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मोदी के 62 दिन और ग्रह-नक्षत्र!

हिसाब लगाएं 16 मार्च को घोषित चुनाव प्रोग्राम के बाद हर चरण के साथ नरेंद्र मोदी के भाषण, जुमलों और थीम में तथा भाव-भंगिमा में कैसे-कैसे परिवर्तन आए? साथ ही 16 मार्च से लेकर 17 मई तक के 62 दिनों में हुई घटनाओं, सुर्खियों का भी हिसाब लगाएं। क्या एक भी ऐसी कोई बड़ी सुर्खी या घटना हुई, जिससे नरेंद्र मोदी की वाह बनी हो? उलटे सब कुछ उलटा हुआ है। भारतीयों को लगी कोविड वैक्सीन की अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों से घर-घर शक बना। इलेक्टोरल बांड्स का घपला सार्वजनिक हुआ। कांग्रेस का खाता फ्रीज होते-होते बकौल मोदी, अंबानी-अडानी उसके यहां टेंपों से पैसा पहुंचा रहे हैं! वही अरविंद केजरीवाल अचानक जेल से छूटे। उन्होंने छूटते ही वह कहा, जिससे अमित शाह को तुरंत बोलना पड़ा। भाजपा के भीतर और बाहर योगी आदित्यनाथ को लेकर बुने प्लान का तानाबाना फोकस में आया। हेमंत, केजरीवाल व उद्धव ठाकरे को ले कर कम-ज्यादा ही सही सहानुभूति बनी। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे फिनोमीना बने। वही अमेरिका से अजीत डोवाल एंड पार्टी पर खबरें आईं तो कनाडा में भारतीयों की गिरफ्तारी। सोचें, क्या इसका सिख वोटों पर असर नहीं हुआ होगा? 

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ऐसे ही कर्नाटक में रेवन्ना कांड तो गुजरात से लेकर उत्तर भारत के राजपूतों में नाराजगी का हल्ला। फिर अचानक दलित-आदिवासियों में संविधान और आरक्षण की चिंता पैदा। मोदी से लेकर मोहन भागवत सबको सफाई देनी पड़ी। नतीजतन दूरदराज में जहां चिंता नहीं थी वहां भी संविधान-आरक्षण की चिंता पहुंची! ऐसे ही नरेंद्र मोदी का पहले मुसलमानों के खिलाफ जहर उगलना और फिर बनारस में पलटी मार ईद और ताजिया की बातें करना। 

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समय का सबसे बड़ा आघात जो मोदी भक्त 2019 की तरह मतदान केंद्रों पर नहीं उमड़े! अपने आप नैरेटिव बदला। नतीजतन अब कट्टर मोदीभक्त भी यह विश्वास जताते हुए हैं कि कोई बात नहीं, चार सौ पार भले न हो, ढाई सौ सीट मिले तब भी शपथ तो मोदी लेंगे। या यह दलील कि राजस्थान, यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक के भाजपा किलों में भले कुछ सीटें घटें लेकिन तेलंगाना, ओडिशा, पश्चिम बंगाल में भाजपा की आंधी है। और गुजरे सप्ताह नरेंद्र मोदी ने मुसलमानों में आंधी बनाने का पासा फेंका वही भक्तगण तेलंगाना, आंध्र, ओडिशा, बंगाल से भाजपा की छप्पर फाड़ सीटों का सपना बनाए हुए हैं। 

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सो, 62 दिन मोदी के बनाम 62 दिन उद्धव, तेजस्वी, अखिलेश यादव, खड़गे, राहुल व प्रियंका, स्टालिन और ममता के। तुलना करें तो क्या लगेगा? मजे में है विपक्ष। बिना पैसे और संसाधनों के भी इनकी सभाओं में लोगों की स्वंयस्फूर्त भीड़ है। राहुल गांधी बेशुमार रेवड़ियों की टकाटक बरसात बनाए हुए हैं। जबकि एनडीए और भाजपा सब केवल और केवल नरेंद्र मोदी के चेहरे और उनकी उस आवाज के भरोसे हैं जो बाबा आदम के जमाने का घिसा-पीटा रिकॉर्ड सा है। वह रिकॉर्ड, जिसमें समय बदलने के गम में मोहम्मद रफी की आवाज में मानों यह विलाप हो कि- जला दो, जला दो फूंक डालो ये दुनिया, मेरे सामने से हटा लो ये दुनिया, तुम्हारी है तुम ही सम्भालो ये दुनिया, ये दुनिया..!

सो, मजा लीजिए। और जैसा मैंने पहले लिखा, उम्मीद रखिए, समय आ रहा है! 

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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