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कुंभ को तो कुंभ रहने देते!

MahaKumbh 2025Image Source: ANI

Mahakumbh 2025: जो अद्भुत था वह अब शो है! जो व्यक्ति के निर्वाण का मौका था वह एक मुख्यमंत्री की वोट संख्या का अखाड़ा है!

जिन संतों, साधुओं के दर्शन से त्याग, तपस्या, दिव्यता का बोध होता था वे ही इस कुंभ में एक नेता पर शिवलिंग की तरह गंगा जल चढ़ाते दिखलाई दिए।

नेता को अर्घ्य चढ़ाते हैं और मुख्यमंत्री की चरण वंदना करते हैं! कुंभ, महाकुंभ के जो आयोजन अखाड़ों के सौजन्य, उनके बंदोबस्तों से, लोगों के चढ़ावों से हुआ करता था वह अब सरकारी आयोजन है!

अफसरों, ठेकेदारों तथा मीडिया की कमाई का धंधा है। तभी गौर करें मार्क ट्वेन के प्रयागराज के 1895 में कुंभ मेले पर लिखे इन वाक्यों पर, ‘अद्भुत है आस्था की यह शक्ति!

इतनी बड़ी संख्या में बूढ़ों, कमजोरों, युवाओं और दुर्बलों की अविश्वसनीय लंबी यात्राएं मगर बिना किसी दुविधा के लोगों का आना और होने वाले कष्टों पर बिना पश्चाताप, गिले शिकवे  के लौटना’!

शताब्दियों से हिंदू इतिहास का सनातनी सत्य है कि कभी भी किसी राजा ने, बादशाह और ईस्ट इंडिया कंपनी ने, अंग्रेजों ने, नेहरू और उनके कांग्रेसियों मुख्यमंत्रियों ने यह अहंकार नहीं पाला कि वे महाकुंभ के महा आयोजक हैं, वे न्योता दे रहे हैं! और फिर यह प्रोपेगेंडा, यह झूठ कि इतने करोड़ लोग आ गए हैं और यह शाही स्नान का मौका है।

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उफ! जंगलीपने की हद। सनातनी इतिहास में पहली बार हिंदुओं की आस्था को उस कॉमर्शियल इवेंट में कन्वर्ट कर डाला है, जिसकी टीआरपी, जिसका हिट होना प्रतिदिन की इस कसौटी में है कि आज कितने करोड़ लोगों ने डुबकी लगाई!

इतिहास के हर वृतांत में, विश्व के गिनीज बुक रिकॉर्ड सभी में जब पहले से भीड़ के विश्व रिकार्ड के नाते दर्ज है तो तुक क्या जो न्योता व प्रोपेगेंडा कर और भीड़ एकत्र करें!(Mahakumbh 2025)

आखिर कुंभ लोक आस्था का लोक आयोजन था और है। इस बहस का अर्थ नहीं है कि नदी किनारे स्नान, माघ मेले और कुंभ की लोक परंपरा का प्रारंभ बिंदु क्या है।

ऋग्वेद में ‘कुंभ’ शब्द, चीनी यात्री ह्यान-सांग के यात्रा वृतांत में कुंभ के उल्लेख या आदि शंकराचार्य के योगदान में क्या सत्य और क्या अर्ध सत्य है, इस पर विचारने की आवश्यकता नहीं है।

असल, एकमेव सनातन सत्य यह है कि कुंभ वैयक्तिक निर्वाण, पापों से मुक्ति व पुण्यता की लोक आस्था का धर्म विचार तभी से है जब से गंगा बह रही है!

नदी की पवित्रता, सूर्य को अर्घ्य, आदि नागा साधुओं की तप-तपस्या और महिमा में लोगों का तिथि अनुसार कुंभ, सिंहस्थ स्नान की आस्था को समय भी नहीं डिगा पाया।

लेकिन उसका कॉमर्शियल, टीआरपी शो, फोटो शूट, राजनीतिक प्रोपेगेंडा बनना मोदी-योगी राज का वह योगदान है, जिसने कुंभ के अमृत को कसैला बना डाला है।

कुंभ स्नान मन की अर्चना…

कुंभ स्नान मन की अर्चना थी। दिमाग की शांति थी। चकाचौंध और शोर, देखादेखी का वह कंपीटिशन या उन्माद नहीं था। लोग संगम पर पहुंचते थे तो केवल डुबकी लगा लेना मकसद नहीं था।

