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मोदी तानाशाह नहीं, हिंदू गुलाम!

Lok Sabha election 2024

बड़ा हल्ला है ध्रुव राठी के ‘नरेंद्र मोदी-तानाशाह’ वीडिया का। और उसे मैंने देखा। तर्क सब ठीक है मगर मुझे निष्कर्ष अपनी इस धारणा के कारण नहीं जंचा की हम हिंदू संस्कारगत भयाकुल, गुलाम स्वभाव के हैं। इसलिए नरेंद्र मोदी का शासन उसी चरित्र का है, जो दिल्ली के पिछले प्रधानमंत्रियों, बादशाहों का था। pm narendra modi dictator

नरेंद्र मोदी का इतना भर फर्क है जो उन्होंने धंधे की गुजराती तासीर में यह जाना हुआ है कि हिंदू बुनियादी तौर पर भक्तिवादी है। इसलिए मार्केटिंग से प्रजा में अवतारी इमेज से राजनीति का अंधविश्वासीकरण किया जाए। और उन्होंने वह किया। तभी दस सालों में नरेंद्र मोदी न केवल धर्म उद्धारक बने हैं, बल्कि कल्कि अवतार की धारणा में मंदिर बनने लगे हैं और अगले कार्यकाल में शायद कल्कि अवतारी मोदी मंदिर भी बन जाए।

यह कुछ वैसा ही मामला है जैसे गुजरात में जन्मे गांधी ने लंदन जा कर दुनियादारी समझी और भारत लौटकर हिंदुओं के भक्त मन को बूझा। फिर धर्म को राजनीति का जरिया बनाया। साबरमती के संत का रूप धारण किया। इलाहाबाद को सेंटर बनाकर उत्तर भारत के हिंदुओं में राम और रामराज्य की धारणा को उकेर कर वैष्णव जन की धुन से सियासी वर्चस्व बनाया। गांधी ने भी रामराज्य का सपना दिखाया था। वे भी अवतार कहलाए। राष्ट्रपिता हुए।

वही नरेंद्र मोदी की एप्रोच है। नरेंद्र मोदी ने इंदिरा गांधी जैसी गलती नहीं की। इंदिरा गांधी ने संविधान के अनुच्छेद का हवाला दे कर इमरजेंसी लगाई थी। जबकि नरेंद्र मोदी ने बिना इमरजेंसी घोषणा के ही संस्थाओं के दुरूपयोग से विपक्ष और विरोध को कुचला। मीडिया का सरेंडर कराया। मतलब वह सब कर लिया जो इंदिरा गांधी भी नही कर पाई थीं। सोचें, इंदिरा गांधी इमरजेंसी के बाद हारी वहीं नरेंद्र मोदी अघोषित इमरजेंसी, और विरोध-विपक्ष के दमन के बावजूद बतौर भगवान लगातार चुनाव जीतते हुए हैं और जीतेंगे।

सोचें, इंदिरा गांधी ने सेंसरशिप की, विरोधियों को जेल में डाला लेकिन मोरारजी, चरण सिंह, कर्पूरी ठाकुर, वाजपेयी, आडवाणी आदि के घरों में छापेमारी तो नहीं करवाई थी। उन्हें चोर, भ्रष्ट, बेईमान बताने के वैसे झूठ तो नहीं रचे जैसे हाल में महुआ मोइत्रा, राहुल गांधी की सांसदी खत्म कराने या मनीष सिसोदिया, हेमंत सोरेन को जेल में डालने के हुए हैं। pm narendra modi dictator

इसलिए इंदिरा गांधी और नरेंद्र मोदी के समय, तरीकों का फर्क भी ध्यान में रखना चाहिए तो गांधी, नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और शासन में प्रजा की भयाकुलता, भक्ति, गुलामी का सत्य हजार साल की गुलामी के इतिहास से ध्यान में रहे। हजार साल से हिंदू भयाकुल, बिकाऊ, गुलाम, अंधविश्वासी, नियतिवादी रहा है तो ऐसा तो नहीं हो सकता है कि 75 वर्षों में उस अवस्था से दिमाग बाहर निकल नया हो जाए। निर्भयी, सत्यवादी बने। फिर गांधी और नेहरू ने भी भक्ति बनाई थी।

भक्ति प्रेरित लोकप्रियता में उन्होंने भी मनचाहा किया। देश के टुकड़े हुए तब भी प्रजा भक्ति अटूट। चीन से हारे तब भी भक्ति कायम। तो नरेंद्र मोदी तो बाकायदा शासन की पूरी ताकत के साथ अपने को अवतार और धर्म उद्धारक बनाए हुए हैं। इसलिए यह तानाशाही नहीं है, बल्कि प्रजा के मनोविज्ञान और यथा प्रजा तथा राजा का सत्य है।

दिल्ली पर खैबर पार से पांच सौ घुड़सवार भारत आते थे और पीढ़ियों राज करते थे। वे हिंदुओं के बादशाह थे। और बादशाह तब चांदनी चौक के हिंदू कोतवाल से ही दिल्ली, देश की प्रजा पर डंडे के बल राज करता था। और भयाकुल, चापलूस, सत्ताखोर हिंदू राजे-रजवाड़े, एलिट और प्रजा सब उसे जहांपनाह, दिन-ए-इलाही प्रवर्तक के संबोधन से दरबार में मुजरा करते थे। उन्हें अपना रक्षक मानते थे।

तो दोषी कौन? और मेरा मानना है जैसे उस वक्त लगातार हिंदुओं में भयाकुलता, भूख, अज्ञान और अंधविश्वासों के संस्कार बने वह सिलसिला 1947 के बाद से लगातार है। इसलिए नोट रहे इतिहास में हिंदू प्रजा को विदेशी शासकों, उनके पिट्ठू क्रोनी जगत सेठों ने लूटा वैसे ही 140 करोड़ लोगों का देश, नस्ल आने वाले दशकों में चीन और बाकी धर्मों का खेला बनने लुटे, पीटे, बिखरे तो वह इतिहास की पुनरावृत्ति होगी।

कोई अनहोनी बात नहीं। भय, गुलामी और अंधविश्वासों से कोई नस्ल बन नहीं सकती। भय-गुलामी स्थायी है। और नोट रखें भय, भयाकुलता के डीएनए के कारण ही नरेंद्र मोदी मरे हुए विपक्ष के बावजूद सत्ता की असुरक्षा में जीते हुए हैं। दिन-रात खपे हुए हैं। इसलिए मोदी तानाशाह नहीं, बल्कि भयाकुल, असुरक्षित नेतृत्व की मिसाल हैं।

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मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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