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राष्ट्रवाद का उफान चरम पर

संविधान

राजनीति में कुछ चीजें संयोग से भी होती हैं। जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जिस समय ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेने जोहान्सबर्ग जाना था उसी समय भारत का चंद्रयान-तीन चंद्रमा पर उतरने वाला था। यह बड़ा संयोग था। उधर मोदी ब्रिक्स की बैठक में हिस्सा ले रहे थे और इधर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, इसरो के वैज्ञानिक चंद्रयान-तीन की सफल लैंडिंग चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर करा रहे थे, जहां आज तक दुनिया के किसी देश का अंतरिक्ष यान नहीं उतरा। प्रधानमंत्री ब्रिक्स की बैठक से ब्रेक लेकर वर्चुअल तरीके से इसरो से जुड़े और चंद्रयान की सफल लैंडिंग के गवाह बने। उन्होंने तालियां बजाईं और तिरंगा लहराया। दुनिया भर के नेताओं ने उनको बधाई दी। चीन, रूस, ब्राजील जैसे बड़े देशों के नेताओं के साथ मौजूद मोदी को इस घटनाक्रम का बड़ा लाभ मिला। दुनिया ने देखा कि भारत का प्रधानमंत्री एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में मौजूद है और उसके देश ने इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल की। देश के लोगों का सीना भी गर्व से चौड़ा हो गया। 

यह भी संयोग था कि जिस समय भारत ने चंद्रयान-तीन रवाना किया उसके थोड़े दिन बाद ही रूस ने भी अपना मून मिशन लॉन्च किया। रूस पहला देश है, जिसने अंतरिक्ष यान और अंतरिक्ष यात्री भेजा था। वह चंद्रमा पर उतर चुका है। उसने 1976 के बाद यानी 47 साल  बाद फिर से अपना मून मिशन लूना-25 को चंद्रमा पर रवाना किया लेकिन उसका मून मिशन फेल हो गया। भारत का चंद्रयान-तीन बुधवार को चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर उतरा। उससे पहले शनिवार को रूस का लूना-25 चंद्रमा की सतह से टकरा कर नष्ट हो गया। उसके बाद सारी दुनिया भारत के चंद्रयान को देखने लगी, जिसने सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग की। अगर सिर्फ भारत का चंद्रयान भी गया होता तब भी यह बड़ी घटना थी लेकिन रूस का मून मिशन फेल होने से भारत की उपलब्धि ज्यादा बड़ी हो गई। जोहान्सबर्ग में एक छोटा संयोग यह भी हुआ कि प्रधानमंत्री मंच पर गए तो जमीन पर तिरंगा पड़ा हुआ था, जिसे उन्होंने झुक कर उठाया और अपने पास रख लिया। बताया जा रहा है कि हर देश को उसको निर्धारित जगह बताने के लिए उस देश का झंडा नीचे रखा गया था लेकिन भारत की मीडिया ने इसे राष्ट्रवाद का मोमेंट बना दिया। 

एक संयोग यह भी था कि जिस समय प्रधानमंत्री जोहान्सबर्ग में थे और भारत का चंद्रयान चंद्रमा पर उतर रहा था उस समय भारत के 18 साल के रमेशबाबू प्रज्ञानंद ने शतरंज के विश्व मुकाबले में दुनिया के नंबर दो और नंबर तीन खिलाड़ियों को हराया और पांच बार के विश्व चैंपियन कार्लसन को चुनौती दी। पहले दो मुकाबले प्रज्ञानंद ने बराबरी के खेले। वे बाद में टाईब्रेकर में हार गए लेकिन दुनिया के सामने भारत के इस युवा खिलाड़ी ने अपनी छाप छोड़ी। भारत के जिन लोगों को इसरो, चंद्रयान या अंतरिक्ष विज्ञान की कोई समझ नहीं है और जिनको शतरंज के 64 खानों या मोहरों के बारे में कोई जानकारी नहीं है वे भी कामना कर रहे थे कि चंद्रयान-तीन सफल हो और प्रज्ञानंद जीतें। यह भारत के राष्ट्रवाद के उफान का समय था। सारा देश एक साथ प्रार्थना कर रहा था। मंदिरों, मस्जिदों और गिरिजाघरों में प्रार्थना हो रही थी। ऐसा मौका आधुनिक समय में शायद ही कोई देखने को मिला हो। 

यह भी एक संयोग है कि जिस समय चंद्रयान-तीन की लैंडिंग होनी थी, प्रज्ञानंद विश्व शतरंज चैंपियनशिप खेल रहे थे और जिस समय प्रधानमंत्री मोदी विश्व मंच पर एक सम्मेलन में हिस्सा ले रहे थे उसी समय हिंदी फिल्म ‘गदर-दो’ सफलता के नए रिकॉर्ड बना रही थी। पाकिस्तान जाकर उसकी पूरी सेना से अकेले लड़ने वाले तारा सिंह की यह कहानी 20 साल पहले भी सफल रही थी और इस बार भी जबरदस्त सफल रही है। महानगरों के मल्टीप्लेक्स से लेकर छोटे शहरों व कस्बों के सिंगल स्क्रीन थियेटर में दर्शकों ने इस फिल्म को पसंद किया। यह सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन रही है। यह इस बात का संकेत है कि देश में राष्ट्रवाद का कैसे उफान है। इससे यह भी पता चलता है कि भारत का राष्ट्रवाद किस तरह से पाकिस्तान के साथ जुड़ा हुआ है। तभी सोशल मीडिया में इस बात की चर्चा भी चलती रहती है कि क्या भारत कूटनीति के साथ साथ सीमा पर कोई सामरिक अभियान चला सकता है? ध्यान रहे पिछले लोकसभा चुनाव से पहले पुलवामा की घटना हुई थी और बदले में भारत ने बालाकोट पर स्ट्राइक किया था। अगर वैसा कुछ होता है तो राष्ट्रवाद की राजनीति कितनी सफल होगी, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। 

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