धर्म-कर्म भी था। विकीपीडिया में भी 1674 की ‘प्रयाग स्नान विधि’ पांडुलिपी की वह एक इमेज लगी हुई है, जिसमें विधि-विधान सम्मत स्नान से पुण्यता का योग होता है।

कुंभ वैयक्तिक पुण्यता, धार्मिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक उद्देश्यों का स्वंयस्फूर्त एक आयोजन था। वह अखाड़ों द्वारा संचालित होता था।

कुंभ, माघ स्नान, कल्पवास में हर व्यक्ति पूजा, अर्चना की विधि, अखाड़ों के विरक्त साधुओं के दर्शन और प्रवचन से पुण्यता साधता था।(Mahakumbh 2025)

तब अखाड़ों की कठोर दीक्षा से लोग अपने बच्चों को तपस्वी बनाने, अखाड़े को देने की परंपरा के भी पालक थे।

तब का इस तरह के घमंड और अहंकार का कोई विवरण नहीं है कि फलां हिंदू राजा ने महाकुंभ में स्नान कर अपनी झांकी दिखाई या उसने इतने पुल, इतने टेंट लगवाए और वे थे तो इतने लाख या इतने करोड़ लोगों ने मौनी अमावस्या के दिन अमृत चख लिया!

मौत का झूठ (Mahakumbh 2025)

और उफ, इस दफा मौनी अमावस्या के ही दिन, योगी राज द्वारा अखाड़ों और शंकराचार्यों से झूठ बोलना ताकि वे कुछ नही हुआ के भाव में शाही स्नान कर लें! बकौल शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के मौत का आंकड़ा 17 घंटे तक छुपाए रखा।

उन्होंने कहा, ‘साढ़े 10 बजे के करीब सीएम का बयान आता है कि घटना घटी है। कुछ लोग गंभीर रूप से घायल है। अफवाहों पर ध्यान नहीं दें।(Mahakumbh 2025)

फिर उनका ट्विट आया, जिसमें दोहराया गया अफवाहों पर ध्यान नहीं दें। हम लोगों ने जब देखा कि मुख्यमंत्री मौनी अमावस्या की बधाई तक दे रहे थे तो हम सब ने स्नान किया।

हमको धोखे में रखा की कोई मृत्यु नहीं हुई है। यदि सही समय पर जानकारी देते तो हम लोग परंपराओं का पालन करते हुए मृतकों की आत्माओं को श्रद्धांजलि देते। एक दिन का उपवास रखते। मगर उससे हमको वंचित कर दिया गया। इतना बड़ा धोखा संत समाज के साथ’!

शंकराचार्य की पीड़ा गलत नहीं(Mahakumbh 2025)

शंकराचार्य की पीड़ा गलत नहीं है। सोचें, उन तीर्थयात्रियों पर, जो रात में संगम के किनारे पुण्य प्राप्ति की शुभ घड़ी की प्रतीक्षा में सोए हुए थे कि अचानक भगदड़ का जनसैलाब आया और लोगों को रौंदते हुए मुर्दा घर पहुंचा दिया।

उनकी आत्माएं किस अवस्था में होंगी? ऐसे में उन आत्माओं की शांति, मुक्ति के लिए संतों-तपस्वियों-शंकराचार्यों और आयोजक अखाड़ों का सबसे पहले श्रद्धांजलि, उनके लिए प्रार्थना और पश्चाताप क्या नहीं करना था?(Mahakumbh 2025)

श्रद्धालुओं की आस्था के जो संरक्षक और कुंभ पर्व के मूल प्रवर्तक हैं! मगर उनसे झूठ बोल उन्हें गुमराह किया गया। व्याकुल आत्माओं की वेदना की घड़ी में झूठ-छल से शंकराचार्यों और अखाडों के शाही स्नान का आयोजन हुआ।

पता नहीं मोदी-योगी राज ने पवित्रता बनाम अपवित्रता, शुद्धता बनाम अशुद्धता, झूठ बनाम सत्य की हिंदू मीमांसा में अपना क्या संस्कार बनाया हुआ है? इतना तय मानें कि यह समय कलियुग का सर्वाधिक अविवेकी राहु काल है!

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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