राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

400-400 ही क्यों, 500 क्यों नहीं?

लोकसभा चुनाव

कहावत है थोथा चना, बाजे घना! और यह बात जनसंघ-भाजपा की राजनीति पर शुरू से लागू है। मेरी याद्दाश्त में यूपी में जनसंघ द्वारा अटल बिहारी वाजपेयी को मुख्यमंत्री बनाने का हल्ला करके विधानसभा चुनाव जीतने की हवाबाजी से लेकर 2004 में शाइनिंग इंडिया और अब विकसित भारत से 400 सीट का शोर इस बात का प्रमाण है कि ढोलबाजी में भाजपा का जवाब नहीं है। Lok Sabha Elections 2024

पिछले सप्ताह भाजपा का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ। और भाजपा के प्रतिनिधियों ने पार्टी की दशा पर नहीं सोचा। बूझा नहीं कि पार्टी किस तरह कांग्रेसियों, दलबदलुओं, सत्तालोलुपों से भरती हुई है। चाल, चेहरे, चरित्र में भूखी, नंगी होती हुई है। मगर प्रतिनिधिजन भक्ति में 400 सीटों का गुब्बारा लेकर घर लौटे। सब 400-400 के हल्ले से बम-बम हैं।

पहली बात, 400 सीटें पा भी ली तो कौन सा कीर्तिमान बनना है? छप्पर फाड़ जीत और दस-पंद्रह साल के राज से भी क्या हो जाना है? और भाजपा को 400 सीटे मिल रही है या एनडीए को? और 415 सीटें तो 1984 में राजीव गांधी की कमान में अकेले कांग्रेस की जीती हुई है! कांग्रेस के जवाहरलाल नेहरू व इंदिरा गांधी ने 17-17 साल राज किया तो मोदी पंद्रह साल राज करें, अमित शाह बीस साल राज करें तो क्या हो जाएगा?

बहरहाल, भाजपा और एनडीए की अनहोनी तब है जब नरेंद्र मोदी 400 से पार नहीं, बल्कि 500 से पार सीटें जीतने का रियल रिकॉर्ड बनाएं। इतना सब करने के बाद भी यदि पूरा भारत उनके चरणों में नहीं लोटे तो क्या मतलब होगा। फिर सबसे बड़ी बात जो उन्होंने खुद चुनाव में कांग्रेस के पूरी तरह डूबने की बाद कहीं हुई है। उसी के चलते सारे उपाय हैं। कांग्रेस चुनाव के लिए इकट्ठा हुआ पैसा खा लिया गया है। कांग्रेस और विपक्ष के कथित बड़े-महान नेता खरीद लिए गए हैं। Lok Sabha Elections 2024

अकड़ू हेमंत सोरेन, अरविंद केजरीवाल जैसों को जेल में डाला जा रहा है। शरद पवार और उद्धव ठाकरे जैसे खुद्दारों से उनकी पार्टी छीन ली गई है। ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, मायावती, जगन मोहन, चंद्रशेखर राव जैसों को कठपुतली बना कर नचा रहे हैं तो वही मीडिया हर एंगल से केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना सभी ओर कमल को खिलता बतला रहा है। इसलिए क्यों नरेंद्र मोदी का अगला राजतिलक 500 सीटों से कम का हो? क्यों मोदी-शाह 400 सीटों पर अटके रहें!

सबसे बड़ा सवाल जब पूरा देश मोदी को वोट देने के लिए टूट पड़ रहा है तो भारत, उसके लोकतंत्र, चुनाव की विश्वसनीयता और खुद नरेंद्र मोदी की साख में ईवीएम मशीनों पर विरोधियों की शंका को दूर करने के लिए भला कागज के मतपत्रों से चुनाव कराने का फैसला क्यों नहीं होता? सांच को आंच नहीं की सनातनी परीक्षा में नरेंद्र मोदी को चुनाव आयोग से ईवीएम मशीनों के साथ वीपीपैट की कागजी स्लीप से भी मतगणना का ऐलान करा देना चाहिए। सोचें, विपक्ष लूला-लगंड़ा, अधमरा है।

विरोधी पप्पू लोगों के पास लड़ाई के तीर-कमान भी नहीं हैं। मतलब मैदान में विपक्ष का होना न होना बेमतलब है तो पहली बात मोदी-शाह को पांच सौ सीटे जीतने का विश्वास क्यों नहीं? चुनाव को ईवीएम की जगह मतपत्रों से करवाने का फैसला क्यों नहीं?

इसलिए क्योंकि जमीन की रियलिटी वह नहीं है जो पालतू मीडिया से दिखलाई जा रही है। जरा 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों के आईने में हिसाब लगाएं। तब 545 सीटों में से भाजपा को 303 सीटें और 37.7 प्रतिशत वोट मिले थे। भाजपा के एनडीए एलायंस की तब 351 सीटें और 38.5 प्रतिशत वोट थे। बाकी पार्टियों की कुल सीटें 194 में और उनका प्राप्त कुल वोट 61.5 था। Lok Sabha Elections 2024

इसलिए मई में भाजपा की 400 सीटें तब होगी जब वह 2019 के मुकाबले 97 सीट ज्यादा जीते। और एनडीए की 351 सीट तब 400 या पांच सौ पार हो सकती है जब उसे चुनाव में 50 या 151 सीटें और मिलें।

इसका अर्थ है भगवा हवा के इपिसेंटर की 204 सीटों में भाजपा हर सीट जीते। फिर लड़ाई के मुकाबले वाले राज्यों की 207 सीटों में भाजपा कम से कम दो-तिहाई सीटें जीते। और विपक्षी गढ़ वाले राज्यों की 115 सीटों में आधी सीटें जरूर जीते तभी 400 पार का आंकड़ा बनता है। और ऐसा होना नहीं है। लेकिन मोदी है तो मुमकिन है!

इसलिए त्रिवेंद्रम से ले कर श्रीनगर (पता नहीं शशि थरूर और फारूक अब्दुल्ला को अब तक क्यों नहीं खरीदा गया?) तक की हर सीट भाजपा जीतने के ख्वाब में है। और फिर विपक्ष की मानें तो ईवीएम है ही!

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *