नरेंद्र मोदी-अमित शाह 2019 की जीत संख्या को फिसलता हुआ बूझ रहे हैं। तभी नरेंद्र मोदी अब यह प्रलाप करते हुए हैं कि राहुल को पीएम बनाने के लिए पाकिस्तान उतावला हो रहा है। सोचें, बीस दिनों में मोदी-शाह के भाषण का सुर कितना और कैसा बदला? इसलिए क्योंकि 2019 में भाजपा ने जो सीटें जीती थीं उनमें हर जगह इन्हें नुकसान होता दिख रहा है। मोदी-शाह ने अबकी बार चार सौ पार का नारा दिया था। लेकिन 2019जितनी सीटों का बचना लगभग असंभव है।
हां, मुझे नहीं लगता कि महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, कर्नाटक, बिहार, तेलंगाना, झारखंड में 2019 का चुनाव रिपीट हो। ऐसा इसलिए क्योंकि 2019 में इन सभी राज्यों में भाजपा की ज्यादातर सीटें ऐसी थीं, जिनको उसने वोटों के बहुत कम अंतर से जीता था। जैसे बंगाल में 18 सीटों पर भाजपा जीती। इनमें से 11 सीटें ऐसी हैं, जिन्हे भाजपा ने 0.2 प्रतिशत वोट से आठ प्रतिशत वोटों के मार्जिन से जीता था। इसमें भी छह सीटें पांच प्रतिशत मार्जिन से नीचे की हैं। बाकी छह को जरूर भाजपा की मजबूत इसलिए मानेंगे क्योंकि लाख से ऊपर मतलब भारी मार्जिन से ये जीती हुई सीटें हैं। तय मानें कि ममता बनर्जी ने जैसे 2019 के बाद दम लगा कर विधानसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन रिपीट नहीं होने दिया। वही इस बार होगा। फिर 2019 की तुलना में लेफ्ट, कांग्रेस की वोट कटवा हैसियत घटी है। अब मैं, यह संभावना नहीं मानता कि लेफ्ट और कांग्रेस का पुराना वोट ममता की जगह पूरा भाजपा को जाए। तभी भाजपा को कम से कम चार-पांच सीटों का नुकसान होगा ही।
भाजपा को सबसे बड़ा धक्का महाराष्ट्र में लगेगा। पिछले बार की 23 सीटें रिपीट नहीं होनी। इन 23 में 2019 में छह सीटों को भाजपा ने जैसे-तैसे बहुत कम अंतर से जीता था। और शिंदे की शिवेसना द्वारा 2019 की तरह वापिस18 सीटों को जीतना असंभव ही है। उद्धव-पवार-कांग्रेस का एलायंस यदि भाजपा व नकली शिवसेना की युति को 19-20 सीट जीतने दे तो वह बड़ी बात होगी।
फिर आएं ओडिशा पर। पता है 2019 में भाजपा की जीती हुई आठ सीटों में से सात सीटों पर भाजपा उम्मीदवार 0.8 प्रतिशत से 5.11 प्रतिशत वोटों के मार्जिन से जीते थे? इस दफा नवीन पटनायक और उनकी उत्तराधिकारी टीम ने पूरा दम लगाया है कि भाजपा के धर्मेंद्र प्रधान निपटें तो पुरी में संबित पात्रा की भी दाल नहीं गले। इनके आगे बीजू जनता दल ने बहुत भारी उम्मीदवार खडे किए हैं। नवीन पटनायक की टीम करो-मरो के अंदाज में चुनाव लड़ रही है। इसलिए वहां के कुछ जानकारों का मानना है कि भाजपा उम्मीदवारों के खिलाफ एंटी-इन्कम्बैंसी में भाजपा बनाम बीजू जनता दल की लड़ाई में कहीं कांग्रेस एक-दो आदिवासी सीटें नहीं जीत जाए।
अब कर्नाटक। 2019 में भाजपा और उसके समर्थकों के पास 28 में से 27 सीटें थीं। इनमें से दस सीटें ऐसी थीं, जिन्हें भाजपा ने 0.1 प्रतिशत से 9.8 प्रतिशत वोटों के अंतर से जीता था। इन सीटों पर हाल के चरण में मतदान कम होने का ट्रेंड देखने को मिला। वही रेवन्ना कांड, डीके शिवकुमार-सिद्धारमैया जैसी कमान का कांग्रेसी प्रबंधन जब है तो संभव नहीं जो भाजपा 2019 की जीत रिपीट करे। भाजपा को दस-बारह सीट का भी नुकसान हुआ तो वह सामान्य होगा।
अब बिहार और झारखंड में 2019 की जीती सीटों को बचाने की भाजपा संभावना पर गौर करें। हिसाब से बिहार में भाजपा की 2019 वाली स्थिति बरकरार रहनी चाहिए। भाजपा ने तब अच्छे मार्जिन से सीटें जीती थी। लेकिन ऐसा उसकी सहयोगी पार्टी जनता दल यू के साथ नहीं होना है। भाजपा को ज्यादा नुकसान तभी संभव है जब उसके सीटिंग सासंदों के खिलाफ एंटी इन्कम्बैंसी वोट गुल खिलाए। झारखंड भी भाजपा के लिए अपेक्षाकृत इसलिए ठीक है क्योंकि 2019 में भाजपा की जीती तीन ही सीटों में जीत का मार्जिन 0.2 प्रतिशत से 4.6 प्रतिशत के बीच का है। बाकी सभी सीटें अच्छे मार्जिन से जीती थी। मगर हेमंत सोरेन के जेल में होने से आदिवासी, मुस्लिम और ओबीसी के वोटों में सहानुभुति में वोटों का ध्रुवीकरण क्या नहीं होगा? यह कुछ धुंधला मामला है। वैसे ही जैसे दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के जेल में होने के असर पर कयास है। फिर भी बिहार और झारखंड में भाजपा और उसके सहयोगी (खासकर जदयू को आठ-दस सीटों का भी नुकसान हुआ तो) के कुल आंकड़े में इन दो राज्यों से भी भाजपा के कुल आंकड़े में माइनस है।