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तृणमूल, राजद जानी दुश्मन

भाजपा के लिए प्रादेशिक पार्टियों की भी दो श्रेणियां हैं। पहली श्रेणी में तृणमूल और राजद हैं, जिनको हरा कर भाजपा ताकतवर हो सकती है और दूसरी श्रेणी में डीएमके है, जिसको भाजपा अभी हरा नहीं सकती है। इसलिए डीएमके नेताओं पर कार्रवाई की रफ्तार धीमी है और तृणमूल व राजद के नेताओं पर अंधाधुंध कार्रवाई हो रही है। ध्यान रहे पश्चिम बंगाल में पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 18 सीटें जीती थीं और उसे 41 फीसदी के करीब वोट मिले थे। राज्य में हिंदू आबादी 70 फीसदी है। इस लिहाज से कह सकते हैं कि हिंदुओं का 60 फीसदी वोट भाजपा को मिला था। अगर इस वोट में जरा सा भी इजाफा होगा तो भाजपा पहले से ज्यादा सीट जीत सकती है। तभी केंद्र सरकार की सबसे बड़ी कार्रवाई पश्चिम बंगाल में हो रही है। शिक्षक भर्ती घोटाला, कोयला तस्करी, चिटफंट घोटाला या ऐसे किसी भी मामले में ममता सरकार के मंत्रियों और नेताओं को पकड़ कर जेल में डाला जा रहा है।

दो साल पहले मदन मित्रा, फिरहाद हाकिम, शोभन चटर्जी और सुब्रत मुखर्जी जैसे बड़े नेता गिरफ्तार हुए थे। हालांकि उनको जल्दी ही जमानत मिल गई थी। लेकिन ममता सरकार के मंत्री रहे पार्था चटर्जी अभी जेल में बंद हैं और इस बीच एक दूसरे मंत्री ज्योतिप्रिय मलिक को भी ईडी ने गिरफ्तार कर लिया है। ममता की पार्टी के कद्दावर नेता अणुब्रत मंडल भी जेल में बंद हैं। ममता के भतीजे और पार्टी के सांसद अभिषेक बनर्जी और उनकी पत्नी रूजिका बनर्जी व उनके रिश्तेदारों से केंद्रीय एजेंसियों की पूछताछ लगातार चल रही है और कभी भी उनकी गिरफ्तारी हो सकती है। ममता के कई और मंत्रियों पर भी छापे पड़े हैं। उनकी पार्टी को आने वाले दिनों में राहत नहीं मिलेगी। एक तरफ भाजपा ममता के परिजनों और उनकी पार्टी के नेताओं के यहां कार्रवाई करके राज्य सरकार के भ्रष्ट होने का मैसेज बनवा रही है तो दूसरी ओर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप भी लगा रही है। तुष्टिकरण के आरोपों से राजनीतिक फायदा होगा लेकिन केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई से पार्टी कमजोर होगी और चुनाव लड़ने की उसकी सामर्थ्य घटती जाएगी।

इसी तरह बिहार में पुरानी सहयोगी जनता दल यू के मुकाबले राष्ट्रीय जनता दल के ऊपर केंद्रीय एजेंसियों की ज्यादा कार्रवाई हो रही है। इसके दो मकसद हैं। पहला तो लालू प्रसाद के परिवार और पार्टी को भ्रष्ट साबित करके नीतीश कुमार पर दबाव बनाना कि वे चुनाव से पहले राजद से पल्ला झाड़ें। हालांकि इसकी संभावना कम दिख रही है। दूसरा मकसद लालू प्रसाद के पूरे परिवार को केंद्रीय एजेंसियों और कानूनी कार्रवाई के पचड़े में फंसा कर उनकी चुनावी तैयारियों को पंक्चर करना है। अगर कार्रवाई इसी तरह चलती रहती है तो राजद के पास संसाधन की कमी होगी और तैयारियां प्रभावित होंगी। भाजपा को इसका फायदा मिल सकता है। बिहार में भाजपा 2014 का करिश्मा दोहराने की उम्मीद कर रही है। हालांकि तब नीतीश अलग लड़े थे।

डीएमके नेता एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन और पार्टी के सांसद ए राजा ने सनातन धर्म पर तीखी टिप्पणी की, जिसकी भाजपा के सभी बड़े नेताओं ने आलोचना की। इसके अलावा डीएमके से हिंदू-मुस्लिम वोट वाला विरोध नहीं है। इसके बावजूद राज्य सरकार के मंत्री सेंथिल बालाजी गिरफ्तार हैं और जेल में बंद हैं। फिल्मों से जुड़े अनेक लोगों पर आयकर विभाग की कार्रवाई हुई, जिसमें से कुछ लोगो के संबंध उदयनिधि स्टालिन से हैं। असल में डीएमके के सनातन विरोध का फायदा उठा कर भाजपा राज्य की राजनीति में कुछ स्पेस हासिल करना चाहती है। तभी अगले कुछ दिन में वहां भी कार्रवाई तेज हो सकती है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी केंद्रीय एजेंसियों के निशाने पर हैं। उनके कई करीबी लोगों पर कार्रवाई हुई है। हालांकि इसके बावजूद खुद हेमंत अभी तक बचे हुए हैं। पांच राज्यों के चुनाव के बाद झारखंड की राजनीतिक तस्वीर कुछ साफ होगी।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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