भाजपा ने मध्य प्रदेश में उत्तराखंड मॉडल लागू करने की कोशिश की थी। आलाकमान और संघ ने समझाया था कि वे स्वंय घोषणा कर दें कि वे अब परिवर्तन चाहते है। इसलिए विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ेगे। मतलब उनकी जगह नया चेहरा लाकर चुनाव लड़ने की रणनीति बनी थी। लेकिन शिवराजसिंह अपनी पोजिशन छोड़ने को राजी नहीं हुए। उनको यह भी अंदाजा है कि पार्टी उनका चेहरा पेश करके चुनाव नहीं लड़ रही है तो जीतने के बाद उनको मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाएगा। इसलिए उन्होंने होशियारी से अपनी पोजिशनिंग बदली। वे खुद दावेदार बन गए हैं। वे अपनी सभाओं में अपने को सीएम बनाने के लिए वोट मांग रहे हैं। पिछले दिनों उनके कई जुमले काफी हिट हुए, जो उन्होंने सभाओं में बोले थे।
शिवराज ने एक सभा में पार्टी के आला नेताओं को मैसेज देने के अंदाज में कहा, ‘महिला सशक्तिकरण की आवाज हूं मैं, शिवराज हूं मैं-शिवराज हूं मैं’। इसी तरह उन्होंने एक सभा में भावुक होते हुए महिलाओं से कहा, ‘मैं चला जाऊंगा तब आपको बहुत याद आऊंगा’। एक चुनावी सभा में शिवराज ने कहा, ‘देखने में दुबला-पतला हूं लेकिन लड़ने में बहुत तेज हूं’। इसके अलावा वे अपनी हर सभा में लोगों से सवाल पूछ रहे हैं कि ‘नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनना चाहिए या नहीं’ और इसके आगे दूसरा सवाल यह पूछ रहे हैं कि ‘शिवराज को मुख्यमंत्री बनना चाहिए या नहीं’? इन दोनों सवालों पर जनता हाथ उठा कर हां कह रही है। इस बीच चुनाव की घोषणा के बाद शिवराज एक दिन के लिए हरिद्वार पहुंचे और गंगा किनारे बैठ कर उनके कुछ लिखने और चिंतन करने की तस्वीरें सामने आईं। ध्यान रहे पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजों से पहले ऐसे ही ध्यान करने के लिए वहा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गए थे।
मध्य प्रदेश में शिवराज चेहरा नहीं बन पाएं इसके लिए पार्टी ने तीन केंद्रीय मंत्रियों- नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते को उम्मीदवार बनाया है। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को भी चुनाव मैदान में उतारा गया। कल्पना करें क्या ये चारों चुनाव बाद शिवराजसिंह के नीचे उनके केबिनेट में मंत्री होंगे? उधर राजस्थान में वसुंधरा राजे को किनारे किया गया है। उनका चेहरा नहीं प्रोजेक्ट है तो उनके करीबियों के टिकट भी कट रहे है। भैरोसिंह शेखावत के दामाद और पार्टी के पुराने नेता नरपत सिंह राजवी की टिकट काटीगई। छत्तीसगढ़ में भाजपा ने रमन सिंह को बहुत पहले से किनारे किया हुआ है। उनकी कमान में 2018 का चुनाव हारने के बाद पार्टी ने उनको हाशिए में डाल दिया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में उनके बेटे व सांसद अभिषेक सिंह की टिकट भी काट दी गई। छतीसगढ़ में पार्टी बिना चेहरे के चुनाव लड़ रही हैं।