दिवाली नजदीक है और सोशल मीडिया में मजाक है। पूछा जा रहा है कि चीनी की झालरों का विरोध करना है या नहीं? इस मजाक के पीछे की कहानी यह है कि कुछ समय पहले जब नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय क्षितिज पर आने के बाद राष्ट्रवाद का उफान चरम पर था, तब चीनी सामानों के विरोध का अभियान चला था। उसमें दिवाली के समय छोटी छोटी बत्तियों की लड़ियां यानी झालर, होली के समय पिचकारियां और मकर संक्रांति के समय पतंग और मांझे का विरोध सबसे ज्यादा होता था। ये सारी चीजें अब भी चीन से आती हैं। धीरे धीरे जब यह पता चला कि चीन के सहारे ही तो भारत का अपना घरेलू और विदेश दोनों कारोबार चल रहा है तो राष्ट्रवादी लोग चुप हो गए। तभी दिवाली से पहले उनको चिढ़ाने के लिए पूछा जाता है कि झालरों का विरोध करना है या नहीं।
लेकिन इस मजाक को छोड़ें तो यह सिर्फ झालर, अगरबत्ती, पिचकारियां, पतंग और मांझे की बात नहीं है, बल्कि भारत का दवा उद्योग, कृषि सेक्टर, ऑटोमोबाइल सेक्टर, मोबाइल और पूरा आईटी सेक्टर चीन के उत्पादों के सहारे चल रहा है। प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार के दूसरे मंत्री बड़े गर्व से कहते हैं कि मोबाइल फोन के उत्पादन में भारत दूसरे स्थान पर है।
लेकिन वह असल में उत्पादन नहीं है, बल्कि असेंबलिंग होती है, जिसके ज्यादा पार्ट चीन, ताइवान आदि देशों से बन कर आते हैं। इसी तरह इस बात का ढोल पीटा जाता है कि भारत ने कितने हजार करोड़ रुपए का आईफोन निर्यात किया। लेकिन उसमें भारत का क्या होता है? आईफोन बनाने वाली कंपनी अमेरिका की है और ज्यादातर पार्ट दूसरी जगहों से बन कर आते हैं, जिनको भारत में असेंबल करके भेज दिया जाता है। इसमें भारत को तो सिर्फ मजदूरी का ही पैसा मिलता है!
असल में भारत जितना भी निर्यात कर रहा है उसके उत्पादन में भारत का अपना कच्चा माल बहुत कम होता है, सिर्फ मजदूरी होती है। यह जान कर और हैरानी होगी कि भारत जिन चीजों का निर्यात करता है उन्हें चीन से सामान लाकर तैयार किया जाता है। यानी चीनी सामान से उत्पाद तैयार होते हैं और उन पर भारत में बने होने की मुहर लगा कर विदेश भेजा जाता है। पिछले साल यानी 2023 में भारत के निर्यात में चीन से लाए गए पुर्जे या वहां से आयात किए गए कच्चे माल का हिस्सा 68 फीसदी था। इसका मतलब है कि भारत की ओर से निर्यात किए गए जाने वाले उत्पाद में चीन का हिस्सा 68 फीसदी है।
इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि अगर भारत एक सौ रुपए का सामान निर्यात करता है तो उसमें 68 रुपए का सामान चीन का होता है। इसका यह भी अर्थ है कि भारत का निर्यात बढ़ता है, जिसका हर बार सरकार की ओर से ढिंढोरा पीटा जाता है तो उसमें भी चीन की कमाई ही बढ़ती है। भारत द्वारा निर्यात किए जाने वाले सामानों में चीन के कच्चे माल या वहां बने पुर्जों की अब भागीदारी 68 फीसदी है वह 2015 में 59 फीसदी थी। यानी जिस समय देशभक्त लोग चीनी झालरों, पिचकारियों और पतंगों का बहिष्कार कर रहे थे और चीन के साथ तनाव चरम पर था उस समय चीन के साथ भारत का कारोबार खूब फलफूल रहा था। यह भी कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत बनाने और मेक इंडिया के नारे को साकार करने के लिए चीन का ही अकेला सहारा बना हुआ रहा था और है।
चीन के साथ कारोबार को लेकर एक और आंकड़ा बहुत दिलचस्प है। भारत में कैपिटल गुड्स यानी उद्योग धंधों में लगने वाली मशीनरी का कारोबार चीन से सबसे ज्यादा बढ़ा है। इस तरह की मशीनरी का इस्तेमाल कृषि कार्यों में या दवा उद्योग में या अन्य उद्योगों में किया जाता है। दुनिया के किसी भी दूसरे बड़े देश के मुकाबले भारत सबसे ज्यादा कैपिटल गुड्स चीन से खरीद रहा है। एलारा सिक्योरिटीज की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 से 2023 के बीच चीन से कैपिटल गुड्स का आयात सालाना 19.23 फीसदी की दर से बढ़ा है। अगर इसके मुकाबले दुनिया के दूसरे देशों में चीन के कैपिटल गुड्स के कारोबार को देखें तो वह 8.4 फीसदी की दर से बढ़ा है। यानी दुनिया के दूसरे देशों में चीन के कैपिटल गुड्स यानी औद्योगिक मशीनरी की बिक्री जिस दर से बढ़ी है, भारत में उसके दोगुने से ज्यादा रफ्तार से बढ़ी है। इसका मतलब है कि भारत के हर सेक्टर में औद्योगिक मशीनरी की जरुरतों के लिए भी भारत लगभग पूरी तरह से चीन पर निर्भर होता जा रहा है।
स्थिति यह है कि भारत पूरी दुनिया से जितना आयात करता है उसका 15 फीसदी अकेले चीन से करता है। यानी भारत का आयात बिल अगर एक सौ रुपया है तो उसमें से 15 रुपया चीन को जाता है। छोटी छोटी घरेलू इस्तेमाल की वस्तुओं के साथ साथ बड़ी मशीनरी और बड़े उद्योगों के लिए जरूरी कच्चे माल के लिए भी भारत चीन पर निर्भर है। कुछ मामलों में तो अंग्रेजी राज के लूट जैसी कहानी दिखाई देती है। यानी भारत से कच्चा माल चीन जाता है और वहां से तैयार माल भारत आकर बिकता है। चीन के स्टील का जितना कारोबार भारत में बढ़ रहा है वह मिसाल है। चीन से भारत जितना आयात करता है उसके मुकाबले बहुत कम निर्यात करता है। यही कारण है कि व्यापार घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। सन् 2020 में आत्मनिर्भर भारत का अभियान शुरू हुआ था उसके बाद से चीन के साथ व्यापार घाटा साढ़े पांच फीसदी से ज्यादा बढ़ गया है।