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कहां से शुरू, कहां खत्म!

याद करें, राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के समय और 19 अप्रैल को मतदान के पहले चरण तक नरेंद्र मोदी का चेहरा कितना-कैसा दमदमाता हुआ था? वह चेहरा जो अफसरों की बैठकों में अबकी बार चार सौ पार के ख्यालों में निर्देश दे रहा था, शपथ के बाद काम का एजेंडा बनाओ। पहले चरण में मतदान की चुरू सीट की जनसभा में मोदी ने कहा था- चुरू के लोगों ने बता दिया है अबकी बार चार सौ पार। लेकिन ज्योंहि पहले चरण का मतदान हुआ और उसकी फीडबैक मिली नहीं कि मोदी की भाव-भंगिमा बदली। वे अगले चरण की बांसवाड़ा सीट में फट पड़े और कहा- इंडी गठबंधन वाले महिलाओं का मंगलसूत्र छीन मुसलमानों को दे देंगे। 

और इस 30 मई के आखिरी दिन पंजाब में नरेंद्र मोदी का चेहरा? राहुल गांधी की सात पुश्तों का हिसाब बराबर करने की चेतावनी देते हुए। प्रचार के आखिर दिन कैबिनेट के चेहरे वाराणसी के ताज होटल में हाजिरी लगाते हुए थे। मतलब बनारस में भी अकल्पनीय ताकत लगानी पड़ी।  जेपी नड्डा, अमित शाह, पीयूष गोयल, योगी आदित्यनाथ, अरूण गोविल आदि चेहरों से वहां कनवेसिंग। सोचें, यदि बनारस में इतनी मेहनत तो उसके अगल-बगल की घोसी, गाजीपुर, आजमगढ़, चंदौली, मिर्जापुर, बलिया, सलेमपुर में भाजपा उम्मीदवारों को कितना पसीना बहाना पड़ा होगा?

19 अप्रैल के पहले चरण के मतदान तक नरेंद्र मोदी अबकी बार चार सौ पार के ख्यालों में दमकते हुए थे। तब तक नरेंद्र मोदी ने बाकी किसी स्टार कैंपेनर की उपयोगिता नहीं मानी हुई थी। न योगी आदित्यनाथ की और न अमित शाह या जेपी नड्डा व राजनाथ सिंह आदि किसी की। स्टार कैंपेनर की लिस्ट के ये तमाम चेहरे वैसे ही नाम के लिए थे जैसे भाजपा और आरएसएस नाम के संगठन। नरेंद्र मोदी की वह मुहिम शायद ही किसी को याद हो जब उन्होंने भारत सरकार की मशीनरी से, अपनी झांकी का अखिल भारतीय कैंपेन चलाया। इस प्रचार में केंद्र के तमाम सचिवों की ड्यूटी लगी थी। 

उसी के बाद मेरा मानना था कि मोदी की गारंटी के महाअभियान और राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत को घंटी बजाने का रोल दे कर नरेंद्र मोदी का पूरे संघ परिवार को यह औकात बताना था कि तुम लोगों की जरूरत नहीं है। तुम मेरे टुकड़ों पर पल रहे हो। मेरी गारंटी से तुम लोगों की भी हैसियत है और मुझे ईश्वर ने खुद भेजा है सो, बस मेरी तुताड़ी बजाओ बाकी मैं अपने आप चार सौ पार सीटें पा लूंगा। पूरा देश मेरा भक्त है।  

इसलिए जब 19 अप्रैल की वोटिंग मनमाफिक नहीं हुई तो नरेंद्र मोदी को रणनीति बदलनी पड़ी। मगर कुछ विशेष तो कर नहीं सकते थे क्योंकि जो व्यक्ति अपने को भगवान, देवदूत मान बैठा है वह आखिर अपने त्रिनेत्र से ही सब करेगा। इसलिए प्रायोजित भीड़ होते हुए भी जमकर 200 रैलियां की। पत्रकारों को बुला-बुला कर अस्सी इंटरव्यू दिए। मोदी का सबसे बड़ा बह्मास्त्र था कि अपना भय लोगों को ट्रांसफर करना। मैं भगवान हूं और मुझे वोट नहीं दिया तो तुम लोग अनाथ हो जाओगे। ये विरोधी तुम्हारी भैंस तक छीन लेंगे, नल की टूंटियां चुरा लेंगे। 

इसलिए 2024 का चुनाव भारत के इतिहास का यादगार चुनाव है। प्रधानमंत्री ने अपने को ईश्वर का भेजा अजैविक देवदूत घोषित किया है। कन्याकुमारी जा कर स्वामी विवेकानंद की भाव-भंगिमा में अपना विवेकानंद से भी बड़ा आध्यात्मिक फोटो शूट कराया है। वहीं भगवानजी की यह अमृतवाणी भी थी कि, मुझे स्वीकार नहीं करने वाले पापियों तुम्हारी सात पुश्तों का चिट्ठा खोल दूगा। जेल की रोटियां चबवा दूंगा। 

कौन कहता है नरेंद्र मोदी विश्व गुरू नहीं हैं? कौन कहता है संघ ने भारत को भगवान नहीं दिया?

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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