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झारखंड में पिछड़ा रिकॉर्ड दोहराना मुश्किल

बिहार की तरह ही झारखंड में भी भाजपा के लिए पिछला प्रदर्शन दोहराना मुश्किल दिख रहा है। पिछली बार भाजपा ने राज्य की 14 में से 11 सीटें जीती थी। एक सीट उसकी सहयोगी पार्टी आजसू ने जीती थी। इस बार भी गिरिडीह सीट पर आजसू चुनाव लड़ रही है और बाकी 13 सीटों पर भाजपा। पिछली बार दो सीटें, सिंहभूम और राजमहल विपक्षी गठबंधन ने जीती थी। सिंहभूम सीट जीतने वाली गीता कोड़ा इस बार भाजपा की टिकट पर लड़ रही हैं। सो, भाजपा को अपनी 12 और आजसू की एक सीट बचानी है। राज्य में चौथे चरण से मतदान शुरू होगा और आखिरी चरण तक चलेगा। सभी सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा के बाद जो हालात दिख रहे हैं उससे ऐसा लग रहा है कि पिछली बार नजदीकी मुकाबले वाली सीटों पर इस बार भी भाजपा को कुछ मुश्किल होगी।

पिछली बार भाजपा ने लोहरदगा की सीट सिर्फ 10 हजार वोट के अंतर से जीती थी। भाजपा के सुदर्शन भगत ने कांग्रेस के सुखदेव भगत को हराया था। इस बार भाजपा ने सुदर्शन भगत की जगह समीर उरांव को उतारा है, जबकि कांग्रेस से सुखदेव भगत ही लड़ रहे हैं। भाजपा की मुश्किल यह है कि लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद हुए विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र में एक भी सीट भाजपा नहीं जीत पाई थी। सभी पांच सीटें आदिवासी के लिए आरक्षित हैं, जिनमें से तीन जेएमएम ने और दो कांग्रेस ने जीती हैं। इस बार भाजपा की उम्मीद इस बात पर है कि निर्दलीय चुनाव लड़ रहे जेएमएम विधायक चामरा लिंडा कितना वोट काटते हैं और कांग्रेस के पूर्व राज्यसभा सांसद धीरज साहू भितरघात करके कितना नुकसान कराते हैं।

इसी तरह दुमका सीट पर भाजपा के सुनील सोरेन 47 हजार वोट से जीते थे। इस बार भाजपा ने जेएमएम के संस्थापक शिबू सोरेन की बहू सीता सोरेन को पार्टी में लाकर दुमका से टिकट दिया है। दूसरी ओर जेएमएम ने शिबू सोरेन की जगह पार्टी के विधायक नलिन सोरेन को उतारा है। दुमका में छह विधानसभा सीटें हैं, जिन में से पिछली बार पांच पर जेएमएम और कांग्रेस को जीत मिली थी। सभी तीनों सुरक्षित सीटें जेएमएम ने जीती थीं। यह सोरेन परिवार का पुराना गढ़ रहा है।

सीता सोरेन के उतरने से भाजपा जीत की उम्मीद कर रही है लेकिन मुश्किल यह है कि इस इलाके में लोग उम्मीदवार के नाम से ज्यादा गुरूजी यानी शिबू सोरेन की पार्टी के चुनाव चिन्ह तीर धनुष को पहचानते हैं। कम अंतर वाली तीसरी सीट खूंटी है, जहां से अर्जुन मुंडा पिछली बार सिर्फ डेढ़ हजार वोट से जीते थे। इस बार भी उनका मुकाबला कांग्रेस के कालीचरण मुंडा से है। खूंटी की सभी छह विधानसभा सीटें आदिवासी के लिए आरक्षित हैं, जिनमें से चार कांग्रेस और जेएमएम के पास है और भाजपा के पास दो सीटें हैं। उनमें से एक खूंटी विधानसभा सीट से पांच बार से नीलकंठ मुंडा जीत रहे हैं, जिनके भाई कालीचरण मुंडा कांग्रेस की टिकट से लड़ रहे हैं।

पिछली बार कांग्रेस ने सिंहभूम और जेएमएम ने राजमहल सीट जीती थी। इस बार भी इन दोनों सीटों पर कांग्रेस और जेएमएम अच्छी टक्कर दे रहे हैं। भाजपा ने गीता कोड़ा को उतार कर सिंहभूम सीट जीतने का दांव चला है। वे मधु कोड़ा की पत्नी हैं और मधु कोड़ा ‘हो’ आदिवासियों के सबसे बड़े नेता हैं। उनका इलाका ‘हो’ आदिवासी बहुल है। लेकिन उनके क्षेत्र की सभी विधानसभा सीटें कांग्रेस और जेएमएम ने जीती है। उनके पाला बदल कर भाजपा के साथ जाने के बाद मुकाबला दिलचस्प हो गया है।

मुख्यमंत्री चंपई सोरेन की सीट भी इसी लोकसभा क्षेत्र में आती है। सो, जेएमएम ने इसे प्रतिष्ठा का मुकाबला बनाया है। राजमहल सीट पर जेएमएम ने फिर से अपने सांसद विजय हांसदा को उतारा है, जिनका मुकाबला भाजपा के ताला मरांडी से है। राजमहल लोकसभा के तहत आने वाली छह विधानसभा सीटों में से चार सुरक्षित सीटें हैं, जिन पर पिछली बार जेएमएम जीती थी। एक सीट कांग्रेस की है और एक सामान्य सीट भाजपा को मिली है। यह भाजपा के लिए सबसे मुश्किल सीट है।

इन पांच मुश्किल मुकाबले वाली सीटों के अलावा झारखंड की कम से कम दो और सीटों पर कड़ी टक्कर दिख रही है। हजारीबाग में यशवंत सिन्हा के बाद अब उनके बेटे जयंत सिन्हा को भी भाजपा ने पैदल कर दिया है। उनकी जगह मनीष जायसवाल को टिकट दी गई है। दूसरी ओर कांग्रेस ने भाजपा से विधानसभा जीते जेपी पटेल को उम्मीदवार बनाया है। वे झारखंड के दिग्गज नेता रहे टेकलाल महतो के बेटे हैं। जेपी पटेल के ससुर और जेएमएम के विधायक मथुरा महतो गिरिडीह से चुनाव लड़ रहे हैं। इन दोनों के जरिए जेएमएम और कांग्रेस ने भाजपा और आजसू को महतो यानी कुर्मी वोट में सेंध लगाने की कोशिश की है। अगर इसमें कामयाबी मिलती है तो ये दोनों सीटें भाजपा के लिए मुश्किल वाली होंगी।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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