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ट्रंप मेहरबान हैं!

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राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से खुश हैं। वाशिंगटन में ट्रंप और मोदी वार्ता, प्रेस कांफ्रेंस की भाव-भंगिमा और साझा बयान का लब्बोलुआब है कि सब ठीक है। यों राष्ट्रपति बाइडेन के समय भी सब ठीक था। लेकिन बाइडेन प्रशासन अमेरिकी मिजाज-कायदे में बंधा था जबकि अब अमेरिका ट्रंप की मनमानी, कारोबारी स्वार्थों में चल रहा है। उस नाते अच्छा हुआ जो ट्रंप का चाहा मोदी सरकार ने पहले ही पूरा कर दिया। ट्रंप की शिकायत अनुसार भारत ने बजट में अमेरिका से आने वाली चीजों पर कस्टम ड्यूटी कम कर दी। भारत ने अमेरिका गए अवैध भारतीय प्रवासियों को लेने का पहले ही ऐलान कर दिया। अमेरिकी सैनिक हवाई जहाज में भरी भारतीयों की एक खेप ले ली है। अमेरिका से नागरिक परमाणु ऊर्जा में कारोबारी रिश्ता बनाने का रास्ता सुगम बनाया है वही अमेरिका से सैनिक हथियारों की और खरीद की सहमति भी दी हुई है।

कह सकते हैं इजराइल के नेतन्याहू के बाद नरेंद्र मोदी वे दूसरे नेता हैं जो डोनाल्ड ट्रंप के अहम को संतुष्ट कर उनसे नजदीकी बनाने में कामयाब हैं। इसलिए आश्चर्य नहीं हुआ जब नरेंद्र मोदी ने अमेरिका में कदम रखा उससे पहले ट्रंप ने उस आदेश पर दस्तखत किए, जिससे अडानी का अमेरिकी अदालती झंझट रूका है।  सो तय मानें खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश के मामले में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल, पूर्व रॉ चीफ सामंत गोयल आदि को लेकर अमेरिकी कोर्ट के समन का झंझट भी अब  समाप्त प्रायः है।

गजब संयोग है कि अमेरिकी प्रशासन में कानूनी-खुफियाई व सुरक्षा मामलों में भारतपरस्त दो व्यक्ति निर्णायक पोजीशन में हैं। तुलसी गबार्ड का यूएस नेशनल इंटेलीजेंस डायरेक्टर बनना अकल्पनीय बात है। वे सीआईए और एफबीआई सहित अमेरिका की 18 खुफिया एजेंसियों की मुखिया हैं। उनके अलावा एफबीआई प्रमुख के पद पर कश्यप प्रमोद “काश” पटेल की नियुक्ति हुई है।

तुलसी गबार्ड और काश पटेल अमेरिका में जिस पद पर पहुंचे हैं उसका भारत के लिए बड़ा महत्व हो सकता है। उप राष्ट्रपति कमला हैरिस और बाइडेन प्रशासन के दौरान व्हाइट हाउस में रहे भारतवंशियों की मौजूदगी से अधिक जलवा तुलसी गबार्ड और काश पटेल का होना है। आतंकवाद, पाकिस्तान, चीन और दक्षिण एशिया के मामलों में अमेरिका में भारत माफिक माहौल बनेगा। अमेरिका का सुरक्षा और खुफियाई तंत्र भारत की चिंता करता हुआ हो सकता है।

इसलिए नरेंद्र मोदी का वाशिंगटन पहुंच कर सर्वप्रथम तुलसी गबार्ड से मुलाकात, फिर अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइकल वाल्ट्ज और उनके बाद इलॉन मस्क से मुलाकात के अहम मायने हैं। इन बैठकों में विदेश मंत्री जयशंकर और अजित डोवाल मौजूद थे।

सवाल है इस सबसे भारत को क्या हासिल होगा? जवाब में सोचें, नेतन्याहू और डोनाल्ड ट्रंप की केमिस्ट्री से पश्चिम एशिया में कैसा भूचाल आया है? डोनाल्ड ट्रंप गाजा पट्टी लेने की बात कर रहे हैं। वहां से फिलस्तीनियों को हटाने की कूटनीति कर रहे हैं? अरब देशों पर दबाव बना रहे हैं। इजराइल को शायद ही ट्रंप से ऐसी पहल की उम्मीद रही होगी। उन्होंने हमास को चेतावनी दी है कि शनिवार तक सभी इजराइली बंधक रिहा करें अन्यथा युद्धविराम का समझौता रद्द और फिर भुगतें नरक!

क्या डोनाल्ड ट्रंप इस तरह की पक्षधरता भारत के लिए कर सकते हैं? क्या वे चीन को हड़काएंगे? या भारत को पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर लेने के लिए कह देंगे? दुनिया में और भारत में धारणा है कि डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी हैं तो सब मुमकिन है। मगर ऐसा तो 2016 से 2020 के बीच में भी था। तब डोनाल्ड़ ट्रंप से भारत ने क्या पाया? दोनों देशों के रिश्तों में भारत को कितना नफा हुआ?

मैं सालों से लिख रहा हूं कि भारत की विशाल जनसंख्या और चीन के खतरे के कारण पश्चिमी देशों और अमेरिका की राजनीतिक-सामरिक रणनीति में भारत की अहमियत स्थायी है। भारत ही चूक रहा है जो फायदा नहीं उठा पाता है और इसके ढेरों प्रमाण हैं!

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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