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पहले बड़े अब लोकल!

एक समय था, जब राम रहीम के ऊपर फिल्में बनती थीं और फिल्म रिलीज होने के समय दिल्ली, गुरुग्राम के इलाके में सड़कें जाम हो जाती थीं। गुरमीत राम रहीम भी अपने को भगवान का मैसेंजर बताते थे। वे भी यौन शोषण और हत्या के मामले में जेल में बंद हैं। उनको सजा सुनाए जाने और उनकी गिरफ्तारी के समय जिस स्तर की हिंसा हुई थी वह अभूतपूर्व थी। मगर एक खास इलाके के भक्तों की वजह से उनका राजनीतिक महत्व अभी भी बचा हुआ है। ऐसे ही एक बाबा रामपाल थे, जिनका जलवा उस समय दिखा था, जब पुलिस उनको गिरफ्तार करने गई थी। दक्षिण भारत में जहां के लोग अपेक्षाकृत ज्यादा समझदार माने जाते हैं वहां भी नित्यानंद स्वामी का जलवा था। बाद में बाबा को देश छोड़ कर भागना पड़ा। 

इन सब बाबाओं को डाउनफॉल का नतीजा यह निकला कि अखिल भारतीय स्तर पर बाबाओं का उदय थम गया। क्षेत्र विशेष में बाबा लोग पैदा होने लगे और चमत्कार दिखा कर भक्त बनाने लगे। हाल के दिनों में एक परिघटना के तौर पर जिस बाबा का उदय हुआ है वह धीरेंद्र शास्त्री हैं। हालांकि बागेश्वर धाम के आचार्य धीरेंद्र शास्त्री का जलवा भी धीरे धीरे कम होता हुआ है। चुनाव से पहले उनकी जितनी चर्चा थी और जितनी मांग थी अब उसमें कमी आ गई है। 

दरअसल अब अखिल भारतीय बाबाओं की जगह अखिल भारतीय कथावाचक उभरे हैं। कथावाचकों की परंपरा पहले भी रही है लेकिन तब उनकी संख्या कम थी। वे राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान की कथाएं सुनाते थे तो कृष्ण, अर्जुन और दुर्योधन की कथा भी सुनाते थे। लेकिन उनकी कथा वैसी ही होती थी, जैसी रामचरित मानस या महाभारत में लिखी हुई है। अब कथावाचकों की ऐसी फौज उभरी है, जो धर्मग्रंथों की अजीबोगरीब व्याख्या कर रहे हैं। अपनी कल्पना से कहानियों को नया मोड़ दे रहे हैं। वे राम और लक्ष्मण या कृष्ण और अर्जुन के संवाद ऐसे बता रहे हैं, जैसे संवाद के समय वे स्वंय वहां मौजूद रहे हों। उनकी सारी झूठी सच्ची कहानियां लोगों को आकर्षित कर रही हैं। पहले ऐसे कथावाचकों ने सोशल मीडिया पर अपनी लोकप्रियता बनाई था। फिर मंच सजा कर कार्यक्रम करना शुरू किया। 

यह कारोबार भी अपार लोकप्रियता और धन कमाने का जरिया हो गया है। रमेश भाई ओझा से लेकर मुरारी बाबू और राजन जी महाराज से लेकर कुमार विश्वास की एक ऐसी लंबी शृंखला तैयार हुई जिसमें रामकथा के नाम परया तो भजन गा रहे हैं या कथावाचन कर रहे हैं। सब की अपनी-अपनी शैली और लटके-झटके है। मार्केटिंग-ब्रांडिग है।इनका क्लायंटेल उच्च मध्य, उच्च घनाढ्य वर्ग का है।शहरों के नगर सेठों के मोटे पैसे, चंदे, तामझामों केबदले ये कथावाचक उन्हे अपने सान्निध्य से गौरवान्वित करते है। नवधनाढ्य भक्तों को कथित पुण्य प्राप्ति होती है। यह उनकी समाज व धर्म सेवा होती है। भीड़ इनकी बातों से आत्मिक शांति और पुण्य प्राप्ति के अहोभाग्य में वाह,वाह याकि मार्केटिंग करतीहै। यह समाज के पढ़े-लिखे, कथित बड़े लोगों का बड़ा अंध धर्म-कर्म है तो जाहिर है इनकी तरह अपनी कमजोर आर्थिक हैसियत मेंगरीब या विपन्न वर्ग के लोग भोले बाबा जैसे चमत्कारिक बाबाओं की शरण में दुखों से छुटकारा पाने, पुण्य पाने की सेवादारी करें, चरण रज के लिए मरे, तो कुल मिलाकर यह जुमला तो सटीक ही है कि पृथ्वी के सारे दुखिया भारत में भरे हुए!

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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