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हरियाणा ने सोखी दिलचस्पी!

INDIA allianceImage Source: ANI

INDIA alliance: भूपिंदर सिंह हुड्डा, राहुल गांधी, सैलजा आदि को पता नहीं होगा कि उनके कारण देश की राजनीति में कैसा सूखा बना है। हरियाणा से पूरे देश में सियासी दिलचस्पी खत्म है। नरेंद्र मोदी फिर अजेय बने हैं।

तभी झारखंड, महाराष्ट्र में क्या होगा, इसे ले कर कौतुक लगभग नहीं है। ‘इंडिया’ गठबंधन के विकल्प की संभावना पैंदे पर है। ऐसे ही राहुल गांधी की इमेज का मामला है। लोगों में हताशा, निराशा ही नहीं, बल्कि नियति की सोच में मोहभंग है।

हरियाणा में कांग्रेस ने, विपक्षी नेताओं-पार्टियों, भाजपा विरोधी वोटों, जाट-दलित, मुसलमान और विरोधी सोशल मीडिया सभी ने अपने हाथों अपनी वह दुर्गति बनाई है, जिससे इनके पास भी कहने-करने को कुछ नहीं बचा है।

सबको टाइम पास करना है। सवाल है महाराष्ट्र, झारखंड के चुनाव नतीजों से क्या पासा पलट सकता है? मुश्किल है क्योंकि दोनों राज्यों में लोकसभा चुनाव जैसी हवा, माहौल, उत्साह और आर-पार का मुकाबला नहीं दिख रहा है!

विपक्ष को सबसे बड़ा नुकसान यह है कि राहुल गांधी ने भारत जोड़ा यात्रा से, लोकसभा चुनाव में जितनी पूंजी कमाई थी, कांग्रेस जितना जिंदा हुई थी, विपक्ष और ‘इंडिया’ एलायंस की जो बुनियाद बनी थी, उस सबको हरियाणा की एक हार ने खा लिया है।

तय मानें यदि झारखंड व महाराष्ट्र में भाजपा ने जैसे-तैसे सरकार बना ली या गतिरोध बना दिया तो देश इस मनोविज्ञान में होगा कि नरेंद्र मोदी 2029 में भी प्रधानमंत्री बनेंगे। (INDIA alliance) 

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इस सिनेरियो के लिए राहुल गांधी-सोनिया गांधी वैसे ही जिम्मेवार हैं, जैसे 2004 में थे, 2014 में थे और 2024 में है। यह समय, भाग्य जैसी ही कोई अनहोनी है कि नरेंद्र मोदी लगातार सोनिया, राहुल, सेकुलर जमात से ही संजीवनी पाते हैं।

गुजरात दंगों के बाद, 2004 में मनमोहन सरकार बनने के बाद अहमद पटेल और मुस्लिम-सेकुलर जमात ने वह सब किया था, जिससे नरेंद्र मोदी की गुजरात में हिंदू राजनीति खिली।

2014 से पहले भी कांग्रेस-सेकुलरों की मोदी की हवा बनाने वाली राजनीति थी। 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी का जादू कुछ पंक्चर हुआ तो हरियाणा ने उनमें फिर ऐसी हवा भरी कि वे वापिस पुराने अंदाज में लौट गए हैं।

उनके आगे राहुल गांधी क्योंकि नंबर एक ईमानदार लड़ाके, मेहनती और जिद्दी हैं तो राहुल गांधी पर ठीकरा फूटना स्वाभाविक है। वे ही विपक्ष, सेकुलरों के लिए उम्मीद, हताशा, निराशा के केंद्र हैं।

विपक्ष, सोनिया-प्रियंका और कांग्रेस सभी का पूरा पहाड़ उनकी ऊंगली पर टिका है। जैसे एक तरफ मोदी की ऊंगली पर गोवर्धन पर्वत वैसे ही राहुल गांधी पर विपक्ष की राजनीति का दारोमदार। (INDIA alliance)

हरियाणा में हार का ठीकरा

इसलिए हरियाणा में हार का ठीकरा हुड्डा, दलित नेता सैलजा, चंद्रशेखर, केजरीवाल, वेणुगोपाल (जिनके छोटे-छोटे कारणों से विपक्ष हारा) पर फूटना चाहिए था लेकिन राहुल गांधी पर फूटा है।

निश्चित ही राहुल गांधी बनाम मोदी-शाह में कोई मैच नहीं है। मोदी 24 घंटे में से बीस घंटे काम करते हैं। दिन रात, पूरे महीने, पूरे साल राजनीति करते हैं। पैसे खर्च करते हैं। भाषण-जुमले गढ़ते हैं।

हर काम चुनाव जीतने के लिए होता है। चौबीसों घंटे पॉवर की शतरंज में खोए हैं वहीं राहुल गांधी की समस्या है कि वे राजनीति कम और जिंदगी ज्यादा जी रहे हैं। न पार्टी चला रहे हैं, न कांग्रेसी सरकारों पर नजर रखते हैं और न कार्यकर्ताओं और नेताओं में अड्डेबाजी करते हैं।

दिल-दिमाग राजनीतिक नहीं है, सियासी धूर्तताएं, क्रूरताएं और बदमाशियां नहीं हैं। जब चाहे तब छुट्टी पर चले जाएंगे। सबसे बड़ी बात यह लक्ष्य या यह इरादा ही नहीं है कि कुछ भी हो जाए उन्हें नेहरू-गांधी के आइडिया ऑफ इंडिया को लोगों में फिर से लोकप्रिय बनाना है। एक के बाद एक चुनाव जीतने हैं!

