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इंटरनेट पर भी चमत्कार और भक्त

इन दिनों इंटरनेट पर एक चमत्कारिक महिला अवतरित है। वह लोगों को 30-30 सेकेंड के टिप्स दे रही है, जिनसे उनकी समस्याएं चुटकियों में खत्म हो जाएगी। सोशल मीडिया में वायरल हो रहे उसके कई वीडियोज में एक वीडियो में वह महिला बताती है कि जिनके खिलाफ मुकदमे चल रहे हैं वे अदालत में जाएं और वहां की कैंटीन से एक पेप्सी की बोतल खरीद कर सारी पेप्सी वहां के टॉयलेट में बहा दें और बोतल व ढक्कन साथ लेकर आ जाएं तो मुकदमे का फैसला उनके पक्ष में हो जाएगा। 

ऐसा लग रहा है कि निर्मल बाबा की सक्रियता कम होने से जो जगह खाली हुई है उसे भरने की प्रतिस्पर्धा में इस महिला ने बाजी मारी है। दो दो सिगरेट एक साथ पीने वाली एक दूसरी महिला, सिगार वाली माता भी इन दिनों सोशल मीडिया में धूम मचाए हुए हैं। एक तीसरी महिला लोगों के थोड़े से बाल काट कर उनकी सारी समस्याओं को खत्म करने का दावा करती है। उसका भी जलवा सोशल मीडिया में बहुत दिख रहा है। मंत्र पढ़ कर बीमारी ठीक करने वाले एक बाबा की भी इन दिनों बहुत चर्चा है। मतलब यह है कि जिन बाबाओं को जमीन पर स्पेस नहीं मिल रहा है उनके लिए इंटरनेट का स्पेस है, जहां उन्होंने लाखों, करोड़ भक्त बना लिए हैं।     

सवाल है कि 21वीं सदी में ऐसा क्या हुआ, जिससे अचानक ऐसे बाबाओं, साधुओं की बाढ़ आई और ऐसी क्या परिघटना हुई, जो अपने 33 करोड़ देवी देवताओं के होते हुए भी दुखिया हिंदू समाज के लोग इन बाबाओं की शरण में अपने लिए राहत खोजने में लगे है? इसके तीन स्पष्ट कारण हैं। पहला आधुनिक समय में लोगों की बढ़ती मुश्किलें और उनका समाधान नहीं होना। दूसरा, सांस्थायिक रूप से अंधविश्वास को बढ़ावा देना और तीसरा, हिंदू धर्म के अंदर इस्लाम और ईसाई धर्म के चमत्कार की बातों को स्वीकार करके उनके जैसा बनने की प्रवृत्ति। 

पहले और तीसरे कारण को एक साथ मिला कर अगर बारीकी से देखें तो ऐसे सारे बाबा चमत्कार दिखाने का वादा करके लोगों को भक्त बना रहे हैं। देश के 140 करोड़ लोगों में हर व्यक्ति किसी न किसी तरह की समस्या से ग्रस्त है। मौजूदा व्यवस्था ने लोगों का जीवन बेहद मुश्किल बना दिया है और लोगों को राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक और बहुत हद तक पारंपरिक धार्मिक व्यवस्था से भी राहत मिलने की उम्मीद नहीं है। तभी वह ऐसे चमत्कारिक बाबाओं की शरण में जाता है। बाबा उसको अपना बच्चा बताते हैं, उनकी समस्याओं को दूर करने का वादा करते हैं, उनको भावनात्मक सहारा देते हैं, जो दूसरी किसी व्यवस्था से उनको नहीं मिलता है। तभी लोग ऐसे बाबाओं को मुरीद हो जाते हैं। अपनी समस्या में कोई ठोस राहत नहीं मिलने के बावजूद वे बाबा के गुणगान करते रहते हैं। कुछ समय पहले तक इस तरह के चमत्कारिक काम ईसाई धर्मगुरू लोग करते दिखते थे। टेलीविजन चैनलों पर इनका प्रसारण होता था, जिसमें अपने का ईसा मसीह का दूत बताने वाले धर्म गुरू कथित तौर पर असाध्य रोगों से ग्रस्त लोगों को मंच पर बुलाते थे, कोई मंत्र बुदबुदाते थे, पवित्र जल उसके ऊपर छिड़कते थे और वह व्यक्ति ठीक हो जाता था। 

ध्यान रहे इस्लाम और ईसाइयत दोनों सांस्थायिक धर्म हैं, जिनकी एक संरचना है, एक सर्वोच्च धर्मगुरू होता है, एक सर्वोच्च किताब होती है, एक सर्वोच्च धर्मस्थल होता है लेकिन हिंदू धर्म में ऐसा नहीं है। इसमें करोड़ों देवी देवता हैं, लाखों धर्मगुरू हैं और हजारों धार्मिक किताबें हैं। क्षेत्र विशेष और जाति विशेष के हिसाब से लोगों के कुल देवता या कुल देवी हैं, जिनकी वे पूजा करते थे। लेकिन अब हिंदू धर्म के बाबा लोग भी टेलीविजन और सोशल मीडिया में मार्केटिग-ब्रांडिग के व्यवसायी हठकंड़ों से चमत्कारों झांकी बनाकर घर-परिवारों में पैंठ रहे है। चमत्कार दिखाने का दावा करके भक्त बना रहे हैं।

बाबाओं के उदय और लोगों की भेड़ चाल में बनती भक्ति की सुनामा का एक कारण अंधविश्वास को सांस्थायिक रूप से बढ़ावा देना है। यह काम पिछले 10 साल से बहुत व्यापक तौर पर हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर उनकी सरकार के अन्य मंत्री और संगठन के लोग यह साबित करने में लगे हैं कि अस्पताल और स्कूल, कॉलेज से ज्यादा मंदिरों की जरुरत है। अब तो खुलेआम न्यूज चैनलों पर बताया जाने लगा है कि अगर नियमित मंदिर जाया जाए तो अस्पताल जाने की जरुरत नहीं पड़ेगी। एक से एक कथावाचक और संत, महात्मा प्रकट हुए हैं, जो टेलीविजन चैनलों या सोशल मीडिया के जरिए लोगों को चमत्कारों के बारे में बताते हैं। 

इन तमाम लोगों को सरकारी संरक्षण मिलता है और बड़े सरकारी कार्यक्रमों में इनको सादर आमंत्रित किया जाता है। बड़े बड़े नेता, अधिकारी, पत्रकार इनकी चरणों में बैठे दिखाई देते हैं। संत, महात्माओं या कथावाचकों तक आम लोगों की पहुंच नहीं होती है क्योंकि इनके कार्यक्रमों की फीस हजारों, लाखों में होती है। चूंकि इनकी वजह से मांग बढ़ गई है तो उसे पूरा करने के लिए हर जिले, शहर या कस्बे में चमत्कारिक बाबा अपने आप पैदा होंगे। बड़े लोग बड़े बाबाओं की दुकानों में यदि चरणधूलि ले रहे हैं तो गरीब, वंचित और समाज के सबसे कमजोर तबके के लोग भी यदि भोले बाबा जैसे बाबाओं की चरणधूलि के लिए जान दे रहे हैं तो क्या आश्चर्य।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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