प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त को लाल किले से एक देश, एक चुनाव का जुमला बोला। उन्होंने कहा कि देश के सारे चुनाव एक साथ होने चाहिए क्योंकि बार बार होने वाले चुनाव देश की प्रगति को रोकते हैं। प्रधानमंत्री ने इसके लिए सभी दलों के साथ आने की अपील भी की। लेकिन अगले ही दिन क्या हुआ? चुनाव आयोग ने 16 अगस्त को दो राज्यों के विधानसभा चुनावों की घोषणा की और दो राज्य छोड़ दिए। सोचें, एक महीने के अंतराल पर चार राज्यों के विधानसभा चुनाव होने वाले हैं लेकिन चुनाव आयोग ने दो राज्यों को छोड़ दिया! क्या यही एक देश, एक चुनाव की सरकार की प्रतिबद्धता है? और क्या यही चुनाव आयोग पूरे देश में लोकसभा और सभी विधानसभाओं के साथ चुनाव कराएगा?
इस साल महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। हरियाणा विधानसभा का कार्यकाल तीन नवंबर को पूरा हो रहा है। महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल 25 नवंबर तक और झारखंड विधानसभा का कार्यकाल पांच जनवरी 2025 तक है। चौथा राज्य जम्मू कश्मीर है, जहां 10 साल पहले 2014 में आखिरी बार चुनाव हुआ था। सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर में चुनाव कराने और राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए दायर की गई याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए 30 सितंबर तक चुनाव कराने का आदेश दिया था। सो, वहां 30 सितंबर तक चुनाव कराना है। मगर चुनाव आयोग चाहता तो इन चारों राज्यों में एक साथ चुनाव करा सकता था क्योंकि विधानसभा का कार्यकाल जब छह महीने से कम बचा होता है तो आयोग कभी भी चुनाव करा सकता है। परंतु उसने सिर्फ जम्मू कश्मीर और हरियाणा के चुनावों की घोषणा की है। दोनों राज्यों में 18 और 25 सितंबर और एक अक्टूबर को मतदान होगा और चार अक्टूबर को नतीजों की घोषणा होगी।
सोचें, पिछली बार यानी 2019 में महाराष्ट्र और हरियाणा दोनों राज्यों में एक साथ 21 अक्टूबर को मतदान हुआ था। लेकिन इस बार दोनों के चुनाव अलग कर दिए गए। एक अक्टूबर को हरियाणा की सभी 90 सीटों पर वोट पड़ेंगे। जम्मू कश्मीर को लेकर आयोग की मजबूरी समझी जा सकती है कि सुप्रीम कोर्ट ने 30 सितंबर की डेडलाइन दी है लेकिन हरियाणा को लेकर ऐसी क्या मजबूरी थी? उसे क्यों नहीं महाराष्ट्र के साथ कराया गया? वैसे भी खोजेंगे तो 10 मिसाल मिल जाएगी, जब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जाकर किसी मसले पर डेडलाइन बढ़ाने की अपील की। ईडी के निदेशक संजय मिश्रा का मामला ही है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने उनको हटाने की डेडलाइन दी थी और सरकार ने जाकर उसे आगे बढ़वाया। क्या उस तरह से जम्मू कश्मीर के चुनाव को 15 दिन आगे नहीं बढ़वाया जा सकता था? चुनाव आयोग ने 15-20 दिन की मोहलत मांग कर सारे चुनाव एक साथ कराने की बजाय जम्मू कश्मीर का चुनाव 30 सितंबर से पहले कराने का फैसला किया और उसके साथ हरियाणा का चुनाव जोड़ दिया। चुनाव आयोग को सारे चुनाव एक साथ कराने चाहिए थे। लेकिन कोई मजबूरी थी तो उसे जम्मू कश्मीर और हरियाणा के साथ साथ महाराष्ट्र का चुनाव कराना चाहिए था। ये तीनों चुनाव एक अक्टूबर को यानी दशहरा शुरू होने से पहले समाप्त हो जाते और झारखंड का चुनाव दिवाली व छठ के बाद दिसंबर में कराया जाता। इस तरह सारे त्योहार बचाए जा सकते थे। लेकिन पता नहीं किस मजबूरी में चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र का चुनाव नवंबर के लिए टाल दिया। इससे पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की प्रधानमंत्री की जुमलेबाजी पर सवाल उठे हैं।