लोग हैरान हैं यह बूझ कर कि नरेंद्र मोदी का राज तो वैसा ही है जैसे 2019 में 303 सीटें जीतने के बाद था। वही चेहरे वही सरकार। वैसे ही रिपीट सब जैसे पहले था। सहयोगियों में न चंद्रबाबू नायडू ने गड़बड़ की और न नीतीश कुमार ने। सहयोगी पार्टियों को न बड़े मंत्रालय दिए गए और उनका स्पीकर बनता लगता है। नरेंद्र मोदी भाषणों में वैसी ही भभकारियां मार रहे हैं, जैसे पहले मारते थे। शपथ समारोह में और अधिक भीड़ थी। टीवी चैनल, मीडिया भी कमोबेश वैसे ही है जैसे चुनाव से पहले थे।
सब सही है। मगर ऐसा ही हुआ करता है। लोकतंत्र में बहुमत के दावे के साथ किसी की भी प्रधानमंत्री पद पर शपथ हो तो वह स्वाभाविक उतना पॉवरफुल होगा जो उस पद में निहित पॉवर है। आईके गुजराल या एचडी देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने या चरण सिंह ने येनकेन प्रकारेण जब शपथ ली थी तब बतौर प्रधानमंत्री इनका पॉवर शो भी पूरे रूतबे से था। फर्क इतना सा है कि नरेंद्र मोदी अपने पॉवर को शो बनवाते हैं। अपने आपको और अधिक पॉवरफुल, लोकप्रिय जतलाने के लिए हर प्रपंच करते हैं। ताजा शपथ समारोह में नारे लगाने के लिए भी हुजूम बनवाया हुआ था।
कह सकते हैं नरेंद्र मोदी की तीसरी सरकार दिखावे के ज्यादा मैनेजमेंट लिए हुए होगी। दूसरी बात, नरेंद्र मोदी को, अडानी-अंबानी को सरकार बनानी ही थी। इसके लिए पहले से ही बेइंतहां मैनेजमेंट था। लॉबिंग से ले कर पैसे आदि सबका बंदोबस्त रहा ही होगा। इसलिए कयास लगा सकते हैं कि चंद्रबाबू नायडू हों या नीतीश कुमार या एक्सवाईजेड सबके साथ पर्दे के पीछे किस-किसने क्या-क्या और कैसे मैनेजमेंट किए होंगे। तीसरी बात, गौर करें देश के खरबपतियों के मतलब के सारे बड़े मंत्रालय जैसे पोर्ट, शिपिंग, स्टील, भारी उद्योग, कोयला-खनन, पॉवर, शहरी विकास, नागरिक उड्डयन, पेट्रोलियम-गैस, संचार मंत्रालय या दक्षिण के पास है या प्रधानमंत्री दफ्तर को यस सर करने वाले नेताओं व नौकरशाहों के पास। भारत का एक यह भी सत्य है कि राजनीति में उत्तर भारतीय नेता और कार्यकर्ताओं की औकात शुरू से राशन, गैस सिलेंडर, टेलीफोन कनेक्शन करवाने याकि छोटे-छोटे स्वार्थों की रही है वही दक्षिण का मामला अलग है। उत्तर का नेता लोगों के गैस सिलेंडर कराया करता था (और नरेंद्र मोदी ने पिछले दस वर्षों के कार्यकाल में भी गैस सिलेंडर जैसी चिल्लरों से उत्तर भारतीयों को लुभाया है) वही दक्षिण भारत के नेता और वर्कर केंद्र के मंत्री से काम कराने आते थे टोयोटा कार की एजेंसी की सिफारिश लिए रहते थे या बड़े लोगों के बड़े प्रोजेक्टों की लॉबिंग।
इसलिए तय मानें मोदी के इस कार्यकाल में खरबपतियों की पौ बारह है। पैसे से राजनीति का मैनेजमेंट भी भारी होगा। स्टील, ईंधन, कोयला, बिजली, मालभाड़े के कार्टेल अपने उत्पादों के दाम दबा कर बढ़ाएंगें। कंपनियों का कॉरपोरेट मुनाफा छप्पर फाड़ बढ़ेगा। आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू मनचाहा करेंगे तो देश के खरबपतियों के चंद्रबाबू नायडू नए मसीहा होंगे। संभव है वे नरेंद्र मोदी की तरफ से कई बड़े मामलों में संकटमोचक हों।
और चंद्रबाबू या नीतीश कुमार (जात राजनीति में) का रोल बनना 240 बनाम 303 सीटों का बड़ा फर्क है। इसलिए नरेंद्र मोदी अब आश्रित प्रधानमंत्री हैं। भाजपा में वे चाहे जो करें, लेकिन उन्हें भी पता है कि अब वे ज्यादा अकेले हैं। जब बनारस के अपने चुनाव में ही उन्होंने अपने आप को अकेला पाया। बूथ लेवल तक की चिंता करनी पड़ी और योगी आदित्यनाथ, अमित शाह, भाजपा का काडर, आरएसएस कोई जमीन पर नहीं मिला तो इसका अर्थ है नरेंद्र मोदी को और ज्यादा अकेले जमीन की चिंता करनी होगी।
हां, नरेंद्र मोदी को जमीन मालूम हो गई है। आगे लोकसभा जब चालू होगी और सामने विपक्ष में ढाई सौ लोगों की भीड़ का हल्ला बोल सुनेंगे तो नरेंद्र मोदी अनिवार्य रूप से सामने बैठे राहुल गांधी को ले कर यह तो सोचेंगे कि राहुल और अखिलेश उत्तर प्रदेश में अब उनसे ज्यादा लोकप्रिय हैं।
सही है नरेंद्र मोदी बदल नहीं सकते और न बदलेंगे। बावजूद इसके कैबिनेट की बैठक हो या संसद की बैठक या तमाम तरह के कार्यक्रमों में उन्हें बार-बार अहसास होता हुआ होगा कि लोगों की नजरें कैसी बदली हुई हैं! कोई न माने इस बात को लेकिन 2024 का शपथ समारोह ही अपने आपमें यह बतलाते हुए था कि मोदी और मोदी की भीड़ अब वह नहीं जो 2014 और 2019 के शपथ समारोह में थी। तब मोदी और लोग सब कुछ से स्वंयस्फूर्त अभिभूत थे। जोश, उमंग और अभिनंदन तब स्वंयस्फूर्त था। वही नौ जून को सब कुछ प्रायोजित। प्राइम टाइम पर दिखावे का ऐसा क्रास याकि फूहड, भोंडा, उबाऊ, थकाऊ और भीड़ वाला आयोजन। पता नहीं हजारों की भीड़ में कितने लोगों ने उस शपथ के शो को एन्जॉय किया होगा। सो, नई मोदी सरकार अब समर्थकों के लिए भी एन्जॉय वाली नहीं है। और देश के लिए क्या आगे होगी यह आने वाले समय के विधानसभा चुनावों से अनिवार्यतः जाहिर होगा।