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मोदी क्या बदलेंगे?

संभव नहीं। वे समय और मिजाज दोनों में बंधे हैं। समय ग्राफ के लुढ़कने का है। 2024 के जनादेश ने नरेंद्र मोदी को एक तरह से बर्फ की सिल्ली बना दिया है जो सियासी गर्मी में पिघलनी ही है। वे सत्ता में चाहे जितना रहें, लोगों में असंतोष और गुस्सा निरंतर बढ़ना है। मोदी की तीसरी कैबिनेट सत्ता और सत्ताखोरी में वक्त काटेगी। पहले सरकार में मोदी, अमित शाह दो का खेला था अब सबका खेला बनेगा। न महंगाई और बेरोजगारी में तनिक भी कंट्रोल संभव है और न शिक्षा, चिकित्सा और आवश्यक सेवाओं का सुधरना, उनका सस्ता होना मुमकिन है। ऊपर से दस साला भ्रष्टाचार की परतें धड़ाधड़ खुलनी हैं।

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ऐसे में नरेंद्र मोदी क्या करेंगे? वे चौबीस घंटे दिन रात इस चिंता में रहेंगे कि कैसे पुराना दस साला राज वापिस लौटे। वह राज जिसमें एकक्षत्रता थी। किसी की कैबिनेट में बोलने की हिम्मत नहीं होती थी। ईडी, सीबीआई आदि का जिधर चाहे हथौड़ा चला देते थे। अदालतें चिंता करती और घबराती थीं। हर दिन मीड़िया भगवान का नया शृंगार दिखाता होता था। प्रतिदिन सुबह-शाम आरती उतरती थी।

चिंता, असहजता और मिजाज की मजबूरी में नरेंद्र मोदी की सर्वोच्च प्राथमिकता लोकसभा में भाजपा के सासंदों की संख्या को 275 पार बनाने की होगी। मुश्किल है उनके लिए जो उनके साथ साथ चंद्रबाबू व नीतीश कुमार फोटो में नजर आएं। सुबह, शाम, संसदीय सत्र में रोज विपक्ष का शोर सुनें। इसलिए फोटो फ्रेम से नीतीश व चंद्रबाबू को आउट करना जरूरी है। पर वे इनका हाथ पकड़ कर इन्हें बाहर नहीं कर सकते तो डांटना, बोलना भी संभव नहीं।

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मोदी के लिए बड़ी चुनौती इसी साल होने वाले तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव हैं। उनमें में नरेंद्र मोदी का जादू फिर फेल हुआ तो क्या करेंगे? इसलिए बिहार के चुनाव तक मोदी को नीतीश कुमार की छाया में रहना है। उधर दक्षिण भारत के सारे राज्य और उनके मुख्यमंत्री व सांसद केंद्र से पैसे लेने, जीएसटी के मुद्दे और लोकसभा सीटों के परिसीमन के मामले में चंद्रबाबू को आगे रख कर अपना एजेंडा साधेंगे। इससे उत्तर भारत में भाजपा फुस्स होगी। भाजपा की प्रदेश सरकारों को लाले पड़ने हैं। संभव है एक जुलाई से लागू होने वाली नई आईपीसी पर भी दक्षिण में झमेला हो।

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इन स्थितियों में नरेंद्र मोदी क्या अटल बिहारी वाजपेयी की तरह अपने को लचीला, सभी के साथ फ्रेम में होने वाला, समावेशी बन सकते हैं? नामुमकिन। उनका अगला टर्निंग प्वाइंट हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनावों का होगा। चुनाव जीतने के लिए मोदी का तब एक्स्ट्रीम हल्ला बोल होगा तो संभव वहीं चंद्रबाबू और नीतीश उसे अनसुना करें। जाहिर है नरेंद्र मोदी नहीं बदल सकते हैं और इसी से आगे भी उनका हस्र है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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