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मनोरंजन में लाइसेंस राज लौटा

OTT new guidelinesImage Source: ANI

भारत में अभी तक सेंसर बोर्ड फिल्मों को सेंसर करता था। अब खबर है कि ओटीटी यानी ओवर द टॉप प्लेटफॉर्म पर दिखाए जाने वाले सीरिज भी नियंत्रित किए जाएंगे। ओटीटी के लिए खासतौर पर से बनने वाली फिल्मों और सीरिज को लेकर सूचना प्रसारण मंत्रालय की ओर से नई गाइडलाइन जारी होंगी। इस नई गाइडलाइन पर अश्लील भाषा और गाली गलौज को वैकल्पिक माध्यमों से दिखाने के निर्देश दिए जाएंगे। ओटीटी पर फिलहाल बिना किसी पाबंदी के सारे दृश्य दिखाए जाते हैं।

लेकिन अब नई गाइडलाइन जारी होने वाली है। कहा जा रहा है कि नई गाइडलाइन कंटेंट में कोई बाधा नहीं डालेगी लेकिन यह सुनिश्चित करेगी की कहानी की बातें किसी और माध्यम से कही जाएं। अब सोचें, कला की अभिव्यक्ति पर पाबंदियों के बीच कैसे कोई कलाकार अपनी बात कह पाएगा? यह भारत में ही है, जहां माना जाता है कि अगर पाबंदी नहीं लगाई गई या गाइडलाइन नहीं बनी तो पता नहीं लोग क्या बनाने लगेंगे?

भारत में कला और संस्कृति पर सरकारी नियंत्रण: दिलजीत दोसांझ और बादशाह का समर्थन

सचमुच भारत को अब अपने कलाकारों, फिल्मकारों पर भरोसा नहीं है। भरोसा उन सरकारी बाबुओं पर है, जिनको न कला की समझ है, न संस्कृति की और न मनोरंजन की। ये बाबू लोग अब वैकल्पिक शब्द गढ़ने और दृश्यों को वैकल्पिक तरीके से फिल्माने के तरीके सुझाएंगे। अगर उस तरीके से काम नहीं हुआ तो पाबंदी लगा देंगे। ओटीटी कंटेंट और प्लेटफार्म पर सूचना व प्रसारण मंत्रालय नजर रखेगा।

ओटीटी और फिल्मों के साथ साथ लाइव शोज को लेकर भी नियंत्रण का काम जोर शोर से चल रहा है। हाल ही में पंजाबी सिंगर दिलजीत दोसांझ ने एक बहस शुरू की है। वे अपने ‘दिललुमिनाती दौरे’ पर हैं। उनके कुछ गानों को लेकर भारत में संस्कृति पुलिस ने सवाल उठा दिया और कहा कि वे शराब या दूसरी चीजों का जिक्र करते हैं गानों में, जिनका खराब असर पढ़ता है। उनके हैदराबाद कॉन्सर्ट से पहले यह विवाद उठा क्योंकि तेलंगाना सरकार ने उनको कानूनी नोटिस जारी कर दिया था। इसमें उन्हें कॉन्सर्ट के दौरान शराब, ड्रग्स या हिंसा को बढ़ावा देने वाले गाने नहीं गाने की चेतावनी दी गई थी। इसके बाद से ही शराब थीम वाले गानों को लेकर बहस चल रही है।

भारत में कला, मनोरंजन और व्यंग्य पर बढ़ता सरकारी नियंत्रण: कलाकारों और शो पर पाबंदी

इस बहस में रैपर बादशाह ने दिलजीत दोसांझ का समर्थन किया है। दोसांझ ने कहा कि सरकार शराब की दुकानें बंद कर दे तो वे शराब का इस्तेमाल गानों में नहीं करेंगे। ध्यान रहे भारत और दुनिया के सभी देशों में किसी न किसी रूप में शराब पर सैकड़ों गाने लिखे और गए गए हैं, जिन्हें पचासों साल बाद आज भी बड़े शौक से सुना जाता है।

ऐसे से हाल में एक एक करके ऐसे तमाम स्टैंड अप कॉमेडियन्स को निशाना बनाया जाने  लगा है, जो भारत में सरकार या सत्तारूढ़ दल के बनाए धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक श्रेष्ठता के नैरेटिव का मजाक उड़ाते हैं। पहले मुनव्वर फारूकी के शोज पर रोक लगनी शुरू हुई। उसके बाद कुणाल कामरा का कॉमेडी शो कैंसिल होने लगा। गुजरात से लेकर कर्नाटक और हरियाणा तक में इनके शोज कैंसिल हुए। वीर दास ने दुनिया के दूसरे हिस्से में ‘टू इंडिया’ की थीम पर हास्य शो कर दिया तो भारत में मुकदमे हो गए। पिछले दिनों कपिल शर्मा के कॉमिक शो को नोटिस मिला क्योंकि उसमें गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर के लिए कथित तौर पर कुछ अपमानजनक कर दिया गया था। हर साल कुछ फिल्में ऐसी होती हैं, जिनके खिलाफ देश में प्रदर्शन होता है। अभी पंजाब में ‘शाहकोट’ और ‘इमरजेंसी’ के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं।

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इन प्रदर्शनों की वजह से सेंसर बोर्ड को कैंची चलानी पड़ी। पिछले साल एनएसडी के भारत रंग महोत्सव में उत्पल दत्त के नाटक ‘तितुमीर’ का मंचन तय होने के बाद टाल दिया गया। यह ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लिखा गया नाटक था और कई बार मंचित हो चुका था। लेकिन ऐसा लगता है कि आयोजकों को लगा कि व्यवस्था विरोधी यह नाटक इस सरकार को भी शायद पसंद न आए। ऊपर से इसका क्रांतिकारी नायक मुस्लिम था।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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