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महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार भी मुद्दा!

अब यह सिर्फ राहुल गांधी या विपक्ष के नेता नहीं कह रहे हैं कि महंगाई और बेरोजगारी देश की सबसे बड़ी समस्या है। सीएसडीएस और लोकनीति के सर्वेक्षण में आम लोगों ने स्वीकार किया है कि वे महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से परेशान हैं। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हुए इस सर्वेक्षण में देश के 71 फीसदी लोगों ने माना है कि जरूरी चीजों की कीमतें बढ़ी हैं और इससे परेशानी हो रही है। अगर इस आंकड़े की बारीकी में जाएं तो जो गरीब हैं उनमें से 76 फीसदी ने कहा है कि महंगाई परेशान कर रही है। मुसलमानों और अनुसूचित जातियों में ऐसा मानने वालों की संख्या भी क्रमशः 76 और 75 फीसदी है। हालांकि महंगाई से परेशान लोगों में से 56 फीसदी ने माना है कि केंद्र और राज्य दोनों इसके लिए जिम्मेदार हैं, जबकि 26 फीसदी ने केंद्र को और 12 फीसदी ने राज्य सरकार को जिम्मेदार माना है।

इस सर्वेक्षण की दूसरी खास अहम बात यह है कि देश के 62 फीसदी लोगों ने माना है कि बेरोजगारी बढ़ी है और नौकरी हासिल करना मुश्किल हुआ है। बड़े शहरों में रहने वाले 65 फीसदी लोगों ने कहा है कि नौकरी पाना पहले से मुश्किल हो गया है। जो लोग कह रहे हैं कि नौकरी हासिल करना मुश्किल हुआ है उनमें सबसे ज्यादा 67 फीसदी मुस्लिम हैं, 63 फीसदी पिछड़े व दलित और 59 फीसदी आदिवासी हैं। सिर्फ 12 फीसदी लोगों ने कहा है कि नौकरी पाना आसान हुआ है। इनमें 17 फीसदी सवर्ण हिंदू हैं। सवर्ण हिंदुओं में भी 57 फीसदी ने माना है कि नौकरी पाना मुश्किल हो गया है। नौकरी मिलने में मुश्किल के लिए 21 फीसदी ने केंद्र को और 17 फीसदी ने राज्य को जिम्मेदार माना है।

महंगाई और बेरोजगारी के बाद तीसरा मुद्दा, जिसे लोगों ने महत्वपूर्ण माना है वह भ्रष्टाचार का है। इसका आंकड़ा सबसे ज्यादा हैरान करने वाला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भ्रष्टाचार मिटाने के दावों के बावजूद 55 फीसदी लोगों ने माना है कि देश में भ्रष्टाचार बढ़ गया है, जबकि 19 फीसदी ने कहा है कि इसमें कमी आई है और 19 फीसदी ने ही माना है कि पहले जितना ही भ्रष्टाचार है। यह आंकड़ा इसलिए भी हैरान करने वाला है कि 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इसी एजेंसी द्वारा किए गए सर्वेक्षण में 40 फीसदी ने माना था कि भ्रष्टाचार बढ़ा है, जो अब बढ़ कर आंकड़ा 55 फीसदी हो गया है। उस समय 37 फीसदी लोगों ने कहा था कि भ्रष्टाचार में कमी आई है।

लेकिन अब ऐसा मानने वालों की संख्या 19 फीसदी रह गई है। अगर आर्थिक स्थिति के हिसाब से भ्रष्टाचार के बारे में लोगों की राय देखें तो लगभग हर वर्ग ने समान रूप से माना है कि भ्रष्टाचार बढ़ा है। मध्य वर्ग के 53 फीसदी ने माना है कि भ्रष्टाचार बढ़ा है तो अमीरों में 57 फीसदी, निचले तबके में 54फीसदी और गरीबों में 58 फीसदी ने कहा है कि भ्रष्टाचार बढ़ा है। इसका मतलब है कि ‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’ का नारा फिजूल साबित हुआ है। कुल मिला कर यह स्थिति है कि महंगाई बढ़ी है, रोजगार हासिल करना मुश्किल हो गया है और भ्रष्टाचार में भी बढ़ोतरी हु है।

