भाजपा और विपक्षी गठबंधन में फर्क यह है कि भाजपा समय रहते अपनी कमजोरियों को भांप लेती है। उसको पता है कि लगातार तीसरी बार चुनाव जीतना आसान नहीं होता है इसलिए वह 370 और चार सौ सीट का नैरेटिव बना रही है तो साथ ही नए क्षेत्रों में पैर फैलाने की कोशिश कर रही है। दूसरी ओर विपक्ष उस अंदाज में तैयारी करता नहीं दिख रहा है। Lok sabha election 2024
उसको लग रहा है कि दो बार की एंटी इनक्मबैंसी और कई राज्यों में डबल इंजन की सरकार के विरोध का फायदा उसको मिलेगा। यह बात कुछ हद तक सही है लेकिन सिर्फ इसके आधार पर विपक्ष कोई कमाल नहीं कर पाएगा। बहरहाल, विपक्ष प्रयास करके कोई नया ब्राइट स्पॉट नहीं तलाश रहा है, बल्कि परिस्थितियों की वजह से उसके लिए कुछ ब्राइट स्पॉट बन रहे हैं।
यह भी पढ़ें: मोदी की सुनामी या कांटे का मुकाबला?
विपक्ष के लिए उम्मीदों वाले छह प्रदेश हैं, जहां भाजपा पीक पर है और वे उसे नुकसान पहुंचा कर कुछ फायदा हासिल कर सकते हैं। इन छह राज्यों में बिहार, झारखंड, हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तेलंगाना शामिल है। बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं, जिनमें से भाजपा पिछली बार 17 सीटों पर लड़ी थी और सभी सीटों पर जीती थी। उसका गठबंधन 39 सीटों पर जीता था। इस बार अगर राजद, कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां ठीक से तालमेल करके लड़ती हैं तो वे भाजपा और एनडीए दोनों को नुकसान पहुंचा सकती हैं। Lok sabha election 2024
ध्यान रहे इस बार जब नीतीश कुमार भाजपा के साथ लौटे तो उनकी बहुत किरकिरी हुई। बिहार में उनके बार बार पलटने का संदेश बना और वह संदेश बनवाने में भाजपा का इकोसिस्टम ही सक्रिय रहा। इस वजह से दोनों के कार्यकर्ताओं में जमीनी स्तर पर तालमेल नहीं है। संभव है कि भाजपा समर्थक मतदाता नीतीश को अंदरखाने नुकसान पहुंचाएं। इसी तरह नीतीश कुमार और चिराग पासवान के बीच जैसी कड़वाहट है उसमें लग नहीं रहा है कि चिराग का पासवान वोट बैंक नीतीश के उम्मीदवारों को वोट करेगा।
यह भी पढ़ें: ममता, माया बुरी तरह हारेंगी!
ऐसे में तीनों पार्टियों की अंदरूनी खींचतान का फायदा विपक्ष को मिल सकता है। दूसरी बात यह है कि ज्यादा सहयोगी होने से सीट बंटवारे में दिक्कत आई है और सामाजिक समीकरण बिगड़ा है। इसका भी फायदा विपक्ष को मिल सकता है। अगर नीतीश कुमार साथ छोड़ कर नहीं गए होते तो पलड़ा विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की ओर झुका होता लेकिन उनके जाने के बाद भी विपक्ष पिछला प्रदर्शन दोहराने से रोक सकता है। Lok sabha election 2024
झारखंड में पिछली बार कांग्रेस और जेएमएम को एक एक सीट मिली थी लेकिन इस बार भाजपा ने कांग्रेस की सांसद गीता कोड़ा को अपनी पार्टी में शामिल करा लिया है। सो, उसे अपने गठबंधन की 13 सीटें बचानी हैं। पिछली बार वह दुमका, खूंटी और लोहरदगा सीटों पर बहुत कम अंतर से जीती थी। इसके अलावा राजमहल सीट हमेशा उसके लिए मुश्किल सीट होती है। सो, इस बार विपक्ष कम से कम चार सीटों पर कड़ी टक्कर देता दिख रहा है।
हरियाणा में पिछली बार दीपेंद्र हुड्डा रोहतक और भूपेंद्र हुड्डा सोनीपत में हार गए थे। लेकिन उसके बाद विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की पुनर्वापसी हुई और तब से अभी तक कांग्रेस को सकारात्मक माहौल बना हुआ है। कांग्रेस अपने दिग्गज नेताओं को लड़ाने की तैयारी कर रही है तो दूसरी ओर भाजपा ने करीब साढ़े नौ साल के बाद मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री पद से हटा कर एंटी इन्कम्बैंसी स्वीकार की है। इसका नुकसान उसे हो सकता है।
कर्नाटक में भाजपा ने पिछले चुनाव में 28 में से 25 सीटें जीती थीं और एक सीट पर उसके समर्थन से निर्दलीय सुमनलात अंबरीश जीती थीं। अब वे भी भाजपा के साथ हैं और एक सीट पर जीती जेडीएस भी भाजपा गठबंधन में हैं। यानी भाजपा को 28 में से 27 सीटें बचानी हैं, जो नामुमकिन लग रहा है। पिछले साल मई में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली भारी भरकम जीत से कांग्रेस की ताकत बढ़ी है और जमीनी स्तर पर सामाजिक समीकरण भी मजबूत हुआ है।
यह भी पढ़ें: भाजपा की नई जमीन कहां है?
डीके शिवकुमार की वजह से वोक्कालिगा, सिदधरमैया की वजह से पिछड़ी जातियां और मल्लिकार्जुन खड़गे की वजह से दलित जातियां साथ जुड़ी हैं तो मुस्लिम पूरी तरह से एकजुट हुए हैं। दूसरी ओर भाजपा में अंदरूनी विभाजन दिख रहा है। उसके केएस ईश्वरप्पा और डीवी सदानंद गौड़ा जैसे बड़े नेता नाराज हैं। भाजपा बीएस येदियुरप्पा और एचडी देवगौड़ा के जरिए लिंगायत और वोक्कालिगा का समीकरण बनाने की कोशिश कर रही है। इसके साथ ही सांप्रदायिक ध्रुवीकरण वाले मुद्दे भी तलाशे जा रहे हैं। इस सबके बावजूद कांग्रेस कर्नाटक में भाजपा को बड़ा नुकसान पहुंचाने की स्थिति में है।
महाराष्ट्र भी ऐसा ही राज्य है, जहां भाजपा को बड़ा नुकसान हो सकता है। उसने पिछली बार अकेले 23 सीटें जीती थीं, जबकि शिव सेना के साथ उसके गठबंधन को 48 में से 41 सीटें मिली थीं। शिव सेना के अलग होने के बाद से भाजपा की परेशानी बढ़ी है। उसने शिव सेना में विभाजन करा कर एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया और एनसीपी में विभाजन करा कर अजित पवार को उप मुख्यमंत्री बनाया लेकिन वह दोनों के वोट को लेकर भरोसे में नहीं है।
ऐस लग रहा है कि शिव सेना का वोट अब भी उद्धव ठाकरे के पास और एनसीपी का वोट शरद पवार के पास है। तभी वह महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के राज ठाकरे को भी गठबंधन में ला रही है। इसके बावजूद चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में कांग्रेस, उद्धव ठाकरे और शरद पवार गठबंधन को ज्यादा सीटें मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।