नरेंद्र मोदी और अमित शाह हकीकत में जीते हैं। और दोनों ने जान लिया है कि उनका लोगों में क्रेज खत्म है। वे बासी हो गए हैं। और अपने आपको नए सिरे से रिइनवेंट भी नहीं कर सकते। फिल्म फ्लॉप है तो है उसे नया बना कर वापिस कैसे रिलीज किया जा सकता है? लेकिन बाजार में तो रहना है, राजनीति का धंधा तो चल रहा है? तभी सवाल है हरियाणा, जम्मू कश्मीर के दो चुनावों में मोदी की भाजपा के जीतने के मंत्र और फॉर्मूले क्या हैं? एक, किसी का भी इस्तेमाल करो। भारत विरोधी और कश्मीर में आतंकी संगठन जमात के लोगों का भी इस्तेमाल करो तो आतंकी फंडिंग के लिए जेल में बंद इंजीनियर राशिद का भी इस्तेमाल करो। आतंकी को जमानत पर छूटने दो ताकि इनके उम्मीदवारों से विरोधी एनसी व कांग्रेस के एलायंस के वोट बंटे! सचमुच कश्मीर घाटी में जिस बेशर्मी से मोदी-शाह ने आतंकी चेहरों का चुनावी रणनीति में इस्तेमाल किया है वह अकल्पनीय है।
और ऐसा हरियाणा में भी बूझ सकते हैं। सजायाफ्ता बाबा की जमानत से लेकर कांग्रेस की शैलजा को खुलेआम ललचाना प्रमाण है कि मोदी-शाह की भाजपा वोट के लिए किसी भी सीमा तक जा सकती है! दोनों विधानसभा के चुनावों में भाजपा कितने दलबदलुओं को टिकट दिए हुए है या कैसे कैसे चेहरे चुनाव में उतरे हैं, इसे जांचें तो साफ लगेगा कि मोदी-शाह अब सौ टका मध्य वर्ग-मुस्लिम-दलित और ओबीसी वोटों में कांग्रेस या एनसी, कांग्रेस एलायंस याकि ‘इंडिया’ गठबंधन के बने वोट समीकरण को ही काटने की जुगाड़ में हैं। अपने मूल वोट बैंक को बचाए रखने, उसे खुश रखने की चिंता नहीं है और सिर्फ विपक्ष केंद्रित रणनीति है। दलित वोट कटवाने में मायावती की बहुजन समाज पार्टी का जो रोल है और अब चंद्रशेखर आजाद की पार्टी भी मायावती के नक्शे कदम पर जैसे भाजपा की मददगार होते हुए है उससे फिर साबित है कि भारत में दलित राजनीति जैसी गिरगिटी राजनीति दूसरी कोई नहीं है।
बहरहाल, आतंकी हो, इस्लामी कट्टरपंथी हो, सजायाफ्ता, बलात्कारी-हत्यारा हो या भ्रष्टाचार के अजित पवार जैसे आईकॉन हों सबका उपयोग अब नरेंद्र मोदी के जादू का अनिवार्य विकल्प है। मैं सचमुच चाहता हूं कि जम्मू कश्मीर में भाजपा सरकार बनाए और उसमें इंजीनियर राशिद, प्रतिबंधित जमात पार्टी के निर्दलीय विधायक तथा सज्जाद लोन, पीडीपी आदि के समर्थन से नरेंद्र मोदी के खास जितेंद्र सिंह या दलबदलू देवेंद्र राणा बतौर मुख्यमंत्री वहां शपथ लें। तब भाजपा आतंक पोषक प्रामाणिक पार्टी का ठप्पा पा जाएगी।
सो, जोड़ तोड़ भाजपा का अब पहला विकल्प है। महाराष्ट्र से कोई सबक नहीं सीखा है। दूसरा मंत्र जात का है। हिंदू बहुल जम्मू में फॉरवर्ड अधिक हैं। इसलिए राजपूत और ब्राह्मण वोटों की गणित साधने के लिए भाजपा के स्टार कैंपेनर फॉरवर्ड नेता ही हैं। तभी 29 सितंबर तक योगी आदित्यनाथ, राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी की लगातार सभाएं हैं। हालांकि जम्मू क्षेत्र से रिपोर्ट है कि मध्य वर्ग हो या राजपूत और ब्राह्मण सब अपने अपने कारणों से जात के हिसाब से वोट देने का मूड बनाए हुए हैं जैसे हरियाणा में लग रहा है। इसलिए इन दोनों राज्यों से आगे यह मालूम होगा कि जात की राजनीति भाजपा के लिए उलटी पड़ती हुई है या उसी से बेड़ा पार होना है।