पर शायद इजराइल थकने के लिए नहीं है। यहूदियों की यह नंबर एक खूबी है जो सदियों दरबदर रहे तथा विपरित परिस्थितियों में भी इनकी जिजीविषा खत्म नहीं हुई। दिमाग थका नहीं, दिल टूटा नहीं और 1948 में उन्हें अपना देश मिला तो हर यहूदी उसके लिए अपना दिल-दिमाग खपाते हुए है। निश्चित ही प्रधानमंत्री नेतन्याहू पुराने प्रधानमंत्रियों, नेताओं से अलग हैं। वे सत्ता के भूखे और भ्रष्ट हैं। उन्होंने यहूदियों को विभाजित किया। नेतन्याहू की रीति-नीति आ बैल मुझे मार की भी रही है। इसलिए असंख्य यहूदी उन्हें खलनायक मानते हैं लेकिन हर यहूदी यह भी जानता है कि उन्हें मिट्टी में मिलाने का संकल्प लिए दुश्मन कौन है? वे बुलंदी के साथ वीर भोग्या वसुंधरा में विश्वास रखते हैं।
जाहिर है इजराइल मिशन पूरा होने तक थकेगा नहीं। पश्चिम एशिया में लड़ाई बढ़ेगी। इजराइल की सेना गाजा, वेस्ट बैंक, लेबनान और सीरिया में मौजूद, छुपे और तालमेल का नेटवर्क बनाए इस्लामी लड़ाकों को खत्म करके दम लेगी। ऐसा होना ईरान की नाक कटना है। इसलिए ईरान लड़ाई के मोड में है। मंगलवार को 180 ईरानी मिसाइलों का इजराइल पर हमला मामूली नहीं था। इजराइल ने सभी को मार गिराने का दावा किया लेकिन एक साथ तेज रफ्तार की इतनी बैलेस्टिक मिसाइलों में कुछ तो सफल हुई होंगी। उसका प्रतिरोधक इंटरसेप्टर आइरन डोम सिस्टम सौ प्रतिशत कामयाब नहीं था।
तभी सबक सिखाने के लिए इजराइल मिसाइल से जवाब देगा। यदि इजराइल ने ईरान के एटमी ठिकानों पर हमला किया तो ईरान मरता क्या न करता से जवाब देने को मजबूर होगा। दरअसल प्रधानमंत्री नेतन्याहू और उनके हार्डकोर सलाहकारों का हमास, हिजबुल्लाह की लीडरशीप को मारने की सफलताओं से हौसला बुलंद है। जिससे खतरा था उस ईरान के हमले कुल मिलाकर कागजी साबित हैं तो इजराइली चाहेंगे कि लेबनान में सेना भीतर आखिर तक घुसे और हिजबुल्लाह को पूरी तरह खत्म करे। अब तक की घटनाओं से जाहिर है कि हिजबुल्लाह भी कागजी शेर है। पहले बताया जाता था कि उसके जखीरे में एक लाख बीस हजार मिसाइलें हैं। इजराइल से सटी लेबनानी सीमा पर खंदकों-सुरंगों का ऐसा जाल बना रखा है कि इजराइली सेना भेद नहीं सकेगी। लेकिन इजराइल लेबनान में कोई दस हजार सैनिकों की डिवीजन घुसा रहा है। उसके सिर्फ आठ सैनिकों की मौत की खबर है। लग रहा है कि इजराइली सेना लेबनान के दूसरे छोर तक जा कर हिजबुल्लाह को मिट्टी में मिला कर ही दम लेगी।
इसलिए ईरान कब तक गीदड़भभकी देता रहेगा? आमने-सामने की लड़ाई से भागा रहेगा? फिलहाल ईरान गिड़गिड़ाने की कूटनीति कर रहा है। मतलब और वह लड़ाई नहीं चाहता वाली कूटनीति। उसे एटमी ठिकाने बचाने हैं। लेकिन नेतन्याहू क्यों मौका चूकेंगे? इसलिए यह सिनेरियो असंभव नहीं है कि अपने इस्लामी पॉवर के हिजबुल्लाह, हमास, हूती, सीरियाई शिया लड़ाकों को ईरान पूरी तरह खत्म होने दे। वह इजराइल को जवाब देने से भागा रहे। इसलिए इजराइल 2025 में भी वह ताकत दिखलाने की तैयारी में है जैसे 2024 में है।