यह तो हुई आंकड़ों या जमीनी हकीकत की बात। लेकिन सवाल है कि लोगों का मतदान व्यवहार इससे कितना प्रभावित होगा? क्या लोग इस आधार पर अपनी प्राथमिकता तय करेंगे? अगर ज्यादा संख्या में लोग महंगाई, बेरोजगारी व भ्रष्टाचार के लिए केंद्र को जिम्मेदार मान रहे हैं तो क्या वे केंद्र में सरकार चला रही भाजपा के खिलाफ वोट करेंगे? या वोटिंग के समय ये मुद्दे गौण हो जाएंगे और लोग जाति, धर्म या नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट करेंगे? इसमें संदेह नहीं है कि जाति, धर्म, राष्ट्रवाद, मजबूत नेतृत्व आदि का मुद्दा चुनाव में हावी रहता है। इस बार भी इन मुद्दों से लोगों को प्रभावित करने का प्रयास हो रहा है। लेकिन लोगों के रोजमर्रा के जीवन से जुड़े मुद्दों पर लोगों ने जैसी राय दी है वह निश्चित रूप से भाजपा के लिए चिंता की बात होगी।

मिसाल के तौर पर आज 55 फीसदी लोग मान रहे हैं कि भ्रष्टाचार बढ़ा है, जबकि पिछली बार 40 फीसदी लोग ऐसा मानते थे। उस समय 37 फीसदी लोगों ने माना था कि भ्रष्टाचार में कमी आई है। यह संयोग है कि भाजपा को 2019 के लोकसभा चुनाव में 37 फीसदी ही वोट मिले थे। तब 40 फीसदी लोगों ने माना था कि भ्रष्टाचार बढ़ा है और करीब 60 फीसदी ने भाजपा के खिलाफ वोट किया था। इस बार 55 फीसदी मान रहे हैं कि भ्रष्टाचार बढ़ा है। इसका मतलब है कि नरेंद्र मोदी ने अपनी जो खासियत बताई थी, उसकी सचाई लोगों के सामने आ गई है। उन्होंने कहा था कि वे महंगाई कम कर देंगे, रोजगार देंगे और भ्रष्टाचार में कमी लाएंगे। लेकिन इन तीनों ही मामलों में बढ़ोतरी हुई है। साथ ही ऐसा मानने वालों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई कि इन तीनों मामलों में सरकार विफल रही है।

इसका असर इस बार के चुनाव में देखने को मिल सकता है और वह इसलिए क्योंकि यह सर्वेक्षण आने के पहले से कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों के नेता इन्हीं तीन विषयों को मुद्दा बना रहे थे। महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के ऊपर ही केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर हमला हो रहा था। पिछले दिनों तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा कि मोदी को भ्रष्टाचार की यूनिवर्सिटी का कुलपति होना चाहिए तो राजद की नेता मीसा भारती ने कहा कि अगर ‘इंडिया’ की सरकार बनी तो नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचार के मामले में जेल जाएंगे। चुनावी बॉन्ड का खुलासा भ्रष्टाचार का बड़ा मुद्दा बना है। इसी तरह महंगाई और बेरोजगारी भी बड़ा मुद्दा हैं। विपक्ष लगातार पिछड़े, दलित और आदिवासी का मुद्दा बना रहा है और इस सर्वेक्षण से भी यह सामने आया है कि महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार का ज्यादा असर इन समूहों पर ही पड़ा है। सो, अगर ये मुद्दे इन समूहों के मतदान व्यवहार को प्रभावित करते हैं तो भाजपा की मुश्किल बढ़ सकती है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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