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पर वसूलना सब तरफ से

GST Modi governmentImage Source: ANI

GST Modi government: सरकार औसतन हर महीने एक लाख 60 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी वसूल रही है। इसका मतलब है कि साल का करीब 20 लाख करोड़ रुपया जीएसटी से आता है।

अगर रिफंड के बाद का आंकड़ा भी देखें तो करीब 15 लाख करोड़  रुपए बनता है। हर साल प्रत्यक्ष कर यानी आयकर से भी सरकार को 12 से 15 लाख करोड़ रुपए का राजस्व मिलता है। इसके बाद आयात शुल्क और पेट्रोलियम पर शुल्क से सरकार को औसतन छह से सात लाख करोड़ रुपए की आय होती है।

राज्यों की सरकारों को उत्पाद शुल्क के जरिए पांच लाख करोड़ रुपए की सालाना आय है। संसद के चालू सत्र में ही केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने बताया है कि सन 2000 के बाद से नेशनल हाईवे पर करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपए का टोल टैक्स वसूला गया है।

आंकड़े में बड़ा हिस्सा पिछले 10 साल का (GST Modi government)

जाहिर है इस आंकड़े में बड़ा हिस्सा पिछले 10 साल का ही होगा क्योंकि उससे पहले टोल रोड की संख्या बहुत कम थी। स्टेट हाईवे पर अलग टोल की वसूली होती है।

इसी तरह हर साल यह आंकड़ा आता है कि बैंकों ने छोटी छोटी सेवाओं के लिए कितनी तरह के शुल्क लगाए हैं और उनसे उनको कितनी आमदनी होती है।

केंद्र सरकार के वित्त राज्य मंत्रीर पंकज चौधरी ने संसद के पिछले सत्र में बताया था कि खातों में सिर्फ न्यूनतम बैलेंस मेंटेन नहीं कर पाने पर जुर्माना लगा कर देश के 11 सरकारी बैंकों ने 2020 से 2024 के बीच साढ़े आठ हजार करोड़ रुपए वसूले हैं।

सोचें, कौन है वह जो खातों में हजार या डेढ़ हजार रुपए का न्यूनतम बैलेंस नहीं मेंटेन कर पा रहा है? जाहिर है समाज का सबसे गरीब तबका न्यूनतम राशि नहीं मेंटेन कर पा रहा है उससे भी सरकार ने हजारों करोड़ रुपए वसूले है।

भारत की जीडीपी कितनी

सवाल है कि जब इतना पैसा सरकार आम लोगों से वसूल रही है और हर दिन उसके बाबू इस जुगाड़ में लगे रहते हैं कि कहां से और कैसे जनता से पैसा निकाला जा सकता है तो क्यों नहीं शिक्षा और स्वास्थ्य की बुनियादी सुविधा भी सरकार उपलब्ध नहीं करा पा रही है?

भारत सरकार ने वित्त वर्ष 20-24-25 के बजट में शिक्षा, रोजगार और कौशल पर एक लाख 48 हजार करोड़ रुपए खर्च करने का ऐलान किया है।

इसमें स्कूली शिक्षा के लिए 73,498 करोड़ और उच्च शिक्षा के लिए 47,619 करोड़ रुपए का आवंटन है। सोचें, बरसों से कहा जा रहा है कि सरकार शिक्षा पर जीडीपी के छह फीसदी के बराबर खर्च करेगी।

भारत की जीडीपी करीब चार सौ लाख करोड़ रुपए की है। अगर सरकार छह फीसदी खर्च करती है तो इस लिहाज से शिक्षा पर 24 लाख करोड़ रुपए खर्च होने चाहिए लेकिन असल में खर्च जीडीपी के आधा फीसदी से भी कम है।

बजट के हिसाब से देखें तो शिक्षा का आवंटन तीन फीसदी से कुछ ज्यादा है। इसका भी ज्यादा हिस्सा शिक्षकों को वेतन, भत्ते और पेंशन देने में यानी स्थापना पर खर्च होता है।

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गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व्यवस्था करने या बुनियादी ढांचे का विकास करने या अनुसंधान व विकास पर खर्च के लिए बहुत मामूली रकम बचती है।

इसका नतीजा यह है कि सरकारी शिक्षा की व्यवस्था दम तोड़ रही है और निजी शिक्षा व्यवस्था फल फूल रही है, जिसे देश की 90 फीसदी आबादी अफोर्ड नहीं कर सकती है।

स्वास्थ्य का भी यही हाल है। इस साल के केंद्रीय बजट में स्वास्थ्य के लिए आवंटन 91 हजार करोड़ रुपए के करीब है यानी कुल बजट खर्च के दो फीसदी से कुछ ज्यादा।

यानी केंद्र सरकार जितना कर वसूलती है उसका करीब तीन फीसदी शिक्षा पर और करीब दो फीसदी स्वास्थ्य पर खर्च करती है।

अगर पूरे देश की बात करें तो केंद्र और सभी राज्य सरकारें मिल कर शिक्षा पर ले देकर साढ़े सात लाख करोड़ और स्वास्थ्य पर नौ लाख करोड़ रुपए खर्च करते हैं।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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