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वाह! मोदी का ईदी खाना!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पटना और बनारस में शो लाजवाब था। अपनी आत्ममुग्धता में उन्होंने फिर जताया कि वे अपने चेहरे, अपनी झांकियों से वोट पकने के विश्वास में हैं। साथ ही तुरूप का यह नया इक्का भी फेंका कि उनका बचपन तो मुस्लिम परिवारों के बीच बीता है! उनके घर में ईद के मौके पर खाना नहीं बनता था। उनके घर मुस्लिम पड़ोसियों के यहां से खाना आता था और ‘हम खाते थे’। मोदी मुहर्रम पर ताजिया भी करते थे। जाहिर है नरेंद्र मोदी ने इतना कुछ कहा है तो शायद पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार के मुस्लिम वोटों के पटने का ख्याल हो! या मुसलमान खिलाफ वोट करने के बजाय मतदान के दिन बेफिक्र रहें!

सचमुच मोदी के बनारस शो से बहुत कुछ जाहिर हुआ। उन्होंने तमाम चंपू चैनलों, लाइन हाजिर पत्रकारों को जुमले दिए। अपने पर फूल बरसवाए। फील गुड का भौकाल बनाया। और मेरा मानना है यह सब बुझने से पहले दीये की लौ का तेज भभके से फड़फड़ाना है। यह भी उम्मीद बांधना है कि मुसलमान आएंगे और दीये में तेल डालेंगे। पर क्या सचमुच?

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मोदी क्या इतने मासूम हैं जो आखिरी तीन राउंड में मुस्लिम वोट मिलने के ख्याल में हैं? आखिर मुसलमान के घर से खाना आने, ईद और ताजिया मनाने के डायलॉग (या झूठ) सामान्य नहीं हैं। बनारस में हिंदू-मुस्लिम एकता का चोगा पहन नरेंद्र मोदी की दे, दे अल्लाह के नाम की मैसेजिंग हर तरह से अप्रत्याशित है। ऐसा होना चुनाव की जमीनी वास्तविकता को बताने वाला है। मतलब नामुमकिन नहीं जो उत्तर प्रदेश में भी गुलगपाड़ा हो! 

ठीक विपरीत यह भी सोच सकते हैं कि मुसलमानों में फीलगुड के संदेश से नरेंद्र मोदी ने चार सौ पार के नारे को सही बनाने का जुगाड़ किया है। मतलब वे चार सौ पार सीटें आती देख रहे हैं और उसके जस्टिफिकेशन में बाद में वे यह दलील देंगे कि ऐसा होना मुसलमानों के वोट से भी हुआ। 

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इसलिए या तो घबराहट है या चार सौ पार के बंदोबस्तों का आत्मविश्वास! पर मोदी का कभी ठंडा, कभी गरम रूख घबराहट का संकेत है। सवाल है कि यदि मोदी और अमित शाह ने कहीं एकमुश्त मुस्लिम वोटों की उम्मीद पाली भी तो मोदी ईद मनाने तक ही क्यों थमे? मोदी-शाह को तब घोषणा कर देनी थी कि यदि चार सौ पार हुए तो सऊदी बादशाह से विशेष अनुमति ले कर वे हज यात्रा करेंगे।

हां, मोदी के बनारस और सऊदी राजा सलमान के काबा का सांस्कृतिक साझा बनाने की झांकी बनाना मोदी के लिए बाएं हाथ का काम है। वोट के लिए तो मोदी से सब मुमकिन है। वे अपने को इस्लाम में भी बतौर विश्वगुरू स्थापित कर सकते हैं। यदि मुसलमान वोट का भरोसे दे दे तो वे संघ की शाखाओं में आयतें पढ़वाने लगेंगे। मोहन भागवत टीवी पर आ कर कहेंगे अब से शाखाओं में कुरान की फलां-फलां अमनपरस्त आयतें पढ़ी जाएंगी! 

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वोट के लिए मोदी कुछ भी करेंगें। इसलिए लब्बोलुआब में मोदी की यूपी चिंता झलकी है। मैं मतदान के पहले चरण से मान रहा हूं कि हर राज्य में भाजपा की सीटें घटेंगी। 2019 कतई रिपीट नहीं है। कोई राज्य नहीं है, जिसमें भाजपा की सीट बढ़े। बावजूद इसके मैं उत्तर प्रदेश में भाजपा की 2019 की 64 सीटों में कम ही गिरावट मानता था।

मगर नरेंद्र मोदी पटना और वाराणसी में जिस बदहवासी में रोड शो करते दिखे। पूरे पूजा-पाठ के साथ नामांकन का जो लाइव प्रसारण हुआ तो जाहिर है नरेंद्र मोदी का अपने भक्तों पर से विश्वास डिगा है क्योंकि वे पहले जैसे वोट देने नहीं निकले हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश की कोई 40 सीटों में कुछ अकल्पनीय मुकाबला होता लगता है। लोग राम मंदिर की भावनाओं के कोर इलाके में भी मंदिर की बजाय दूसरे मसलों, उम्मीदवार के चेहरे और जातीय गणित में उलझे लग रहे हैं। 

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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