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कहां आत्मविश्वास और कहां घबराहट?

Lok Sabha election 2024

एक सस्पेंस इस बात का भी है कि भाजपा ने अलग अलग क्षेत्रों में या राज्यों में अलग अलग किस्म की रणनीति अपनाई। उसने कहीं बड़ी संख्या में सांसदों की टिकट काट दी तो कहीं पुराने और थके हारे सांसदों को रिपीट कर दिया और कहीं गठबंधन तोड़ दिया तो कहीं नया गठबंधन बना लिया। भाजपा का राजस्थान में हनुमान बेनिवाल की पार्टी से तालमेल टूटा तो हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की पार्टी से भी टूट गया और तमिलनाडु में अन्ना डीएमके से भी तालमेल समाप्त हो गया। Lok Sabha election 2024

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इससे इन तीनों राज्यों में सस्पेंस बना है। अन्ना डीएमके से अलग होकर लड़ रही भाजपा इस बार तमिलनाडु में खाता खुलने की उम्मीद कर रही है। उसने कई छोटी पार्टियों से तालमेल किया है। कोयंबटूर, नीलगिरी और चेन्नई दक्षिण की सीट पर भाजपा के उम्मीदवारों क्रमशः के अन्नामलाई, एल मुरुगन और तमिलिसाई सौंदर्यराजन ने मुकाबले को त्रिकोणात्मक बनाया है। इस बार पूरे देश में कहीं सबसे ज्यादा सस्पेंस अगर किसी राज्य को लेकर है तो वह तमिलनाडु है। यह सस्पेंस सीटों की संख्या को लेकर नहीं है। वहां डीएमके और कांग्रेस का गठबंधन बहुत आगे है लेकिन क्या भाजपा का खाता खुलेगा और क्या सचमुच उसका वोट प्रतिशत 20 से ऊपर जाएगा? Lok Sabha election 2024

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भाजपा के गठबंधन बनाने और उम्मीदवारों के चयन से पता चल जा रहा है कि वहां वह आत्मविश्वास में है और कहां घबराहट में है। बिहार में वह सबसे ज्यादा घबराहट में थी तो किसी तरह से नीतीश कुमार के विपक्षी गठबंधन से तोड़ कर अपने साथ मिलाया। उनको मुख्यमंत्री बनाया और 16 सीटें भी दीं। भाजपा खुद 17 सीटों पर लड़ रही है। जनता दल यू, लोक जनशक्ति पार्टी, हिंदुस्तान अवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक मोर्चा से तालमेल के बाद भी मोदी को बिहार में पसीना बहाना पड़ रहा है तो इसका मतलब है कि वहां भाजपा में घबराहट है। इसी वजह से भाजपा ने वहां लगभग सभी उम्मीदवारों को वापस टिकट दे दी।

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सिर्फ तीन उम्मीदवार बदले गए उसमें भी एक सीट पर उम्मीदवार इसलिए बदला गया क्योंकि सीट जनता दल यू के खाते में चली गई। तो प्रभावी रूप से सिर्फ दो सीटों पर भाजपा ने उम्मीदवार बदला। इसके बरक्स अगर झारखंड को देखें तो वहां वह ज्यादा भरोसे में है। वहां लोकसभा की 14 सीटें हैं, जिनमें से 13 पर भाजपा लड़ रही है और उसने सात सीटों पर नए उम्मीदवार दिए हैं। भाजपा ने छह सीटों पर अपने जीते हुए सांसदों की जगह दूसरे उम्मीदवार उतारे और सातवीं सीट पर कांग्रेस से जीती गीता कोड़ा को अपनी पार्टी में लाकर टिकट दिया।

इसी तरह दिल्ली में भाजपा इतने भरोसे में है कि सात सीटों में से अपने जीते हुए छह सांसदों की टिकट काट दी। सिर्फ एक मौजूदा सांसद मनोज तिवारी को टिकट मिली बाकी सारे उम्मीदवार नए हैं। राजस्थान में भी भाजपा बहुत भरोसे है और उसने बड़ी संख्या में उम्मीदवार बदले। पहले चरण में जिन 12 सीटों पर मतदान हुआ है उसमें 10 सीटों पर भाजपा के नए उम्मीदवार हैं। गुजरात और उत्तर प्रदेश में भी भाजपा ने बड़ी संख्या में उम्मीदवार बदले हैं। हरियाणा, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में भी भाजपा ने बड़ी संख्या में उम्मीदवार बदले। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में तो पहले ही सांसदों को विधानसभा चुनाव लड़ा कर भाजपा ने साफ कर दिया था कि वह लोकसभा में नए उम्मीदवार उतारने जा रही है।

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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