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विपक्ष के पास भी कहानी नहीं

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संदेह नहीं है कि नई सदी के पहले दशक में जिस भारत गाथा की चर्चा शुरू हुई थी और भारत को लेकर दुनिया में जो कौतुक बना था वह कहानी पटरी से उतर गई है। दस साल पहले प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर चुनाव लड़ रहे नरेंद्र मोदी ने देश के लोगों को जो कहानी सुनाई थी वह दुखांत की ओर बढ़ गई या दुखांत तक पहुंच गई है। इसमें भी संदेह नहीं है कि विपक्ष की ओर से पीएम पद के दावेदार के तौर पर उन्होंने सचमुच नई कहानी सुनाई थी और देश के लोगों को चमत्कृत किया था। विदेश में जमा काला धन ले आएंगे, इतना काला धन ले आएंगे कि सबके खाते में 15-15 लाख रुपए आ जाएं, अच्छे दिन आएंगे, डॉलर सस्ता होगा, पेट्रोल और डीजल के दाम घटेंगे, महंगाई खत्म होगी, महिलाओं का सम्मान बहाल होगा, भारत विश्वगुरू बनेगा आदि आदि।

उनकी वह कहानी अब खत्म है लेकिन क्या अब जो विपक्ष है उसके पास कोई अपनी नई कहानी है, जिससे वह देश के लोगों को चमत्कृत कर सके या देश का कायाकल्प करने का दावा कर सके?

हकीकत यह है कि विपक्ष के पास भी घिसीपीट और लकीर के फकीर वाली कुछ बातें हैं। उनके पास नया कुछ नहीं है। राहुल गांधी ने अमेरिका में जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी में या नेशनल प्रेस क्लब में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान क्या कहा? उन्होंने कहा कि देश में बहुत असमानता व भेदभाव है, जिसे दूर करने के लिए जाति जनगणना कराने और आरक्षण बढ़ाने की जरुरत है। इसके बाद कहा कि देश में सिखों में डर है कि वे कड़ा पहनें और पगड़ी बांधे या नहीं।

इसमें क्या नई बात है? जैसे मोदी और भाजपा ने मुसलमानों का भय दिखाया वैसे ही राहुल सिखों को हिंदुओं का भय दिखा रहे हैं। इसी तरह से संविधान और संवैधानिक संस्थाओं के सामने चुनौती की बात कही। राहुल गांधी ही नहीं विपक्ष के किसी नेता की बात सुनिए उसके पास कहने को जातिगत जनगणना, आरक्षण और संविधान की रक्षा के सिवा क्या है? कुछ राज्यों में विपक्ष के नेताओं के पास अपने स्थानीय मुद्दे हैं, जैसे महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के पास शिवाजी महाराज की मूर्ति गिरने का या उद्योग धंधे गुजरात जाने का भावनात्मक मुद्दा है तो एमके स्टालिन के पास सनातन विरोध और आर्थिक भेदभाव का मुद्दा है। मगर किसी के पास कोई ग्रैंड नैरेटिव नहीं है। कोई बड़ी कहानी नहीं है।

इसलिए जैसे देश में नरेंद्र मोदी की सरकार समय काटते हुए है उसी तरह से विपक्ष भी समय काटते हुए है। लोकसभा चुनाव में भाजपा के कमजोर होने से विपक्ष को लगने लगा है कि अब कुछ करने की जरुरत नहीं है, सरकार खुद ही जा रही है। पहले भी विपक्ष कुछ कर नहीं रहा था लेकिन अब तो बिल्कुल ही कुछ करना बंद कर दिया है। ध्यान रहे 2014 से पहले देश की दशा को देख कर नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने दिल्ली कूच का इरादा किया था और जबरदस्त तैयारी के साथ मैदान में उतरे थे। नए नैरेटिव गढ़े गए थे और प्रचार के बिल्कुल नए तौर तरीके अपनाए गए थे। उन्होंने मौका लपका था लेकिन अभी विपक्ष पेड़ के नीचे मुंह खोल कर लेटा हुआ है कि ऊपर से फल टपकेगा तो सीधे मुंह में आ जाएगा। विपक्ष मौका नहीं लपक रहा है। अपनी कहानी नहीं बना रहा है। वह इस इंतजार में है कि नरेंद्र मोदी की बनाई कहानी पटरी से उतर गई है तो अपने आप विपक्ष को मौका मिलेगा।

विपक्ष की ओर से बड़ी बड़ी वैचारिक बातें कही जा रही हैं। संघ की विचारधारा से लड़ना है तो सामाजिक भेदभाव दूर करना है, समानता लानी है, संविधान बचाना है आदि लेकिन जमीन पर आम जनता जिन मुद्दों से जूझ रही है उससे विपक्ष का सरोकार नहीं दिख रहा है। महंगाई के मसले पर कही भी विपक्ष आंदोलन करता हुआ नहीं दिखा है। कच्चे तेल का दाम तीन साल में सबसे निचले स्तर पर है लेकिन भारत में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत रिकॉर्ड ऊंचाई पर है। इसके खिलाफ विपक्ष का आंदोलन नहीं है। इसके उलट जहां भाजपा विपक्ष में है वहां उसने सरकारों का जीना मुश्किल किया है। ममता बनर्जी जिस तरह से मुख्य विपक्षी भाजपा के आगे असहाय दिख रही हैं क्या वैसा कहीं भी कांग्रेस या दूसरी विपक्षी पार्टियों ने भाजपा की सरकार को असहाय बनाया है? किस राज्य में बलात्कार और हत्याएं नहीं हो रही हैं या कानून व्यवस्था की स्थिति नहीं बिगड़ी है लेकिन विपक्ष उसे मुद्दा नहीं बना पा रहा है।

ऊपर से विपक्ष के अपने विरोधाभास खत्म नहीं हो रहे हैं। नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और दिल्ली का रास्ता बना रहे थे उस समय उनकी राजनीति में कोई विरोधाभास नहीं था। उन्होंने जीएसटी से लेकर आधार तक केंद्र की हर योजना का विरोध किया था। आज विपक्ष केंद्र की किस योजना का विरोध कर रहा है? राहुल गांधी वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी की ऊंची और कई दरों को लेकर खूब आलोचना करते हैं लेकिन जब जीएसटी कौंसिल की बैठक में कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री बैठते हैं और जीएसटी की दर में कमी करने, उसे तर्कसंगत बनाने का एजेंडा आता है तो कांग्रेस और दूसरे विपक्षी मुख्यमंत्री इससे सहमत नहीं होते हैं।

सोचें, यह कैसे होगा कि राहुल जीएसटी की ऊंची दर का विरोध करें और उनके मुख्यमंत्री उसका समर्थन करें! इससे क्या जनता के बीच कोई कहानी बन पाएगी? अभी एससी और एसटी आरक्षण में वर्गीकरण के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर दिखा कि कांग्रेस ने इसका विरोध किया लेकिन कांग्रेस के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने ऐलान किया कि वे इस कानून को लागू करने वाले पहले मुख्यमंत्री होंगे। एक तरफ राहुल गांधी से लेकर सारे विपक्षी नेता केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग और विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी का विरोध कर रहे हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कह रहे हैं कि विपक्ष को 20 सीटें और मिल गई होतीं तो सारे भाजपाई जेल में होते। सोचें, एक तरफ आप मोदी पर तानाशाही के आरोप लगा रहे हैं और दूसरी ओर वैसा ही काम करने की बात कर रहे हैं!

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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