विश्वास नहीं करेंगे? करना भी नहीं चाहिए। मुझे भी नहीं है। और फिर शुक्रवार को ही दिल्ली के ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में नागपुर की डेटलाइन से सूत्रों के हवाले खबर छपी है कि आरएसएस ने नरेंद्र मोदी को आशीर्वाद दिया हुआ है। पर ध्यान दें ‘सूत्र’ के हवाले खबर है। वैसे ही जैसे सूत्रों के हवाले चंद्रबाबू नायडू व नीतीश कुमार को लेकर खबरें है। बावजूद इसके मेरे सूत्रों की इस बात को नोट करके रखें कि संघ प्रमुख मोहन भागवत, उनके नंबर दो दत्तात्रेय, संघ की ओर से भाजपा को संभालने वाले अरूण कुमार अब उसी लाइन में चल रहे हैं जो जेपी नड्ड़ा की आवाज में भगवानश्री नरेंद्र मोदी की आत्मा बोली थी कि अब भाजपा अपने आप में समर्थ है। उसे आरएसएस की जरूरत नहीं है।
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चुनाव के दौरान आरक्षण पर मोहन भागवत का बयान करवाने के लिए जरूर नरेंद्र मोदी के यहां से फोन खड़के हों अन्यथा अपने सूत्रों की मानें तो 2024 का पूरा चुनाव नरेंद्र मोदी-अमित शाह ने आरएसएस को बाईपास करके लड़ा है। यह बात चुनाव में हार के लिए संघ का पल्ला झाड़ने की सफाई से निकली हुई नहीं है, बल्कि नरेंद्र मोदी द्वारा आरएसएस को यह हैसियत बताने से है कि मैं तो भगवान और तुम? संघ के केवल एक शख्स सुरेश सोनी को नरेंद्र मोदी वक्त देते हैं।
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सुरेश सोनी ने ही 2013 में नरेंद्र मोदी पर संघ का ठप्पा लगवाया था। वे मोदी की भक्त कैटेगरी के हैं। सोनी ही संघ की बात मोदी तक पहुंचाने का एकमात्र जरिया हैं। बाकी किसी की एक्सेस नहीं है। ऐसा क्यों? इसलिए क्योंकि नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने जान लिया है कि मोहन भागवत, दत्तात्रेय, अरूण कुमार, बीएल संतोष आदि की जमात बिना रीढ़ की हड्डी के हैं। इनकी वजह से मोदी नहीं हैं। मोदी को भगवान ने भेजा है। इसलिए हाड़-मांस के इन लोगों से क्या बात करनी जो उनकी कृपा की कतार में आकांक्षी हैं। बहरहाल डिटेल में जाने की जरूरत नहीं है। इतना भर जान लें कि बिना बातचीत तथा पार्टी में बिना विचार-विमर्श के नरेंद्र मोदी का तुरत-फुरत भाजपा का नेता बनना संघ आलाकमान के लिए सदमे जैसा है। उन्होंने संघ को हैसियत दिखला दी है।
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