और हिमंता बिस्व सरमा नहीं कर रहे हैं? इसमें क्या नया है? दोनों का एक सूत्री काम मुसलमानों को निशाना बनाने का तो है। हिंदुओं को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से मजबूत बनाने का क्या रोडमैप इन दोनों नेताओं के पास है?

मुसलमानों में बाल विवाह बंद करा देंगे या बहुविवाह रूकवा देंगे या विवाह का पंजीयन अनिवार्य कर देंगे या मुस्लिम आरोपी है तो तत्काल उसके घर पर बुलडोजर चलवा देंगे यह तो शासन और प्रशासन से जुड़े रोजमर्रा के काम हैं। इससे हिंदुओं की स्थिति में तो कोई सुधार नहीं होगा। उनके यहां क्या इससे जातिवाद रूक जाएगा? सामाजिक समरसता आ जाएगी? ऐसा सामाजिक सुधार होगा कि हिंदुओं की सभी जातियों में बेटी-रोटी का रिश्ता बन जाएगा? या ऐसी आर्थिक क्रांति हो जाएगी, जिससे सारे हिंदू करोड़पति बन जाएंगे? सब पढ़े लिखे हो जाएंगे और भारत को अमेरिका, यूरोप की तरह विकसित बनाएंगे? इसकी कहानी कहां है?

उलटे यह असहायता है कि असम में 40 फीसदी मुस्लिम हो गए हैं। यह बात हिमंता बिस्व सरमा ने झारखंड में कही, जहां के वे चुनाव सह प्रभारी हैं। उन्होंने भय दिखाया कि झारखंड में भी भी मुस्लिम आबादी इसी तरह बढ़ जाएगी। इससे बचना है तो भाजपा को वोट दें। सोचें, 24 साल के झारखंड में करीब 15 साल भाजपा का राज रहा और इस दौरान देश में भी 14 साल भाजपा का राज रहा लेकिन बांग्लादेश से घुसपैठ होती रही और असम से लेकर झारखंड तक जनसंख्या संरचना बदलती रही। अब हिमंता सरमा मुस्लिम आबादी बढ़ने का भय दिखा रहे हैं। सवाल है कि भाजपा ने क्यों नहीं घुसपैठ या धर्मांतरण को रोका और हिंदुओं को इतना मजबूत बनाया कि भय या लालच से कोई उनका धर्मांतरण नहीं कराए? सो, योगी और हिमंता बिस्व सरमा भी जो राजनीति कर रहे है वह बुनियादी रूप से एकाध चुनावों में हिंदुओं का वोट लेकर सरकार बनाने की राजनीति है। सत्ता सुख भोगने की राजनीति है। उसमें कोई दूरदृष्टि या विकास व बदलाव की कहानी नहीं है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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