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महाराष्ट्र से भाजपा को उम्मीद?

भारतीय जनता पार्टी चाहती थी कि महाराष्ट्र और झारखंड में उसे थोड़ा समय और मिले। यह संयोग देखिए कि चुनाव आयोग ने दोनों राज्यों के चुनावों की घोषणा नहीं की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक दिन पहले लाल किले से अपने भाषण में भगवान बिरसा मुंडा का जिक्र भी किया और उन्हें श्रद्धांजलि दी। यह अलग बात है कि उनके जन्म का साल वे गलत बता गए। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि पहले स्वतंत्रता संग्राम यानी 1857 की लड़ाई में एक आदिवासी युवक ने, जो उस समय 20 साल का था, अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था। उन्होंने कहा कि उस युवक को भगवान बिरसा मुंडा कहा जाता है।

उन्होंने यह भी कहा कि उनकी डेढ़ सौवीं जयंती आ रही है। सोचें, अगर बिरसा मुंडा 1857 में 20 साल के थे, तो उनकी डेढ़ सौवीं जयंती अब कैसे मनेगी, जबकि 1857 की क्रांति की डेढ़ सौवीं जयंती 2007 में ही मन चुकी है? असल में बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को हुआ था और इसलिए 15 नवंबर को ही अलग झारखंड राज्य का गठन हुआ था। तभी अगले साल बिरसा मुंडा की डेढ़ सौवीं जयंती मनाई जाएगी। प्रधानमंत्री इस तरह की बातें करते रहते हैं।

बहरहाल, भाजपा को महाराष्ट्र और झारखंड से बड़ी उम्मीदें हैं। अलग अलग कारणों से दोनों राज्यों में भाजपा थोड़ा समय चाहती थी। पहले महाराष्ट्र की बात करें तो वहां राज्य की एकनाथ शिंदे सरकार ने ढेर सारी रेवड़ियों की घोषणा की है। वहा रेवड़ियां बांटने की तैयारी चल रही है। राज्य सरकार ने मध्य प्रदेश की लाड़ली बहना योजना की तर्ज पर लड़की बहन योजना की घोषणा की है। इसके तहत सभी महिलाओं को हर महीने डेढ़ हजार रुपए देने की घोषणा है। इसकी पहली किश्त महिलाओं के खाते में ट्रांसफर होने ही वाली है। इसी तरह महाराष्ट्र सरकार ने लाड़ला भाई नाम से भी योजना घोषित की है, जिसके तहत लड़कों को नकद रुपए मिलने हैं। उसकी भी किश्त खातों में जाने वाली है। कांग्रेस की ओर से घोषित एप्रेंटिसशिप योजना का ऐलान भी राज्य सरकार ने किया है, जिसके तहत पढ़ने वाले और डिग्रीधारी बेरोजगार युवकों को नकदी दी जाएगी। भाजपा इन योजनाओं का लाभ पहुंचने के बाद ही चुनाव में जाना चाहती थी। सोचें, यह कैसा अद्भुत संयोग है कि भाजपा चाहती थी कि महाराष्ट्र का चुनाव थोड़ी देरी से हो और चुनाव आयोग ने देर कर भी दी। उसने जम्मू कश्मीर और हरियाणा के साथ महाराष्ट्र का चुनाव घोषित नहीं किया।

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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