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बाबाओं का उदय और अस्त

नई सदी के पहले 25 साल में जब दुनिया अंतरिक्ष में बस्ती बसाने के प्रयास में लगी है, पशुओं के शरीर में अलग अलग अंग विकसित कर रही, ताकि उसे इंसानों के शरीर में इस्तेमाल किया जा सके, जीन बदल कर सुपर ह्यूमन बनाने की कोशिश है, और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के जरिए इंसानों को रिप्लेस करने का काम हो रहा है तो ऐसे वक्त भारत में सैकड़ों, हजारों की संख्या में उन बाबाओं का उदय और अस्त हुआ है, जो अपने आसन पर बैठे बैठे पूरा ब्राह्मंड देख लेते हैं और चुटकियों में इंसानों की समस्याओं का समाधान कर देते हैं।

इन्हें बीमार लोगों का इलाज करने के लिए किसी दवा की जरुरत नहीं है और न बीमारी का पता लगाने के लिए किसी तकनीकी उपकरण की जरुरत है। वे अंतर्यामी होते हैं और उनके पास ऐसी अद्भुत शक्तियां हैं कि वे भक्तों के सारे कष्ट दूर कर सकते हैं। ऐसे अनेक बाबा हर साल भक्तों के शोषण के आरोप में या किसी अन्य अपराध के आरोप में पकड़े जाते हैं लेकिन भक्तों की श्रद्धा में कमी नहीं आती है। वे जेल में बंद बाबाओं के भी भक्त बने रहते हैं या कोई नया बाबा  खोज लेते हैं। 

समय के साथ बाबाओं के स्टॉक सूचकांक में उतार चढ़ाव जैसा होता है। जैसे एक समय निर्मल बाबा का जलवा था। लोग हजारों रुपए की टिकट लेकर उनके कार्यक्रम में शामिल होते थे। अपनी समस्या लेकर पहुंचे भक्तों को वे बताते थे कि उनकी कृपा कहां रूकी है। समोसे के साथ लाल चटनी खाने वाले को उन्होंने कहा कि हरी चटनी खाए तो कृपा आने लगेगी, सफेद रूमाल रखने वाले को कहा कि लाल रूमाल रखे तो कृपा आएगी, बाईं जेब में रूमाल रखने वालों को कहा कि दाहिनी जेब में रखे तो कृपा आएगी। बाबा के ऊपर कुछ फ्रॉड के आरोप लगे तो उसके बाद से उनका बाजार काफी डाउन हो गया है। निर्मल बाबा के लगभग साथ ही राधे मां धूमकेतु की तरह उभरीं थीं। वे नाच गाकर भक्तों के कष्ट दूर करती थीं। आरोपों में घिरने के बाद उनका भी बाजार खराब हो गया। 

आसाराम बापू का डाउनफॉल सबसे बड़ी घटना थी लेकिन उसके बाद ही छोटे छोटे दर्जनों बाबाओं के लिए रास्ते खुले। आसाराम के देश भर में करोड़ों भक्त थे। वे भी नाचते गाते थे। रास रचाते थे। फूलों की बारिश करते थे। फिलहाल आसाराम बापू और उनके बेटे नारायण साई भक्तों के यौन शोषण और हत्या के मामले में जेल में बंद हैं। वे अपने लिए कोई चमत्कार नहीं कर पाए। उनके भक्तों की संख्या अब काफी कम रह गई है। अब उनके पास वही कट्टर भक्त बचे हैं, जो मानते हैं कि यह सब उनकी अपनी लीला है और किसी बड़े उद्देश्य के लिए वे जेल में बंद हैं। 

तर्क यह है कि आखिर भारत में अनके भगवानों ने धरती पर परीक्षा दी है और कष्ट झेले हैं।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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