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संसद से भी मैसेज

विपक्षी पार्टियां इस बार संसद सत्र के पहले दिन से संविधान हाथ में लेकर आ रही हैं। चुनाव में भी उन्होंने संविधान का मुद्दा बनाया और भाजपा पर आरोप लगाया कि वह संविधान को खत्म करना चाहती है। इससे चुनाव में जो झटका लगा उससे सबक लेकर संविधान के हिसाब से काम करने की बजाय मोदी ने यह अभियान शुरू कर दिया है कि कैसे कांग्रेस को संविधान विरोधी ठहराया जाए। इसके लिए खुद तो बयान दिया है कि संसद और राष्ट्रपति के अभिभाषण का भी इस्तेमाल हुआ है। अपनी राजनीति के लिए संवैधानिक और संसदीय व्यवस्था का इस तरह का इस्तेमाल भी पहले कभी नहीं देखा गया।

चुनाव नतीजे आने और नरेंद्र मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही सरकार की निरंतरता की बात हो रही है। सब कुछ पहले जैसा ही होता दिख रहा है। यह ध्यान रखने की जरुरत है कि ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि जनता ने बहुमत नहीं दिया तो जनता को दिखाना है कि भले उसने बहुमत नहीं दिया फिर भी सरकार तो वैसे ही चलेगी, जैसे पहले चलती थी। अगर पूर्ण बहुमत मिला होता या तीन सौ, चार सौ सीटें मिली होतीं तब निश्चित रूप से सब कुछ बदलता। अगर कुछ नहीं बदला है तो उसके जरिए यह दिखाने की कोशिश हो रही है कि मोदी नहीं बदलते हैं। वे सब कुछ वैसे ही करेंगे, जैसे करते रहे हैं। तभी तमाम मंत्रियों को रिपीट किया, उनको पुराने विभाग सौंपे और लोकसभा में स्पीकर भी ओम बिरला को बनाया।

ध्यान रहे विपक्ष उनसे बहुत नाराज था क्योंकि उन्होंने विपक्षी सांसदों को निलंबित करने का रिकॉर्ड बनाया था। तभी उनको दोबारा स्पीकर बना कर विपक्ष को एक मैसेज दिया है। संसद सत्र के दौरान केजरीवाल को जेल में दोबारा गिरफ्तार करा कर जो मैसेज दिया गया है वही मैसेज संसद में भी दिया गया है। प्रधानमंत्री मोदी संविधान को कितना मानते हैं इसके लिए अभिभाषण में कहा गया कि उनकी सरकार 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाती है।

बहरहाल, राष्ट्रपति के अभिभाषण से भी यही संदेश दिया गया है कि यथास्थिति बनी रहेगी और सब कुछ पहले की तरह चलता रहेगा। अभिभाषण में वही सारे जुमले लिखे गए थे, जो प्रधानमंत्री और उनकी सरकार के मंत्री 10 साल तक बोलते रहे हैं। सोचें, देश के मतदाताओं ने भाजपा को हरवा दिया। उसकी सीटें 303 से घट कर 240 हो गईं। यानी उसकी सीटों में 20 फीसदी की कमी हुई। पांच में से एक सांसद हार गया। लेकिन राष्ट्रपति के अभिभाषण में दावा किया गया कि देश के मतदाताओं ने स्थिर और स्पष्ट बहुमत वाली सरकार चुनी। प्रधानमंत्री ने भी इस अधूरी जीत को महान ऐतिहासिक विजय बताया है। बहरहाल, राष्ट्रपति के अभिभाषण में यह भी कहा गया कि देश के लोगों ने विकसित भारत के लिए वोट दिया है। सोचें, कितने दिनों से देश के लोग विकसित भारत का जुमला सुन रहे हैं! भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाना है, यह जुमला भी देश कई बरसों से सुन रहा है, जो फिर अभिभाषण में सुनाई दिया।

बाकी अभिभाषण में बताया गया कि चुनाव आयोग कितना महान है, कैसे ईवीएम ने सारे टेस्ट पास कर लिए, कैसे भारत विकसित बनेगा, प्रधानमंत्री की सेवा और सुशासन की भावना को लोगों ने वोट दिया है, इमरजेंसी काला अध्याय है, संविधान पर हमला है आदि आदि। लेकिन पूरे अभिभाषण में देश के ताजा हालात और नागरिकों की स्थिति के बारे में कुछ नहीं कहा गया है। महंगाई, बेरोजगारी की चर्चा नहीं हुई। लाखों बच्चों का भविष्य अंधकारमय बनाने वाले पेपर लीक और परीक्षा की गड़बड़ियों पर सिर्फ इतना कहा गया कि जांच हो रही है। ट्रेन दुर्घटना से लेकर मणिपुर की घटना तक का कोई जिक्र नहीं किया गया। यही तो पिछले 10 साल होता रहा है। चुनिंदा विषयों पर 24 घंटे भाषण और लोगों से जुड़े मुद्दों पर चुप्पी यह ट्रेडमार्क है। वही पहले सत्र से दिखाई दे रहा है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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