इसलिए सवाल गलत नहीं है कि राहुल गांधी आखिर चाहते क्या हैं? वे चौबीसों घंटे राजनीति क्यों नहीं करते? उन्होंने अपने ईर्द-गिर्द ऐसे पदाधिकारी कैसे पाल लिए हैं, जिनके कारण या जिनके सिस्टम से हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र सभी तरफ ऐसे कांग्रेसी उम्मीदवार खड़े हो रहे हैं, जिनसे लगता है मानों मोदी-शाह ने कांग्रेस मुख्यालय को पूरी तरह खरीदा हुआ है?

राहुल गांधी ऐसी बातें, ऐसे जुमले कैसे बोलते हैं, जो कांग्रेस के परंपरागत वोट आधार फारवर्ड, मुस्लिम, दलित, आदिवासी का पुराना आधार लौटा नहीं सकते!

राहुल गांधी को चार दिन वायनाड में रहना पड़ा

कोई न माने इस बात को लेकिन मुझे लगता है महाराष्ट्र के विदर्भ में कांग्रेसी कुप्रबंध, पटोले एंड पार्टी के खराब उम्मीदवारों के कारण (20 नवंबर के मतदान में) तथा झारखंड में गलत प्रभारियों, वेणुगोपाल एंड पार्टी की धांधली के कारण (13 नवंबर के मतदान की सीटों पर) कांग्रेस के आगे भाजपा फायदे में रहेगी।

दूसरे शब्दों में हरियाणा के सबक के बावजूद कांग्रेस मुख्यालय में राहुल गांधी, उनकी सर्वे टीम, वेणुगोपाल एंड पार्टी के गलत फैसलों से कांग्रेस को फिर नुकसान होना है। इतना ही नहीं केरल के वायनाड में भी वेणुगोपाल एंड पार्टी के मैनेजमेंट के कारण प्रियंका गांधी की वैसी जीत नहीं होनी है जैसी होनी चाहिए थी।

कितनी हास्यास्पद बात है कि राहुल गांधी को चार दिन वायनाड में रहना पड़ा। और सोशल मीडिया से जाहिर है कि वहां मतदाताओं में राहुल गांधी से कम्युनिकेशन नहीं रहने की शिकायत से लोगों में उत्साह नहीं था।

यदि ऐसा है तो इसका अर्थ है कि वायनाड के वेणुगोपाल को सिर पर बैठाने के बावजूद अपने चुनाव क्षेत्र में भी राहुल गांधी वह दफ्तर, वह सिस्टम नहीं बना सके जो अंग्रेजी भाषी राहुल गांधी का मलायली भाषी लोगों के साथ भरोसे का यह संबंध बनाता कि कुछ भी हो उनका सासंद उनकी सुनता है। उनके कामों और शिकायतों की सांसद के यहां सुनवाई है।

हां, राहुल गांधी की दिल्ली के कांग्रेस मुख्यालय में जो दिक्कत है वह वायनाड़ में भी अब जाहिर है। लोगों के साथ बैठ कर, उनसे बातचीत से परस्पर समझदारी का सद्भाव, भरोसा, काम कराने की बेसिक सियासी प्रवृत्ति राहुल गांधी में है ही नहीं।

तभी वे पहले अमेठी में हारे और अब वायनाड के अनुत्साहित माहौल में प्रियंका गांधी जैसे तैसे जीतेंगी। वही अगले लोकसभा चुनाव में रायबरेली में राहुल गांधी का हारना नामुमकिन नहीं है! (INDIA alliance) 

इसलिए राहुल गांधी करना क्या चाहते हैं, से बड़ा सवाल है कि राहुल गांधी को पता क्यों नहीं है कि वे ईमानदारी, मेहनत के बावजूद लोगों से अपनापन नहीं बना पाते हैं।

राहुल, प्रियंका (अखिलेश, तेजस्वी सहित नई पीढ़ी के सभी नेताओं) की समस्या है कि अपने इलहाम, अपने दफ्तर, अपने चहेतों के ईर्द गिर्द की घेरेबंदी में गुमान बनाए होते हैं कि वे राजनीति के ग्रैंडमास्टर हैं।

सोचें, राहुल, प्रियंका, सोनिया गांधी अपनी कथित सर्वे टीम, वेणुगोपाल एंड पार्टी की केरल कांग्रेस, जिला नेताओं से इतनी बेसिक फीडबैक भी नहीं लिए हुए थे कि वायनाड में लोगों का मूड क्या है?

लोगों में उतना ही उत्साह है या नहीं, जितना उनमें राहुल गांधी को जिताने के वक्त था। प्रियंका गांधी जीत जाएंगी लेकिन महाराष्ट्र, झारखंड का चुनाव प्रचार छोड़ राहुल गांधी का वायनाड में बैठे रहना बताता है कि आज का कांग्रेस हाईकमान अपने कार्यकर्ताओं से भी सच्चा फीडबैक लेते हुए नहीं है। (INDIA alliance)

जबकि राहुल गांधी को जतलाना, बतलाना यह है कि वे विपक्ष की अखिल भारतीय धड़कन हैं।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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